; मिलिए लैंड रोवर से चलने वाले इस किसान से
मिलिए लैंड रोवर से चलने वाले इस किसान से

छत्तीसगढ़ के नक्सलगढ़ कहे जाने वाले बस्तर की सरजमीं जान लेने के नहीं बल्कि जीवन दायनी के रूप में जानी जाएगी।बस्तर की धरती पर अब इन्सुलिन की खेती हो रही है।इंसुलिन प्लांट को कॉस्टस इग्नियस (Costus igneus) कहा जाता है। भारत देश में इसे इंसुलिन प्लांट के रूप में ही जाना जाता है। यह पौधा कॉस्टेसी फैमिली से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि इसकी पत्तियों के सेवन से ब्लड शुगर लेवल कम हो जाता है। इस पौधे के पत्ते हल्के चौड़े और हरे रंग के होते हैं और इस पर लाल रंग के छोटे फूल आते हैं।बस्तर के गांधी कहे जाने वाले प्रगतिशील किसान डॉ. राजा राम त्रिपाठी बस्तर में कृषि जगत में नवाचारों के माध्यम से आदिवासी किसानो के जीवन में बदलाव की नई कहानी लिख रहे हैं।

भारत सरकार व राज्य सरकार से कई बार सम्मानित हो चुके डॉ. राजाराम त्रिपाठी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने नमामि भारत से बात करते हुए बताया की वो माँ दंतेश्वरी हर्बल समूह बना कर के किसानों के साथ काली मिर्च की खेती करते काफ़ी लम्बे समय से करते चले आ रहे हैं।लेकिन इस बार उन्होंने अपने फार्म पर काली मिर्च के साथ-साथ इंसुलिन की खेती शुरु कर दी है।

एकड़ में 80 हज़ार लागत और मुनाफ़ा 10 से15 लाख।

इन्सुलिन प्लांट की खेती में औसतन 85 हजार रूपये प्रति एकड़ लागत आती है। इंसुलिन के पौधों को कतार से कतार और पौध से पौध 40-50 से.मी. की दूरी रखना चाहिए। इस प्रकार एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 40-45 हजार पौधे स्थापित होने से भरपूर उत्पादन प्राप्त होता है।
वहीं उपज की बात करें तो प्रति एकड़ 80 क्विंटल कन्द का उत्पादन बड़े ही आसानी से हो जाता है। इन्हें 100 से 150 रूपये प्रति किलो की दर से बेचने पर 12 लाख रूपये प्राप्त हो सकते है. इसके अलावा इसकी पत्तियां एकत्रित कर बेचने से अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है।

फ़सल तैयार होने का समय
कियोकंद की फसल 170 से 180 दिनों में तैयार हो जाती है। जून में लगाई गई फसल नवम्बर के अंतिम सप्ताह में खोदने के लिए तैयार हो जाती है। खुदाई करने के पूर्व खेत में हल्की सिंचाई करने से कंदों की खुदाई आसानी से हो जाती है।फसल पकने के पूर्व इसके पत्तों को तने सहित काट लेना चाहिए। पत्तों को साफ कर हवा में सुखाकर जूट को बोरों में भरकर नमीं रहित स्थान पर भंडारित कर लें।इसके अलावा इसका पाउडर बनाकर भी बेचा जा सकता है।

खेती से करोड़ो की कमाई कर खरीदी खुद की लैंड रोवर कार।

डॉ. राजाराम त्रिपाठी सामुहिक रूप से एक हजार एकड़ भूमि पर विभिन्न प्रकार की औषधीय खेती करते हैं जैसे सफ़ेद मूसली,कालीमिर्च सहित तमाम अन्य प्रकार की फसलों को उगाते हैं।वही सालाना 30 से 35 करोड़ का टर्न ओवर करते हैं।आज खेती बदौलत डॉ. राजाराम त्रिपाठी करोड़ो की अपनी खुद की कार लैंड रोवर से चलते हैं।

News Reporter
मोहित शुक्ला, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में रहते हैं और नमामि भारत में जर्नलिस्ट हैं।और पिछले 5 सालों से कृषि क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे हैं. इससे पहले वो गाँव कनेक्शन में भी पत्रकारिता कर चुके हैं। कृषि और इनवायरमेंट उनका पसंदीदा क्षेत्र है।
error: Content is protected !!