; पश्चिम बंगाल में क्या लोकतंत्र जीवित है? बंगाल में कानून का राज या ममता का?
पश्चिम बंगाल में क्या लोकतंत्र जीवित है? बंगाल में कानून का राज या ममता का?
पश्चिम बंगाल में पिछले कुछ समय से जिस तरह की दमनकारी, नकारात्मक, अराजक एवं अलोकतांत्रिक घटनाएं हो रही है, शारदा चिट फंड घोटाले से जुड़े तथ्यों को सामने आने से रोकने के लिये वहां प्रशासनिक ढ़ांचे, तृणमूल कांग्रेस और राज्य सरकार ने जिस तरह का अपवित्र एवं त्रासद गठबंधन कर लिया है, उसे देखते हुए एक बड़ा प्रश्न खड़ा है कि क्या वहां कानून का राज चलता है? क्या वहां लोकतंत्र जीवित है? यह आज एक बहुत बड़ा सवाल बन गया है। जिस तरह के हालात पश्चिम बंगाल में हैं, उससे से साफ जाहिर होता है कि वहां कानून नहीं बल्कि ममता बनर्जी का शासन चलता है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता, जो वह चाहती हैं राज्य में वही होता है।
 पिछले दिनों की घटनाओं पर नजर डालें तो साफ हो जाएगा कि पश्चिम बंगाल में कानून का राज किसी भी मायने में नहीं है। इन घटनाओं को देखते हुए महात्मा गांधी के प्रिय भजन की वह पंक्ति- ”सबको सन्मति दे भगवान“ में फिलहाल थोड़ा परिवर्तन हो- ”केवल ममता को सन्मति दे भगवान“। एक व्यक्ति पहाड़ (जिद के) पर चढ़कर नीचे खडे़ लोगों को चिल्लाकर कहता है, तुम सब मुझे बहुत छोटे दिखाई देते हो। प्रत्युत्तर में नीचे से आवाज आई तुम भी हमें बहुत छोटे दिखाई देते हो। बस! यही कहानी तब तक दोहराई जाती रहेगी जब तक लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन होता रहेगा।
आजाद भारत में पहली बार ऐसा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की जा रही जांच में किसी राज्य में पुलिस और सरकार ने बाधाएं खड़ी की है। शारदा चिट फंड घोटाले में दोषी होने के संदेह में आए एक प्रमुख सर्वोच्च पुलिस अधिकारी से पूछताछ के लिये पहुंचे सीबीआई अधिकारियों को राज्य पुलिस हिरासत में लेकर कोतवाली पहुंच गयी। कोलकाता पुलिस ने सीबीआई अधिकारियों के घरों को घेर लिया, इन गैरकानूनी कार्रवाईयों के चलते सीबीआई के कार्यालय के बाहर अर्धसैनिक बलों को तैनात करना पड़ा। ये घटनाएं ममता बनर्जी के इशारे पर हुई। जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि न तो ममता सरकार राजनैतिक शुचिता में विश्वास रखती है, न लोकतांत्रिक मूल्यों को मान देती है और न ही सुप्रीम कोर्ट का आदर करती है। एक तानाशाही माहौल बना हुआ है। गुंडागर्दी वाली सरकार का साम्राज्य बना हुआ है। विडम्बना तो यह है कि मोदी सरकार से डरे एवं सहमे तृणमूल कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने इन अराजक एवं अलोकतांत्रिक घटनाओं में साथ दिया है, लोकतंत्र के मस्तक पर कलंक लगाया है। सीबीआई की जांच कार्रवाई को बाधिक करके लोकतंत्र पर हमले की कुचेष्टा की है। न केवल लोकतंत्र को कुचलने का प्रयास हुआ है बल्कि पश्चिम बंगाल की आदर्श संस्कृति एवं राजनीतिक मूल्यों को भी धुंधलाया है। पश्चिम बंगाल हमारे देश की बौद्धिक, आध्यात्मिक एवं राजनैतिक संपदा का स्थल रहा है, वह चाहे रामकृष्ण मिशन की परंपरा हो या चाहें स्वामी विवेकानंद द्वारा चलाई गई परंपरा, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रवीन्द्रनाथ ठाकुर एवं जनसंघ के प्रथम संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसी धरती से थे और यही नहीं अभी हाल ही में इसी धरती के एक महान् सपूत और देश के पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न दिया गया है। पूरे देश को बंगाल की धरती पर गौरव की अनुभूति होती है लेकिन बंगाल के अंदर आज जो कुछ भी चल रहा है उसने इस धरती के गर्व एवं गौरव की स्थितियों पर कालिख लगा दी है।
वामपंथ के कुशासन से मुक्ति के लिए पश्चिम बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी को चुना था। मां, माटी और मानुष के नारे के बीच उम्मीद थी कि प्रदेश में लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी, लेकिन प्रदेश के लोग आज ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। राजनीतिक हिंसा के क्षेत्र में ममता बनर्जी के शासन ने कम्युनिस्ट शासन की हिंसक विरासत को भी पीछे छोड़ दिया है। ममता के रुख से साफ लग रहा है कि वह भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता से बौखला गयी हैं, आक्रामक बनी हुई है, गुस्सैल है। लेकिन स्वस्थ एवं आदर्श राजनीति इन मूल्यों से संचालित नहीं हो सकती। आज हमारी राजनीति की कड़वी जीभ ए.के. 47 से ज्यादा घाव कर रही है। उसके गुस्सैल नथुने मिथेन से भी ज्यादा विषैली गैस छोड़ रहे हैं। राजनीतिक दिलों में जो साम्प्रदायिकता, प्रांतीयता और जातिभेद का प्रदूषण है वह भाईचारे के ओजोन में सुराख कर रहा है। राजनीतिक दिमागों में स्वार्थ का शैतान बैठा हुआ है, जो समूची राजनीति छवि एवं आदर्श को दूषित कर रहा हैं। प. बंगाल की घटनाएं ऐसी ही निष्पत्तियां हैं।
भारत का लोकतन्त्र हमारे पुरखों द्वारा नई पीढ़ी के हाथ में सौंपा गया ऐसा अनूठा तोहफा है जिसकी छाया में ही हमने पूरी दुनिया में अपनी विशिष्ट जगह बनाकर लोगों को चैंकाया है। इस व्यवस्था को हमेशा तरोताजा रखने की जिम्मेदारी भी हमारे पुरखों ने बहुत दूरदर्शिता के साथ ऐसी संस्थाएं बनाकर की जिससे भारत के हर नागरिक को किसी भी राजनैतिक दल की सरकार के छाते के नीचे हमेशा यह यकीन रहे कि उसके एक वोट से चुनी गई सरकार हमेशा सत्ता की पहरेदारी में कानून के राज से ही सुशासन स्थापित करेंगी। सीबीआई जैसी सर्वोच्च जांच एजेंसियों का काम यह देखने का नहीं है कि कौन नेता किस पार्टी का सदस्य है, उसका काम सिर्फ यह देखने का है कि किसने अपराध किया है क्योंकि कानून के राज का मतलब सिर्फ यही है कि कानून को अपना काम आंखें बन्द करके करना चाहिए।
सीबीआई की विधिसम्मत कार्रवाई के अलोकतांत्रिक एवं अराजक विरोध की घटनाओं का संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने आज जो फैसला दिया है उसका सन्देश केवल इतना है कि भारत के लोकतन्त्र का मतलब सिर्फ कानून का राज है बेशक शासन किसी भी पार्टी का हो सकता है। देश की सबसे बड़ी अदालत के न्यायमूर्तियों ने सीबीआई को आदेश दिया है कि शारदा चिट फंड मामले में वह कोलकाता के पुलिस कमिश्नर श्री राजीव कुमार से पूछताछ अपने दिल्ली मुख्यालय के स्थान पर ‘शिलांग’ में कर सकती है, मगर बिना किसी तंग करने के तरीके अपना कर और इस क्रम में उन्हें गिरफ्तार करने का अधिकार उसे नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संतुलित है जिससे राज्य में अराजक स्थितियों की संभावनाओं पर विराम लगेगा। ऐसी संभावनाएं बनी थी कि सीबीआई ‘शारदा जांच’ के नाम पर श्री राजीव कुमार की गिरफ्तारी करके राज्य की पुलिस में डर का माहौल बनाना चाहती है। ऐसा भी आरोप है कि सीबीआई का चुनावों से ठीक पहले ऐसा कदम राजनीति से प्रेरित है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत के लोकतन्त्र की जीत है जिसमें सिर्फ कानून का राज चलता है। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि अब तक जांच पूरी क्यों नहीं हुई? सीबीआई अब तक क्या कर रही थी? चुनाव की पृष्ठभूमि में ही यह जांच क्यों सक्रिय हुई। प्रश्न यह भी है कि प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने अपनी राज्य की राजधानी के पुलिस कमिश्नर के पक्ष में सत्याग्रह छेड़ कर अनेक संदेहों एवं संभावनाओं को जन्म दिया है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को इतिहास से सबक लेना चाहिए और भारतीय लोकतंत्र का आदर करते हुए दमनकारी, नकारात्मक और अलोकतांत्रिक सोच से बचना चाहिए। उन्हें अपनी एवं अपनी पार्टी की चिंता को छोड़कर देश की चिन्ता करनी चाहिए। किसी भी राजनैतिक दल की सरकार का भी यह पवित्र कर्तव्य बनता है कि वह इस तरह की संस्थाओं का उपयोग बिना किसी राजनैतिक प्रतिशोध की भावना से इस प्रकार करे कि स्वयं उसके विपक्षी दल उसकी नीयत पर शक न कर सकें। संविधान का सबको सम्मान करना चाहिए। हमारे राष्ट्र के सामने अनैतिकता, भ्रष्टाचार, महंगाई, बढ़ती जनसंख्या की बहुत बड़ी चुनौतियां पहले से ही हैं, उनके साथ प. बंगाल में राजनीतिक अराजकता एक बड़ी चुनौती बनकर आया है। राष्ट्र के लोगों के मन में भय छा गया है। कोई भी व्यक्ति, प्रसंग, अवसर अगर राष्ट्र को एक दिन के लिए ही आशावान बना देते हैं तो वह महत्वपूर्ण होते हैं। पर यहां तो निराशा और भय की लम्बी रात की काली छाया व्याप्त है। लेकिन कब तक?
(ललित गर्ग)
News Reporter
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