; बेतहाशा बढ़ती हुई महंगाई से किसानों की कमर टूटी कमर
बेतहाशा बढ़ती हुई महंगाई से किसानों की कमर टूटी कमर

किशन कुमार। लगातार बढ़ती हुई मुश्किलों से किसानों की कमर टूट गई है। पिछले 16 महीनों से कोरोना महामारी आने के चलते जहां पर एक तरफ लोगों की आय बंद हो चुकी है । वहीं दूसरी तरफ बेतहाशा बढ़ती हुई महंगाई से लोगों के आंसू निकल रहे हैं । ऊपर से किसानों की बात अलग है उनकी आंख से आंसू नहीं खून निकलते हैं । क्योंकि यह लोग बड़ी ही मेहनत और कड़ी मशक्कत करने के बाद जिस फसल को तैयार करते हैं वह फसल मौके पर औने पौने दामों में बिकती है । जिसके कारण फसल में लगने वाली लागत भी वापस नहीं आ पाती है ।

लगातार बढ़ती महंगाई के चलते खाद बीज और खेतों ट्रैक्टर से जुताई इत्यादि सभी चीजें महंगी हो गई है । इन दिनों प्रकृति नाराज दिखाई पड़ रही है उसका भी कहर देखने को मिल रहा है । मानसून का दूर-दूर तक कहीं कोई अता पता नहीं है । किसानों के धान की नर्सरी तैयार हैं धान की रोपाई कहीं-कहीं पर की जा रही है । लेकिन अधिकतर किसान आसमान पर निगाह लगाए देख रहे हैं कब बारिश होगी और कब वह धान की रोपाई करें। क्योंकि कहीं कहीं पर तो नलकूप का भी सहारा नहीं है और जहां पर नलकूप लगे हुए हैं वहां पर 200 रुपये प्रति घंटे के हिसाब से पानी खरीदना किसानों की संपूर्ण अर्थव्यवस्था को चौपट कर दे रहा है ।

कहीं-कहीं पर सिंचाई के लिए नहर की व्यवस्था है लेकिन सूखी पड़ी नहरे इस बात की गवाह है की किसानों को समय पर पानी नहीं मिलता है । हालांकि सरकार के द्वारा नहरों को सफाई करने के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए फेंके जाते हैं । लेकिन इसके बावजूद टेल तक पानी नहीं पहुंच पाता है । जब पानी की जरूरत खत्म हो जाती है तब नहरों में पानी आता ही नहीं है । लगातार बढ़ते पेट्रोलियम पदार्थों के दामों ने सबसे ज्यादा किसानों को ही अपनी चपेट में लिया है । क्योंकि ट्रैक्टर से जुताई और ट्यूबवेल से सिंचाई इन दोनों में डीजल की आवश्यकता होती है । लेकिन डीजल इतना महंगा हो गया है कि अब खेती करना आसान नहीं है ।

यही नहीं डीजल के दामों में बढ़ोतरी के चलते माल भाड़े में भी बढ़ोतरी हुई है । जिसके कारण खाद बीज इत्यादि सभी कुछ महंगे हो गए हैं । महंगाई अपने चरम पर है लेकिन किसानों की बात करने वाली सरकार को यह सब नहीं दिखाई पड़ता है । इससे भी बड़ी बात तो यह है कि जब किसानों की फसल किसी तरह से तैयार होती है तो सरकार के द्वारा घोषित समर्थन मूल्य पर किसानों की फसल नहीं बिक पाती है ।

जो भी अधिकारी कर्मचारी रहते हैं वह बिचौलियों की मिलीभगत से सेठ साहूकारों से एकमुश्त धान और गेहूं खरीद कर अपना लक्ष्य पूरा कर लेते हैं और वही सेठ साहूकार औने पौने दाम पर किसानों से उनकी फसल को खरीदता है । ऐसे में किसानों ने सरकार से गुहार लगाई है कि महंगाई पर नियंत्रण किया जाए और नहरों में पानी छोड़ा जाए जिससे थोड़ी बहुत राहत मिल सके।

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