; मोदी को लेकर महागठबंधन में पड़ रही फूट, राजनीतिक दलों के प्रमुखों को ही नहीं रहा भरोसा
मोदी को लेकर महागठबंधन में पड़ रही फूट, राजनीतिक दलों के प्रमुखों को ही नहीं रहा भरोसा

नितिन उपाध्याय/रवि..दुनियां का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत देश साल 2019 में एक बार फिर 16वीं लोकसभा चुनाव का गवाह बनने जा रहा है।जैसे जैसे चुनाव नजदीकी आहट ले रहा है वैसे वैसे 2019 की सत्ता में नरेन्द्र मोदी की वापसी को रोकने के लिए तीसरे मोर्चे या महागठबंधन में भी मजबूत चुनावी बिसात बिछाने का तराना गूँज रहा है लेकिन इस तराने को लेकर महागठबंधन में राजनीतिक दलों के प्रमुखों के विरोध के सुर भी सुने जा सकते है।साल 2019 में पीएम मोदी का विजयी अभियान रोकने के लिए इस तीसरे मोर्चे या महागठबंधन में एकमत नजर नहीं आ रहा है।

एक ताजा बयान एनसीपी के प्रमुख शरद पवार का है जिन्होंने कहा कि मोदी के खिलाफ महागठबंधन या तीसरे मोर्चेा अव्यावहारिक है।पीएम मोदी के खिलाफ एकजुटता दिखा रहा विपक्षी खेमे के लिए यह एक बड़ा झटका है।

तीसरा मोर्चा अव्यावहारिक, महागठबंधन बनना नहीं चाहिए

हाल ही में एनसीपी के प्रमुख शरद पवार ने एक अंग्रेजी चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा था कि मोदी के खिलाफ तीसरा मोर्चा अव्यावहारिक है। मैं महागठबंधन पर भरोसा नहीं करता हूँ।इसलिए महागठबंधन बनना नहीं चाहिए हालांकि मेरे कई साथी महागठबंधन को चाहते है। पवार ने कहा कि भारतीय राजनीति में अब साल 1977 जैसे हालात बन गए है।

एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने ऐसे वक्त बयान दिया है जब जेडीएस प्रमुख एचडी देवगौड़ा तीसरा मोर्चा बनाने पर जोर दे रहे है।वहीं दूसरी ओर टीएमसी प्रमुख ममता बेनर्जी और तेलगांना राष्ट्र समिति प्रमुख चन्द्रशेखर राव ने मिलकर तीसरा मोर्चा बनाने पर जोर दिया है।कांग्रेस पार्टी महागठबंधन बनाने पर जोर दे रही है क्योंकि ये उसके लिए फायदेमंद होगा।

 

मोदी को अकेले दम पर हराना मुश्किल, मोदी को लेकर ये रहे विपक्ष के हथियार

विपक्ष इस बात से भली भांति परिचित है कि अकेले दम पर भाजपा पार्टी को हराना आज की परिस्थिति में नामुमकिन नजर आता है। साल 2014 की सफलता के बाद लगातार हुए विधानसभा चुनावों में अगर कुछ अपवादों को छोड़कर बाहर निकलकर देखा जाए तो बीजेपी अपना जीत का परचम लहराने में कामयाब रही। पुराने राजनीतिक समीकरणों के सहारे तो विपक्षी नैया पार लगते नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि यूपी के उपचुनावों में भाजपा को हराने के लिए बसपा सपा ने सालों पुरानी दुश्मनी को छोड़कर हाथ मिलाना पड़ा। तभी सपा बसपा को बीजेपी हराने के लिए जीत का फॉर्मूला मिल पाया था।इसलिए विपक्ष को नये राजनीतिक समीकरण तलाशने की जरूरत है।

कर्नाटक में भी कांग्रेस ने चुनाव से पहले जेडीएस के साथ गठबंधन करने से मना कर दिया था लेकिन चुनाव के परिणाम आने के बाद भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन कर लिया था।

यूपी में भी दांवपेंच

यूपी में भी आगामी चुनाव को देखते हुए सपा बसपा ने हाथ मिलाकर एक दांवपेंच चला है। सपा बसपा के इस दांवपेंच से उनको उपचुनाव में सफलता मिली। लेकिन यूपी में सपा के मुलायम सिंह यादव ने इस गठबंधन में कांग्रेस पार्टी को प्रवेश नहीं देने की सलाह दी है। इससे पहले यूपी के इस गठबंधन में कांग्रेस को केवल दो सीट देने की बात सामने आ रही है।अब देखना होगा कि गठबंधन में कांग्रेस को लेकर फंसे इस दांवपेंच में क्या मोड़ सामने नजर आता है।  

विपक्ष की कशमकश

इस समय साल 2019 के तीसरे मोर्चे या महागठबंधन की एकजुटता चुनाव से पहले ही बिखरती नजर आ रही है। एक के बाद एक नेताओं के बयान कांग्रेस की चिंता बढ़ा रहे है।शरद पवार के बाद अब देवगौड़ा के चुनावी सुर कांग्रेस की चिंता बढ़ा रहे है। वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में भी ममता के साथ कांग्रेस नेता जाने को तैयार नहीं दिख रहे है और यूपी में भी सपा बसपा कांग्रेस का साथ छोड़ने को बैठी है।

तेलगांना में भी राय कुछ अलग नजर आ रही है सीएम केसीआर चाहते है कि मोदी को रोकने के लिए तीसरा मोर्चा बनाया जाए।जबकि केसीआर का सीधा मुकाबला कांग्रेस पार्टी से ही है और वह गैर कांग्रेसी दलों को एक करने के लिए मुलाकात भी कर रहे है।

पश्चिम बंगाल में भी कुछ बात बनती नजर नहीं आ रही है। सीएम दीदी ममता चाहती है आगामी आम चुनाव में भाजपा को हार का मुँह दिखाने के लिए तीसरा मोर्चा तैयार किया जाए और जिस राज्य में जो सबसे बड़ी पार्टी है वो छोटे दलों को अपने साथ मिला लें।बहरहाल विपक्ष के बौखलाने से एक बात साफ नजर आ रही है कि 2019 में भाजपा को हराना इतना आसान नहीं है।विपक्ष में पड़े इस आपसी सलाह की फूट से देखा जाएगा साल 2019 के लिए तैयार होने वाला विपक्षी मंच महागठबंधन का रूप लेगा या तीसरे मोर्चे का।

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