; एमबीए किसान स्ट्राबैरी के साथ कर रहा सहफसली,सलाना हो रही 10 लाख की कमाईएमबीए किसान स्ट्राबैरी के साथ कर रहा सहफसली,सलाना हो रही 10 लाख की कमाईएमबीए किसान स्ट्राबैरी के साथ कर रहा सहफसली,सलाना हो रही 10 लाख की कमा
एमबीए किसान स्ट्राबैरी के साथ कर रहा सहफसली,सलाना हो रही 10 लाख की कमाई

सीतापुर। एमबीए पास करने के बाद अधिकांश युवाओं का सपना होता है कि वो मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करें, लेकिन ये सीतापुर जिले के परसेंडी ब्लाक के अड़ावाल गाँव में रहने युवा किसान नवीन मोहन राजवंशी AMIT कॉलेज चेन्नई से एमबीए पास करने के बाद वो 2018 में दुबई चले गये वहाँ पर बिजनेस डेवलोपमेन्ट मैनेजर की पोस्ट पर काम करते थे । नवीन आगे बताते है की वो दुबई में भी किसी फार्म पर विजिट करने जाते तो देखते की बहुत अच्छी अच्छी फसलें रेगिस्तान में लहलहा रही है। वही से नवीन ने स्वदेश लौटने का मन बना लिया। वर्ष 2020 में कोविड के समय मे अपने वतन वापस आ गये।जहां उन्होंने पुरानी पद्धति से चली आ रही कृषि को छोड़ कर नई वैज्ञानिक विधि से खेती करने का मन बनाया वहीं जिसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र में डाक्टर दया शंकर श्रीवास्तव से सम्पर्क हुवा तो उन्होंने स्ट्राबैरी के साथ सफ़सली खेती की जानकारी मिली।

ऐसे करते है स्ट्राबैरी की खेती होता है अधिक मुनाफ़ा

नवीन मोहन राजवंशी बताते है कि खेत को पहले अच्छी तरह से जुताई करके भूमि शोधित के लिये ट्राइकोडर्मा,सोडोमोनास, देशी गुड़ को गोबर में मिला कर के तीन दिन रख देते है। उसके बाद इस खाद को अच्छी तरीके से पूरे खेत मे बुरकाव करवा कर रोटावेटर से जुताई कर देते है।बेड मेकर से बेड बनाकर उसको एक से दो दिन के लिये छोड़ देते है और उसमे ड्रिप डाल देते है।ताकि पानी भी खराब हर पौधे को संतुलित मात्रा पानी पहुचता रहे।इसके बाद सवा फिट की दूरी पर पौधे की रोपाई कर देता हूं।

एक एकड़ में लागत 3 लाख लागत कमाई दो गुनी

अच्छा उत्पादन लेने के लिये मैंने एक एकड़ खेत मे 20000 पौधे को एक फिट की दूरी पर लगाना चाहिए लेकिन मैंने इसकी जगह पर डेढ़ फीट की दूरी पर पौधों को लगाया है।इसका फायदा यह है कि पौधे में फंगस की समस्या नही आती है।और पौधे की देखभाल भी बहुत अच्छे से हो जाती है।इसके अलावा उत्पादन एक एकड़ में 150 से 160 कुन्तल होता हैं।वही लागत की बात करें तो एक एकड़ में पहले साल में ड्रिप को मिलकर कर के तीन लाख रुपये आती है।वही आमदनी की बात करें तो 6 माह दो गुनी होती है।

स्ट्राबैरी के साथ सहफ़सली से लागत हो जाती है कम

स्ट्राबैरी के साथ ही साथ हमने बीच वाली नालियों में गेंदा के पौधों को लगाया है।जिससे हमारी लागत गेंदे से निकल आती है। इसके बाद जब गेंदा खत्म होता है तो उसी में खरबूजा लगा देते जब तक खरबूजा तैयार होता है।तब तक स्ट्राबैरी ख़त्म हो जाती है।एक एकड़ में खरबूजे का औसतन उत्पादन 160 से 170 कुन्तल मिल जाता है।

स्ट्राबैरी खेती पर सरकार भी दे रही अनुदान

सीतापुर जिले जिला उद्यान अधिकारी सौरभ श्रीवास्तव ने नमामि भारत से बात करते हुये बताया कि स्ट्राबैरी की खेती को बढ़ावा देने के लिये सरकार भी बढ़ावा दे रही है।प्रति हैक्टेयर 50000 रुपये का अनुदान पहले आओ पहले पाओ स्कीम की तर्ज पर दिया जा रहा है।जिले के जो भी किसान स्ट्राबैरी की खेती करना चाहते है वो किसी कार्य दिवस में विभाग कार्यालय में आकर या स्वयं से अपना पंजीकरण करा सकते हैं।

गांव में लोगो को मुहैया करा रहे रोजगार

नवीन मोहन राजवंशी ने बताया कि अधिकांश लोग रोजगार की तलाश में शहर की ओर पलायन कर रहे है।लेकिन जब से मैंने गांव में स्ट्राबैरी की खेती करी है तब से गाँव के बेरोजगार लोग हमारे पर फार्म 2 दर्जन से अधिक लोगो को गांव में रोजगार दे रखा है।

News Reporter
मोहित शुक्ला, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में रहते हैं और नमामि भारत में जर्नलिस्ट हैं।और पिछले 5 सालों से कृषि क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे हैं. इससे पहले वो गाँव कनेक्शन में भी पत्रकारिता कर चुके हैं। कृषि और इनवायरमेंट उनका पसंदीदा क्षेत्र है।
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