; उत्तराधिकार पर SUPREME COURT ने सुनाया फैसला, पिता के परिवार को अपनी संपत्ति देने में हिन्दू महिला पूरी तरह स्वतंत्र - Namami Bharat
उत्तराधिकार पर SUPREME COURT ने सुनाया फैसला, पिता के परिवार को अपनी संपत्ति देने में हिन्दू महिला पूरी तरह स्वतंत्र

देश की सर्वोच्च अदालत ने उत्तराधिकार को लेकर एक बड़ा फैसला दिया है। जिसके तहत हिंदू महिला के पिता की तरफ के लोगों को उसकी संपत्ति में उत्तराधिकारी माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये व्यवस्था सिर्फ सिर्फ हिंदू महिलाओं को लेकर ही बताई। इसके मुताबिक ऐसे परिजनों को परिवार से बाहर का व्यक्ति नहीं माना जा सकता, हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 15.1.D के दायरे में आएंगे और संपत्ति के उत्तराधिकारी होंगे। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने महिला के देवर के बच्चों की वो याचिका खारिज कर दी है, जिसमें महिला द्वारा अपने भाई के बच्चों को संपत्ति दिये जाने को चुनौती दी गई थी। चलिए जानते हैं क्या है पूरा मामला।

क्या है ये पूरा मामला?

यह महत्वपूर्ण फैसला जस्टिस अशोक भूषण व जस्टिस आर.सुभाष रेड्डी की पीठ ने हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसलों को सही ठहराते हुए सुनाया है। दरअसल, कोर्ट में एक महिला जग्नो को उसके पति की संपत्ति मिली थी। महिला के पति की मौत 1953 में हो गई थी। उसको कोई बच्चा नहीं था, इसलिए कृषि संपत्ति का आधा हिस्सा पत्नी को मिला। उत्तराधिकार कानून, 1956 बनने के बाद धारा 14 के अनुसार, पत्नी संपत्ति की एकमात्र पूर्ण वारिस हो गई। इसके बाद जग्नो ने इस संपत्ति के लिए एक एग्रीमेंट किया और संपत्ति अपने भाई के पुत्रों के नाम कर दी। इसके बाद उनके भाई के बेटों ने 1991 में सिविल कोर्ट में वाद दायर किया कि उन्हें मिली संपत्ति का स्वामित्व उनके पक्ष में घोषित किया जाए। जग्नो ने इसका प्रतिवाद नहीं किया और अपनी संस्तुति दे दी

सुप्रीम कोर्ट का क्या है तर्क?

सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न पूर्व फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि कोर्ट पूर्व फैसलों में सभी पहलुओं पर विचार कर चुका है। कोर्ट ने कहा था कि परिवार को सीमित नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि व्यापक रूप में लिया जाना चाहिए। परिवार मे सिर्फ नजदीकी रिश्तेदार या उत्तराधिकारी ही नहीं आते बल्कि वे लोग भी आते हैं जिनका थोड़ा भी मालिकाना हक बनता हो या जो थोड़ा भी हक का दावा कर सकते हों। कोर्ट ने साथ में यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी संपत्ति जिसमें पहले से ही अधिकार सृजित है, उस पर यदि कोई संस्तुति डिक्री होती है तो उसे रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 17.2 के तहत पंजीकृत करवाने की जरूरत भी नहीं है।

News Reporter
Vikas is an avid reader who has chosen writing as a passion back then in 2015. His mastery is supplemented with the knowledge of the entire SEO strategy and community management. Skilled with Writing, Marketing, PR, management, he has played a pivotal in brand upliftment. Being a content strategist cum specialist, he devotes his maximum time to research & development. He precisely understands current content demand and delivers awe-inspiring content with the intent to bring favorable results. In his free time, he loves to watch web series and travel to hill stations.
error: Content is protected !!