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यूपी चुनाव 2022: कैसा है लखीमपुर सदर विधानसभा सीट का समीकरण, जानिए पूरा इतिहास

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर ज़िले की 8 विधानसभा सीटों में शामिल लखीमपुर सदर, 2017 के चुनाव में हुए नए परसीमन के बाद, दो नगर पंचायत और तीन ब्लॉकों जोड़ा गया था. तब इस विधानसभा में मतदाताओं की संख्या  392847 थी. जिनमें पुरूष मतदाताओं की संख्या 2,09,322 और महिला मतदाताओं की संख्या 1,83,508 थी. लखीमपुर विधानसभा सीट पर दो दशकों से समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा. 2017 में जब पीएम मोदी के नाम पर विधानसभा चुनाव हुआ, तब यह सीट समाजवादी पार्टी के खाते से बीजेपी के खाते में चली गई थी. यूं तो हर सीट राजनीतिक पार्टियों के लिए खास है लेकिन लखीमपुर खीरी ज़िले की सदर विधानसभा सीट का अपना महत्व है.

उत्तर प्रदेश के अवध प्रांत के तराई क्षेत्र की यह विधानसभा खीरी लोकसभा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह इलाका गन्ने की खेती के लिए जाना जाता है. इस सीट पर जनसंघ के जमाने से अब तक कुर्मी बाहुल्य होने के नाते कुर्मी ही चुनकर विधानसभा पहुंचे हैं. समाजवादी पार्टी से डॉक्टर कौशल किशोर लगातार तीन बार चुनाव जीते. जिसमें तीसरे कार्यकाल के दौरान उनकी आकस्मिक मृत्यु के बाद उनके पौत्र उत्कर्ष वर्मा ने उपचुनाव में जीत हासिल कर 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर जीत हासिल की थी.

2022 विधानसभा चुनाव में एक बार फिर समाजवादी पार्टी यह सीट हासिल करने के लिए जोर आजमाइश करती नजर आ रही है. वहीं भाजपा इस सीट पर अपना कब्जा बनाए रखने की कवायद में लगी है. बसपा व कांग्रेस भी अपने अस्तित्व को बनाये रखने की लड़ाई लड़ती दिख रही है.

लखीमपुर विधानसभा के लिए 1951 से लेकर 2017 तक चुनाव हुए हैं. पहले विधानसभा चुनाव में जब इस सीट का नाम लखीमपुर दक्षिण था तो कांग्रेस के छेदालाल चौधरी ने जीत हासिल की थी.

1957 में प्रसोपा के शिव प्रसाद ने कांग्रेस की गोदावरी को शिकस्त दी थी. 

1962 में एक इस विधानसभा सीट का नाम खीरी हो गया था. जिस पर कांग्रेस के टुन्नू सिंह ने जनसंघ के चेतराम वर्मा को हराकर जीत हासिल की थी. 

1967 में हुए विधानसभा चुनाव में जनसंघ के चेतराम वर्मा को जीत हासिल हुई थी. जिसमें निकटतम प्रतिद्वंदी ए.अली प्रसोपा के रहे थे. 

1969 में हुए उपचुनाव में एक बार फिर यह सीट कांग्रेस  के तेज नरायण त्रिवेदी ने जनसंघ के चेतराम वर्मा को शिकस्त देकर हासिल की.

1974 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दोबारा यह सीट बचाने में कामयाब रही. दोबारा तेज नरायण त्रिवेदी ने जीत हासिल की थी. 

1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने जिले के नामी अधिवक्ता नरेश चंद वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा. जिन्होंने कांग्रेस के पूर्व राज्य वन मंत्री जफर अली नकवी को शिकस्त दी थी. 

1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जफर अली नकवी ने अस्तित्व में आई भाजपा के टिकट से लड़ रहे अधिवक्ता नरेश चन्द्र वर्मा को बड़े अंतर से शिकस्त दी थी. 

1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कांति सिंह बिसेन ने लोकदल के डॉ. कौशल किशोर को शिकस्त दी थी.

1989 में कांग्रेस के जफर अली नकवी ने जनता दल के डॉक्टर कौशल किशोर को शिकस्त दी थी. 

1991 के विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी के रामगोपाल वर्मा ने कांग्रेस उम्मीदवार जफर अली नकवी को शिकस्त दी थी. 

1993 में भाजपा यह सीट बरकरार रखने में कामयाब रही. वहीं समाजवादी पार्टी के मुजफ्फर अली को हार का सामना करना पड़ा. 

1996 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के डॉ. कौशल किशोर वर्मा ने भाजपा के राम गोपाल वर्मा को शिकस्त दी थी. 

2002 में समाजवादी पार्टी के डॉक्टर कौशल किशोर ने सीट बरकरार रखते हुए शक्ति दल के ज्ञान प्रकाश बाजपेई को मामूली अंतर से शिकस्त दी थी.

2007 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के डॉ. कौशल किशोर अपनी जीत तीसरी बार बरकरार रखने में कामयाब रहे. वहीं बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़ रहे ज्ञानप्रकाश बाजपेई को हार का सामना करना पड़ा. 

2012 में डॉ. कौशल किशोर की आकस्मिक मृत्यु के बाद समाजवादी पार्टी ने उनके पौत्र उत्कर्ष वर्मा को मैदान में उतारा था. जिसमें तीसरी बार बहुजन समाज पार्टी के टिकट से लड़ रहे ज्ञानप्रकाश बाजपेई को भारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.

1996 के बाद भारतीय जनता पार्टी, इस सीट को पाने के लिए बेताब थी. बीजेपी ने छात्र राजनीति से आए योगेश वर्मा पर भरोसा जताते हुए उन्हें मैदान में उतारा. भारतीय जनता पार्टी ने जिले की सभी सीटों के साथ इस सीट पर कब्जा करते हुए समाजवादी पार्टी के उत्कर्ष वर्मा को रिकॉर्ड मतों से शिकस्त दी. वहीं बहुजन समाज पार्टी के शशिधर 39068 मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे. 

2017 विधानसभा चुनाव में वोटों की संख्या की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी के विजयी विधायक योगेश वर्मा को 1,22,677 वोट मिले थे. वहीं निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के उत्कर्ष वर्मा को 84,929 मतों से संतोष करना पड़ा था. 2017 के चुनाव का मत प्रतिशत 64.97 था. जबकि जीत का मार्जिन प्रतिशत 14.77 रहा। इस बार यहां की जनता किसको अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व देगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन समाजवादी पार्टी इस बार सदर सीट को फिर से अपने कब्जे में करने को बेताब है।

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