; मतदाता जागरूकता अभियान पर भारी कटान पीड़ित किसानों का चुनाव बहिष्कार
मतदाता जागरूकता अभियान पर भारी कटान पीड़ित किसानों का चुनाव बहिष्कार

महेश चंद्र गुप्ता/बहराइच। एक तरफ शासन प्रशासन मतदान को लेकर जागरूकता फैलाने के दम भर रहा हैं तो वही दूसरी तरफ उसी प्रशासन की अनदेखी से निराश हज़ारों ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार का फैसला कर जिला प्रशासन के मतदाता जागरूकता के दावों की पोल खोल कर रख दी है.तराई के जिले बहराइच में घाघरा किनारे बसे कैसरगंज लोकसभा के हज़ारों लोगों ने आगामी लोकसभा चुनाव में मतदान के बहिष्कार का फैसला लिया है.ग्रामीणों की मांग है की प्रशासन कटान से बचने के लिए ठोकर या बाँध का निर्माण करवाये ताकि हर साल सैकड़ों परिवार बर्बाद होने से बच सकें और वो भी ज़िन्दगी जी सकें.इन किसानों ने शासन को बाकी कटान पीड़ित गावों को बहिष्कार में शामिल करने की बात कही है।

मरे हैं तो मरे हैं मरने पर किसी को लाख रुपया दिया जाए तो भी वो बेकार है ये शब्द हैं उस बूढ़े किसान परशुराम के जिसने कटान में अपना घर खोया तो परिवार के साथ दूसरे गाँव जाकर बस गया लेकिन यहाँ भी कटान का खतरा जस का तस बना हुआ है.कटान से हर साल सैकड़ों किसान बर्बाद होते हैं फसले पानी बहा ले जाता है और ज़मीन को नदी लील जाती है खाने को रोटी के लिए तरसते ये किसान सरकार की ओर आशा की नज़र से देखते हैं तो वहाँ भी निराशा ही हासिल होती हैं.शासन की अनदेखियों से निराश इन गावों के हज़ारों किसानों ने आगामी लोकसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार करने का फैसला लिया है.कैसरगंज लोकसभा के गोडहिया नंबर 3 और मंझरा तौकली के लगभग 5 हज़ार किसान इस लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं करेंगे.ठोकर की मांग को लेकर आज कटान पीड़ितों ने ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन कर अपनी मांग शासन तक पहुचाई इनका कहना है की अस्तित्व नहीं तो वोट नहीं. यहाँ के किसानों का कहना है की आजतक न तो यहाँ सांसद आये और न ही कोई विधायक.अब चुनाव आया है तो वोट मांगने सब दौड़ते हुए आएंगे उसके बाद फिर उनको उनके हाल पर छोड़ दिया जाएगा.इसलिए इस बार न तो हम वोट करेंगे और जबतक हमारी मांगें पूरी नहीं होती हम आंदोलन करते रहेंगे।

जिलाधिकारी शम्भू कुमार मतदाता जागरूकता के दावे करते नहीं थक रहे लेकिन कैसरगंज लोकसभ इलाके के कटान पीड़ितों का चुनाव बहिष्कार करना उनके दावों की पोल खोलता नज़र आ रहा है.घाघरा के किनारे बसे ये किसान काफी समय से बाँध या ठोकर की मांगों के चलते नेताओं से लेकर अधिकारियों की चौखट पर एड़ियां घिस रहे रहे हैं लेकिन आजतक इन किसानों की न तो कहीं सुनवाई हुई और न ही किसी ने राहत देने की बात भी कही. यहाँ तक की जिलाधिकारी को कई बार बाँध ठोकर बनाने के लिए पत्र सौंपा गया तो कभी ज्ञापन दिया गया लेकिन आजतक किसी ने इनकी समस्याओं पर गंभीरता से सोचना तक मुनासिब नहीं समझा. बाढ़ हर साल इन किसानों को बर्बाद कर जाती है बाढ़ के समय नेता वादे तो कर जाते हैं लेकिन उसे अमलीजामा पहनाने न तो कोई अधिकारी उधर नज़र करता है और न ही नेता जी. अब ऐसे में किसानों ने फैसला किया है किया है की हम इस बार वोट ही नहीं देंगे।

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