यूपी की जज ने क्यों की इच्छा मृत्यु की मांग ? CJI ने मांगी स्टेटस रिपोर्ट

विवेक वाजपेयी
लखनऊ।ऐसा क्या हो गया कि उत्तर प्रदेश की एक महिला जज को इच्छा मृत्यु जैसा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा। ये मांग समाज के किसी साधारण व्यक्ति की नहीं है। ये मांग की है दूसरों को न्याय दिलाने वाले देश के सम्मानित जज के पद पर आसीन एक महिला जज की, क्या है पूरा मामला और इनको ऐसा करने के लिए क्यों विवस होना पड़ा जानने की कोशिश करते हैं विस्तार से…..

वायरल लेटर के बाद CJI दिया आदेश-

UP के बांदा में तैनात महिला जज के हैरसमेंट मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। CJI के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल अतुल एम कुरहेकर ने हाईकोर्ट प्रशासन से महिला जज की तरफ से दी गई सारी शिकायतों और कार्रवाई का स्टेटस मांगा है।

मैं खुद अन्याय का शिकार हुई हूं-

आपको बता दें कि गुरुवार को महिला जज का लेटर वायरल हुआ था। CJI के नाम लिखे इस पत्र में उन्होंने खुद के साथ हुए सैक्सुअल हैरसमेंट का जिक्र करते हुए इच्छा मृत्यु की मांग की थी। इस लेटर में उन्होंने लिखा था कि भरी अदालत में मेरा शारीरिक शोषण हुआ। मैं दूसरों को न्याय देती हूं, लेकिन खुद अन्याय का शिकार हुई हूं।
यही नहीं, उन्होंने यह भी लिखा कि जब मैंने जज होते हुए इंसाफ की गुहार लगाई, तो 8 सेकेंड में सुनवाई करके पूरा मामला अनसुना कर दिया गया। मैं लोगों के साथ न्याय करूंगी, यह सोचकर न्यायिक सेवा जॉइन की थी, मगर मेरे साथ ही अन्याय हो रहा है। अब मेरे पास सुसाइड के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं बचा है। इसलिए मुझे इच्छा मृत्यु की इजाजत दी जाए।

महिला जज ने पत्र में क्या लिखा-

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को भेजा गये लेटर में यूपी के बांदा जिले में तैनात महिला सिविल जज ने जिला कोर्ट में नियुक्ति के दौरान घटी घटनाओं को भी उजागर किया, साथ ही जिला जज द्वारा अनुचित मांग करने, देर रात घर पर मिलने का दबाव बनाने के साथ ही कार्यस्थल पर महिला सुरक्षा को लेकर कई गंभीर सवाल भी उठाए हैं। उन्होंने अपने पत्र में POSH ACT का भी ज़िक्र करते हुए कहा कि ‘मैं भारत में काम करने वाली महिलाओं से कहना चाहती हूं कि यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीख लें। यह हमारे जीवन का सच है। POSH ACT हमसे कहा गया बड़ा झूठ है।’

2022 में बाराबंकी में हुआ शोषण-

महिला जज ने बताया- 7 अक्टूबर 2022 को बाराबंकी जिला बार एसोसिएशन ने न्यायिक कार्य के बहिष्कार का प्रस्ताव पारित कर रखा था। उसी दिन सुबह साढ़े 10 बजे मैं अदालत में काम कर रही थी। इसी दौरान बार एसोसिएशन के पदाधिकारी कई वकीलों के साथ कोर्ट कक्ष में घुस आए। मेरे साथ बदसलूकी शुरू कर दी। गाली-गलौज करते हुए कमरे की बिजली बंद कर दी गई। हमने इसकी शिकायत अगले दिन यानी 8 अक्टूबर को अपने सीनियर जज से की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। भरी कोर्ट में मुझे अपमानित किया गया। शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया गया। इसके बाद मैंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इसकी शिकायत की। मगर, कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

आइए जानते हैं कि जिस POSH ACT जिक्र जज ने अपने लेटर में किया है आखिर ये क्या होता है और इसे क्यों लाया गया

क्या है पॉश अधिनियम 2013-

भारत में अक्सर वर्कप्लेस पर भेदभाव देखा जाता है, चाहे बात पुरुषों की हो या महिलाओं की, समाज में हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी तरह के भेदभाव को झेलता है। महिलाओं की बात करें तो कंस्ट्रक्शन, कृषि और इनफार्मेशन सेक्टर में मजदूरी और घरों में काम कर रही महिलाएं आज भी यौन उत्पीड़न और अपशब्दों का सामना कर रही है। एक अध्ययन में यह पाया गया है कि इनकी रोकथाम के लिए बने कानूनों का इस्तेमाल बहुत कम किया जा रहा है। इन जगहों पर हैरेसमेंट का शिकार होने के बावजूद भी महिलाएं चुप रहती हैं। इसके कुछ प्रमुख कारणों पर बात करें तो। एक सर्वे से पता चलता है कि शिकायत न कराने का मुख्य कारण कानूनी प्रक्रिया में विश्वास की कमी, अपने करियर के प्रति चिंता और आरोपियों को मिलने वाली सजा दर कम होना हो सकते हैं।
अब ऐसे हालतों में महिलाओं को ऑफिसेस में सेक्सुअल हैरेसमेंट से सुरक्षित रखने के लिए ‘पॉश अधिनियम 2013’ भारत सरकार द्वारा बनाया गया एक कानून है, जिसे साल 2013 में लागू किया गया था। इस एक्ट का पूरा नाम POSH यानी की ‘प्रोटेक्शन ऑफ़ वीमेन फ्रॉम सेक्सुअल हैरेसमेंट एट वर्कप्लेस’ है। इसके तहत महिलाओं के साथ होने वाले किसी भी तरह के सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायत की जा सकती है। अब यहां सवाल यह उठता है कि पॉश के तहत किस तरह का हैरेसमेंट आता है?
इसमें सबसे पहले आता है फिजिकल कांटेक्ट या किसी को भी गलत तरीके से छूना, इशारे करना, शारीरिक रूप से असहज महसूस कराना
या फिर किसी भी तरह से सेक्सुअल फेवर मांगना।
किसी भी तरह का सेक्सुअल रिमार्क करने, के साथ ही अन्य भी।

कैसे काम करता है ये कानून-

यह कानून हर उस वर्कप्लेस में लागू होता है जहां दस या उससे ज्यादा लोग काम करते हो। कानून के तहत ऐसे हर ऑफिस में एक इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (ICC) होनी चाहिए, जिसकी प्रेसिडेंट एक महिला ही हो। नियम के मुताबिक़, इस कमेटी में जितने लोग होंगे उनमें 50 परसेंट औरतें होना ज़रूरी है। साथ ही इसमें एक बाहरी मेम्बर भी होना चाहिए, जो सेक्सुअल हैरेसमेंट पर काम करने वाले किसी NGO की मेम्बर हो या फिर वीमेन इम्पॉवरमेंट से जुड़ी किसी संस्था की सदस्य या फिर यौन उत्पीडन से जुड़े मुद्दों से परिचित कोई अधिवक्ता भी हो सकती है। इस कमेटी से कोई भी महिला एम्पलॉयी हैरेसमेंट की शिकायत कर सकती है। और कमेटी द्वारा दिया गया फैसला सभी के लिए मान्य होगा। एक महत्वपूर्ण बात, यह कि आईसीसी का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है।
पुलिस स्टेशन में कैसे फाइल करवाए शिकायत
अब यहां अगर आपके मन में यह सवाल आ रहा है कि इसकी शिकायत पुलिस स्टेशन में कैसे दर्ज कराई जा सकती है।

इस कानून के बाद शिकायत दर्ज कराना हुआ आसान-

आपको बता दें कि पॉश 2013 के बाद कार्यस्थल पर सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायत दर्ज करवाना ज्यादा आसान हो गया है। इस एक्ट के तहत 90 दिनों के अन्दर शिकायत की इंक्वायरी पूरी होना ज़रूरी है। आप कार्यस्थल पर कमेटी को इसकी शिकायत कर सकती हैं या फिर आप पुलिस स्टेशन पर इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। अगर कमेटी को लगता है कि मामला बहुत गंभीर है तो कमेटी की तरफ से खुद शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। आईसीसी की इंक्वायरी पूरी होने के 10 दिन के अन्दर कंपनी को अपनी रिपोर्ट भी देनी होती है। एक बार इंक्वायरी पूरी हो गई, तो भारतीय पीनल कोड के आधार पर सजा दी जाती है।

क्या होती है इच्छा मृत्यु-

देश में इसे लेकर क्या गाइडलाइन है, समझ लेते हैं।
इच्छामृत्यु.. शब्द सुनकर ही समझ आता है कि किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा से मृत्यु दे देना। वैसे ज़्यादातर मामलों में यह गंभीर बीमारी से झूझ रहे किसी मरीज के लिए उपयोग की जाती है। इसमें डॉक्टर की मदद से किसी व्यक्ति के जीवन का अंत किया जाता है, जिससे उसे किसी दर्द या तकलीफ से छुटकारा दिलाया जा सके। इसके दो प्रकार हैं। पहली एक्टिव यूथेनेशिया यानी सक्रिय इच्छामृत्यु और दूसरी है पैसिव यूथेनेशिया यानी निष्क्रिय इच्छा मृत्यु। एक्टिव यूथेनेशिया में बीमार व्यक्ति को डॉक्टर जहरीली दवा या इंजेक्शन देते हैं, ताकि उसकी मौत हो जाए। वहीं, पैसिव यूथेनेशिया में मरीज का इलाज रोक दिया जाता है, अगर वो वेंटिलेटर पर है तो वहां से हटा दिया जाता है, उसकी दवाएं बंद कर दी जाती हैं। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव यूथेनेशिया को ही मंजूरी दी थी।

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