; फसल अवशेष जलाने के हानिकारक प्रभाव एवं उनका प्रबंधन: अवनीश कुमार सिंह
फसल अवशेष जलाने के हानिकारक प्रभाव एवं उनका प्रबंधन

पवन पाण्डेय पीपीगंज।महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केद्र के शस्य वैज्ञानिक अवनीश कुमार सिंह ने बताया की फसल अवशेष जलना सामजिक बुराई के साथ-साथ एक अपराध भी है जिसमे जुर्माना के साथ साथ सजा का प्रावधान भी है अतः किसान भाई से आग्रह की इस समय गेहूँ, सरसों एवं अन्य फसलो की कटाई का कार्य चल रहा है इनके अवशेषों का प्रबंधन कर मृदा एवं वातावरण को स्वस्थ बनाये I
अवशेष जलाने के हानिकारक प्रभाव:- अवशेष जलाने से खेत की मिटटी के साथ साथ वातावरण पर भी हानिकारक प्रभाव बढता है जैसे- मृदा के तापमान  में वृद्धि, मृदा की सतह का सख्त होना, मुख्य पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश की उपलब्धता में कमी एवं अत्यधिक मात्रा में वायु प्रदूषण आदि जैसे नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। मृदा की सतह का तापमान 50-55 डिग्री सेन्टीग्रेट हो जाता है, ऐसी दशा में मिट्टी में पाये जाने वाले लाभदायक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं जो खेतों में डाले गये खाद एवं उर्वरक को घुलनशील बनाकर पौधों को उपलब्ध कराते हैं। इसी तरह मिट्टी में लाभदायक फफूद भी नष्ट हो जाते जो मिट्टी में पाये जाने वाले उकठा रोग, जड़ सड़न, कालर सड़न, पाद गलन रोग के कारकों तथा सूत्रकृमियों को प्राकृतिक रूप से नष्ट करते रहते हैं। इन्हीं सूक्ष्म जीवों के नष्ट हो जाने से उत्पादन भी प्रभावित होता है और हमें इन्ही सूक्ष्म जीवों को बाजार से खरीद कर अलग से फसलो को देना पड़ता है। फसल अवषेशों को जलाने से मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है क्योकि ये मित्र कीट फसलो के हानिकारक कीटों का शिकार करके उनका नियंत्रण करते है

कृषि वैज्ञानिक, अवनीश सिंह


फसल अवशेष प्रबंधन से मृदा के लाभ:- यदि किसान भाई फसल अवशेष को जलाने के बजाये उनको वापस मृदा में मिलाये तो मृदा के भौतिक गुडो में सुधार होता है, क्योकि मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मृदा की परत में कठोरता कम होती है और जल धारण क्षमता बढ़ जाती हैI मृदा की उर्वरा शक्ति में सुधर होता है जिससे फ़सल उत्पादन में वृद्धि होती है I
क्या करें किसान भाई:- किसान भाई गेहूँ की कम्बाइन से कटाई के उपरांत अवशेष का भूंसा बना ले अथवा फसल अवशेष को खेत में ही सडा के खाद बनाये, फसल की कटाई के बाद घास-फूस, पतियाँ, ठूंठ, इत्यादि फसल अवषेशों को सड़ाने के लिए पहली बारिश होते ही या सिचाई करके 20 से 25 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर बिखेर दे और कल्टीवेटर या रोटावेटर की मदद से मिट्टी में मिला देना चाहिए। इसे अतिरिक्त किसान भाई वेस्ट डीकम्पोजर का भी प्रयोग कर सकते है I वेस्ट डीकम्पोजर की एक शीशी जो बीस रुपय की बाजार में मिलती है उसको 200 लीटर पानी के ड्रम में 2 किलोग्राम गुड के साथ मिलकर एक डंडे की सहायता से मिला देते है और 2-3 दिन के अन्तराल पर यह प्रक्रिया दोहराते है तत्पश्चात 6 से 8 दिन में वेस्ट डीकम्पोजर तैयार हो जाता है अब इस घोल को सिचाई जल के साथ फसल अवशेष को सडाने-गलाने में प्रयोग कर सकते हैI इसी तैयार डीकम्पोजर घोल से 20 लीटर बचा कर पुनः प्रक्रिया दोहरा कर वेस्ट डीकम्पोजर तैयार कर सकते है I इस प्रकार अवषेश खेतों में विघटित होकर मिट्टी में मिल जाते हैं और जीवाणुओं के माध्यम से ह्यूमस में बदलकर खेत में पोषक तत्व तथा कार्बन तत्व की मात्र को बढ़ देते हैं। यदि इन अवशेषों को सही ढंग से खेती में उपयोग करें तो इसके द्वारा हम पोषक तत्वों के एक बहुत बड़े अंश की पूर्ति इन अवशेषों के माध्यम से पूरा कर सकते हैं और मृदा के स्वस्थ के साथ साथ फसल उत्पादन में भी वृद्धि कर सकते है ।

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