; मिल गई दूसरी पृथ्वी, जहां धरती से कई गुना बेहतर होगा जीवन
मिल गई दूसरी पृथ्वी, जहां धरती से कई गुना बेहतर होगा जीवन

विवेक वाजपेयी। हमारा ब्रह्मांड अपने भीतर ना जाने कितने रहस्यों को छिपाए हुए है, जिन्हें आज तक विज्ञान भी ठीक ढंग से समझ नहीं सका है। हमारे ब्रह्मांड में तमाम गैलेक्सीज यानि आकाश गंगाएं मौजूद हैं जिसमें ना जाने कितने ग्रह नक्षत्र सूरज और चांद सितारे मौजूद हैं। जिस आकाश गंगा में हम लोग रहते हैं उसका नाम है मिल्की वे। इसमें सूरज हमारा तारा है और इसी के चारों सारे ग्रह और चंद्रमा घूमते हैं। जिस तरह पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है उसी तरह ब्रह्मांड में किसी और गैलेक्सी में मौजूद ग्रह अलग-अलग तारों का चक्कर लगा रहे होते हैं।लेकिन आप सोच रहे होंगे कि ये सब हम क्यों हमें बता रहे हैं तो इसका कारण है कि हमारे वैज्ञानिकों ने एक ऐसी पृथ्वी खोजने की बात कही है जहां पर अपनी पृथ्वी जिस पर हम लोग रहते हैं उससे कहीं बेहतर जीवन हो सकता है वैज्ञानिकों का दावा है कि वहां पर 8 अरब साल तक जीवन जीने लायक होगा। तो आइए हम जानने की कोशिश करते हैं कि ये कौन सा ग्रह है जहां पर पृथ्वी से बेहतर जीवन हो सकता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे सौर मंडल के बाहर पृथ्वी जैसे ही कई ग्रह मौजूद हैं। नई स्टडी में इसका खुलासा हुआ है कि ये सुपर अर्थ हाइड्रोजन या हीलियम से भरपूर हैं जो हमारे रहने के लिए पृथ्वी से भी बेहतर हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि ये एक्सोप्लैनेट यानि (सौर मंडल के बाहर के ग्रह) चट्टानी सतह वाले हैं। शोध में पाया गया कि हाइड्रोजन और हीलियम से इन ग्रहों का वायुमंडल भरा है और इसकी सतह उतनी गर्म होगी जहां पानी अपने तरल रूप में रहे।

पानी का होना जीवन के लिए अनुकूल है। शोधकर्ताओं का मानना है कि ये ग्रह 8 अरब वर्षों तक रहने योग्य स्थिति दे सकते हैं, जहां जीवन का विकास हो सके। पृथ्वी इसकी तुलना में 4.5 अरब वर्ष पुरानी है। पृथ्वी पर अगले 1.5 अरब वर्ष तक जीवन फल-फूल सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा कि ब्रह्मांड में कुछ ग्रह हमारे ग्रह से अधिक रहने योग्य हो सकते हैं। स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने नई रिसर्च की है जो नेचर एस्ट्रोनॉमी पत्रिका में प्रकाशित हुई है।
शोधकर्ताओं ने लगभगल 5000 ग्रहों का मॉडल तैयार किया। इस स्टडी के लेखकों का कहना है कि सुपर अर्थ हमारे ग्रह से बहुत कम समानता रखते हैं। उच्च दबाव पर भी यहां जीव पनप सकता है। शोध में कहा गया है कि समुद्री तलों और खाइयों की दबाव सीमा के नापने के तरीके से पता चला है कि इन ग्रहों का सतही दबाव 100-1000 बार के क्रम में है। जीवन के पनपने को लेकर कोई सैद्धांतिक सीमा नहीं है। पृथ्वी के जीवमंडल को ही देखें तो कई जीव 500 बार पर पनपते हैं।
पृथ्वी से सैकड़ों गुना मोटा है वायुमंडल
अरबों साल पहले शुरुआती ब्रह्मांड में सिर्फ हाइड्रोजन और हीलियम जैसी गैसें थीं जो ग्रहों के निर्माण के लिए पर्याप्त थीं। इन्हीं से हमारे सूर्य जैसे सितारों का जन्म हुआ। पृथ्वी समेत हर ग्रह ने वायुमंडल का निर्माण किया, जिसमें हाइड्रोजन और हीलियम जरूर होते हैं। पृथ्वी की तुलना में इन ग्रहों का वायुमंडल 100 से 1000 गुना ज्यादा मोटा है। शोधकर्ताओं का मानना है कि जेम्स वेब टेलीस्कोप इन ग्रहों पर जीवन होने की संभावना को बेहतर तरीके से खोज सकता है।

वैसे super earth के बारे में वैज्ञानिकों ने इससे पहले भी कई खोज की हैं जैसे 2015 में कैप्लर स्पेस टेलीस्कोप पृथ्वी की तरह ही एक ओर ग्रह का पता लगाया जिसका नाम K218b रखा गया। इसका द्रव्यमान पृथ्वी से 8 गुना ज्यादा है इसलिए लिए इसे सुपर अर्थ कहा गया। इस ग्रह पर पानी होने के संकेत और टेम्परेचर 0 से 40 डिग्री होने की संभावना भी वैज्ञानिकों ने जताई थी। हालांकि पृथ्वी से इसकी दूरी बहुत अधिक होने की वजह से अभी ज्यादा जानकारी नहीं उपलब्ध हो पाई है।

अभी हाल ही में जापान के एस्ट्रोनोमर्स की एक टीम ने पृथ्वी जैसेएक और एक्सोप्लैनेट की खोज की है. इस एक्सोप्लैनेट को सुबारू टेलीस्कोप के जरिए खोजा गया है. इस ‘सुपर-अर्थ’ की खोज प्लैनेटरी रिसर्चर्स की टीम ने की है इस टीम का नेतृत्व हिरोकी हरकावा कर रहे थे.

डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वा जैसा ये ग्रह एक तारे की परिक्रमा कर रहा है. पृथ्वी से इसकी दूसरी 36 प्रकाशवर्ष है. एस्ट्रोनोमर्स का कहना है कि ये ग्रह अपने तारे Ross 508 के ‘गोल्डीलॉक जोन’ में चक्कर लगा रहा है।
Ross 508b का मास चार पृथ्वी के बराबर है. ये अपने तारे का हर 10.75 दिनों में परिक्रमा पूरी कर लेता है. Ross 508b अपने सूर्य से 0.053 AU की दूरी पर स्थित है, जबकि पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी 1 AU है
इसी बीच, अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA जल्द ही दो एक्सोप्लैनेट की जांच की शुरुआत करेगी. NASA का कहना है कि ये एक्सोप्लैनेट पृथ्वी से मिलते-जुलते हैं. इसमें से एक एक्सोप्लैनेट का नाम 55 Cancri e है, जबकि दूसरे का नाम LHS 3844 b है.
बहरहाल अभी तो किसी दूसरे ग्रह पर बसने और घर बनाने के सपने तो दूर की कौड़ी ही लग रहे हैं इस आप अपनी पृथ्वी को ही और हरा-भरा बनाने में ही सहयोग करें यही आप और पृथ्वी पर रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगा।

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