अभिषेक उपाध्याय /शिवसेना का नया चेहरा है। वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग उठाने वाली शिवसेना अब कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता के सिंहासन पर है। उसी कांग्रेस के साथ जिसके नेता वीर सावरकर को गद्दार कहते हैं।शिवसेना का यह नया चेहरा बेहद चौकाने वाला है। बाला साहब ठाकरे की शिवसेना से उद्धव ठाकरे की शिवसेना के बीच पार्टी के डीएनए में ही परिवर्तन नजर आ रहा है। यह वही शिवसेना है जो वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग करती आई है।
इस देश के राष्ट्रवाद का प्राण तत्व वीर सावरकर का जन्म साल 1883 में उसी मुंबई में हुआ था जहां फिलहाल शिवसेना का गढ़ है। सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे। इसके साथ ही वह एक राजनेता, वकील, लेखक और हिंदुत्व दर्शनशास्त्र के प्रतिपादक थे। मुस्लिम लीग के जवाब में उन्होंने हिन्दू महासभा से जुड़कर हिंदुत्व का प्रचार किया था। सावरकर को भारत रत्न देने की मांग कोई नई नहीं है, मगर शिवसेना ने इस मांग को अपना एजेंडा बनाकर पेश किया।
वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्पति केआर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने का प्रस्ताव भेजा था। मगर उस समय के राष्ट्रपति इसके लिए तैयार नहीं हुए। कांग्रेस वीर सावरकर पर कई तरह के आरोप लगाती आई है। कांग्रेस के नेता उन्हें अंग्रेजों से माफी मांगने वाला और गद्दार तक कहते हैं। उन्हें महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में भी शामिल कहा जाता है जबकि हकीकत कुछ और ही है। वीर सावरकर के खिलाफ इस मामले में कोई सबूत नहीं मिले थे। उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया गया था।
शिवसेना ने इस चुनाव के दौरान भी विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग की है। शिवसेना के मुताबिक उसने हमेशा इस बात का समर्थन किया है कि वीर सावरकर को भारत रत्न मिलना चाहिए। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने सावरकर के लिए मरणोपरांत भारत रत्न की अपनी मांग को दोहराया था।
उद्धव ठाकरे ने कहा था कि अगर हिंदुत्व के नायक विनायक दामोदर सावरकर उर्फ वीर सावरकर आजादी के समय प्रधानमंत्री बनते तो पाकिस्तान नहीं बनता। उस दौरान शिवसेना प्रमुख ने कहा था, ‘मैंने नेहरू को भी वीर कहा होता, अगर उन्होंने जेल में महज 14 मिनट भी बिताई होती, जबकि सावरकर ने 14 साल जेल में बिताए। उन्हें अब हमारी सत्ताधारी हिंदुत्व सरकार (राजग) द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए। यही उद्धव ठाकरे सत्ता की खातिर नेहरू परिवार के उत्तराधिकारियों का स्वागत सत्कार करते नजर आए। शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी के खेमे में खड़ी नजर आई। यह जानते हुए भी कि इस खेमे की नीतियां और कार्यक्रम उसकी सोच से एकदम अलग हैं।
शिवसेना यह भी कहती आई है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार क्या कहते हैं, इसे समझने के लिए 100 बार जन्म लेना पड़ेगा। शिवसेना को लगता है की सिर्फ बीजेपी को ही शरद पवार को समझने में मुश्किल आएगी जबकि यह स्थितियां उस पर भी लागू होती हैं। शिवसेना और एनसीपी कांग्रेस के एजेंडे में उत्तर दक्षिण का फर्क है। शिवसेना की मांग है कि वीर सावरकर को भारत रत्न मिले। जबकि कांग्रेस-एनसीपी की मांग है कि मुस्लिमों को 5 फीसदी आरक्षण मिले।
अब तक शिवसेना पूरी तरह से हिंदुत्व की राजनीति करती आई है, लेकिन कांग्रेस-एनसीपी का साथ लेने की खातिर उसे अपने कोर एजेंडे का त्याग करना पड़ रहा है। विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव, लगातार शिवसेना की तरफ से वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग की गयी है। लेकिन कांग्रेस-एनसीपी लगातार वीर सावरकर को एक विवादास्पद किरदार मानती रही हैं। विपक्ष उनका नाम महात्मा गांधी की हत्या की साजिश करने वालों के साथ जोड़ता आया है।
अगर मुस्लिम आरक्षण की बात करें, तो शिवसेना इस मुद्दे का विरोध करती आई है और राज्य में मराठा आरक्षण को बढ़ावा देने की बात करती आई है। ऐसे में अब इस बात पर भी हर किसी की नज़र रहेगी कि नए हालातों में शिवसेना कैसे चेहरा बदलती है! शिवसेना के पास महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद है मगर वह सावरकर को खो चुकी है। सियासत के तराजू में यह नुकसान उसकी पहचान के साथ जुड़ चुका है।