सत्ता प्राप्ति की आपाधापी से उपजी समस्याएं, चुनाव आने पर ही क्यों उछलते हैं मुद्दे

चुनाव आते ही किसान आन्दोलन, शिलांग में हिंसा, रामजन्म भूमि विवाद, कावेरी जल, नक्सलवाद, कश्मीर मुद्दा आदि ऐसी समस्याएं हैं, जो चुनाव के निकट आते ही मुखर हो जाती है। ये मुद्दे एवं समस्याएं आम भारतीय नागरिक को भ्रम में डालने वाली है एवं इनको गर्माकर राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने का सोचा-समझा प्रयास किया जा रहा है। सभी राजनैतिक दल चुनावपूर्व सत्ता प्राप्ति की आपाधापी में लगे हुए हैं। देश की जनता उन्हें  जिन लक्ष्यों एवं उद्देश्यों के लिये जनादेश देती है, चुनकर आने के बाद राजनीतिक दल उन्हें भुला देती है। राजनीतिक दल न अपना आचरण बदलती है, नहीं ही तोर-तरीके, वे ही बातें, वैसा ही चरित्र- जैसे सारी कवायद मतदाता को ठगने के लिये होती है। बात चाहे पक्ष की हो या विपक्ष की- येन-केन-प्रकारेण सत्ता हासिल करने का उन्माद सवार है। इन स्थितियों में जो बात उभरकर सामने आई है वह यह है कि ”हम बंट कितने जल्दी जाते हैं, हम ठगे कितनी जल्दी जाते हैं।“

अयोध्या में श्रीराम मन्दिर निर्माण को लेकर जिस तरह का निरर्थक विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है उसका लक्ष्य 2019 के लोकसभा चुनाव ही हैं। सबसे आश्चर्यजनक प्रसंग यह है कि कुछ हिन्दू साधु-सन्त सरकार को धमकी दे रहे हैं कि यदि मन्दिर निर्माण नहीं कराया गया तो चुनावों में भाजपा की जीत नहीं होगी। राष्ट्र जब आर्थिक एवं आतंकवाद की समस्याओं से जूझ रहा है तब इस प्रकार की घटनाएं देशवासियों की भावनाओं को घायल कर देती हैं। एक सदी पुराने इस विवाद को किसी भी पक्ष को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। न ही किसी फैसले को हार या जीत समझना चाहिए। यह श्रीराम के नाम पर आम भारतीय नागरिक को बांटने का षडयंत्र है। भारतीय लोकतान्त्रिक प्रशासन प्रणाली के तहत कोई भी सरकार किसी भी धार्मिक स्थल का निर्माण नहीं करा सकती है। मन्दिर, मस्जिद या गुरुद्वारे बनाने का काम सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं का होता है, सरकारों का नहीं। सरकार का काम केवल धार्मिक सौहार्द बनाये रखने व सभी धर्मों का समान आदर करने का होता है। ऐसा लग रहा है वर्तमान सरकार को इस मुद्दे पर दबाव में लाने की कोशिश की जा रही है। भारत ने स्वतन्त्रता के बाद जिस धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त को अपना कर अपने विकास का सफर शुरू किया उसकी पहली शर्त यही थी कि इस देश के नागरिक उन अन्ध विश्वासों को ताक पर रखकर बहुधर्मी समाज की संरचना वैज्ञानिक नजरिये से करेंगे, जो उन्हें आपस में एक-दूसरे को जोड़ सके न कि तोडे़।

शिलांग में मामूली झगडे़ को स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा बनाने के पीछे भी राजनीति साजिश के ही संकेत मिल रहे हैं। व्यापक हिंसा एवं तनाव के बाद वहां करीब तीन हजार दलित सिख जिस पंजाब लेन में रहते हैं, वे या तो भयाक्रांत होकर घरों में बन्द हैं या फिर गुरुद्वारा अथवा सेना के शिविरों में शरण लिये हुए हैं। कुछ सेवाभावी संगठन उन्हें राशन और अन्य सहायता पहुंचा रहे हैं। सेना तेनात है, कफ्र्यू लगा है। लगभग एक सप्ताह हो जाने के बाद भी वहां की हवाओं में पेट्रोल बमों एवं आंसू गेस के गोलों की गंध व्याप्त है। देश की एकता एवं सामाजिक सामंजस्य को उग्र संगठन एवं सत्ता के लिये लालायित राजनेता ध्वस्त करने पर तुले हैं। अपने ही देश में अपने लोगों के साथ इस तरह का व्यवहार आखिर कब तक?

एक और समस्या ने देश की जनता को घायल किये हुए हैं। दस दिन तक चलने वाली किसानों की हड़ताल भले ही शांतिपूर्ण हो, लेकिन इससे अराजक माहौल तो बना ही है। देश के कई राज्यों में किसानों ने आंदोलन किया है। इस दौरान उन्होंने फलों, सब्जियों सहित दूध को सड़कों पर गिरा दिया। गौरतलब है कि किसान सब्जियों के न्यूनतम समर्थन मूल्य और न्यूनतम आय, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू किए जाने समेत कई मुद्दों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों के आंदोलन को देखते हुए सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए हैं। हालांकि आंदोलन के चलते देश के कुछ हिस्सों में फल, सब्जी और दूध लोगों तक आसानी से नहीं पहुंच पा रहा है। किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर मध्य प्रदेश में देखा जा रहा है। किसानों को भड़काया जा रहा है, उनको जगह-जगह सरकार के विरोध में खड़ा किया जा रहा है। यह सही है कि किसानों की बहुत-सी समस्याएं है, मगर सरकार उन्हें दूर करने के लिये लगातार प्रयास करती रहती है। यह समस्या आज की नहीं है, जब बारडोली आन्दोलन के बाद किसानों की मांगंे तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने स्वीकार कर ली, उस आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले सरदार पटेल ने अपने अनुयायियों को विजय उत्सव नहीं मनाने दिया। उन्होंने कहा कि,  आन्दोलन का अर्थ है कि किसानों के साथ जो अन्याय हो रहा था, वह मिटा दिया गया। किसी की जीत व हार का प्रश्न नहीं है।“ आज भी वही भावना पैदा करनी होगी, समस्या का निदान होना चाहिए। लेकिन उस पर राजनीति न हो।

पानी जीवन है। किन्तु इस पानी ने कर्नाटक एवं तमिलनाडु दो पड़ोसी प्रान्तों को जैसे दो राष्ट्र बना दिया है। कावेरी नदी जो दोनों राष्ट्रों के बीच बहती है, वहाँ के राजनीतिज्ञ उसे फाड़ देना चाहते हैं। सौ से अधिक वर्षों से चल रहा आपसी विवाद एक राय नहीं होने के कारण आज इस मोड़ पर पहुंच गया है तथा दोनों प्रान्तों के लोगों की जन भावना इतनी उग्र बना दी गई है कि परस्पर एक-दूसरे को दुश्मन समझ रहे हैं। जबकि कावेरी नदी में पानी जोर-शोर से बह रहा है। बांधों मंे पानी समा नहीं रहा है। कावेरी को राजनीतिज्ञ और कानूनी बनाया जा रहा है। जब देश की अखण्डता के लिए देशवासी संघर्ष कर रहे हैं तब हम इन छोटे-छोटे मुद्दे उठाकर देश को खण्ड-खण्ड करने की सीमा तक चले जाते हैं। जब-जब कावेरी के पानी को राजनीति केे रंग से रंगने की कोशिश की जाती है, तब तब दक्षिण भारत की इस नदी में भले ही उफान न आया हो लेकिन पूरे भारत की राजनीति इससे प्रभावित हो जाती है।

बहुत वर्षों से नदी के पानी को लेकर अनेक प्रान्तों में विवाद है- पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि। राजनीतिज्ञ केवल यही दृष्टिकोण रखते हैं कि नदी का पानी उसका, जहां से नदी निकलती है। पर मानवीय नियम यह है कि नदी का पानी उसका, जहां प्यास है। आज एक प्रान्त की मिट्टी उड़कर दूसरी जगह जाती है तो कोई नहीं रोक सकता। बिजली कहीं पैदा होती है, कोयला कहीं निकलता है, पैट्रोल कहीं शुद्ध होता है। गेहूँ, चावल, रुई, पाट, फल पैदा कहीं होते हैं और जाते सब जगह हैं। अगर हम थोड़ा ऊपर उठकर देखें तो स्पष्ट दिखाई देगा कि अगर इस प्रकार से एक प्रान्त दूसरे प्रान्त को अपना उत्पाद या प्राकृतिक स्रोत नहीं देगा तब दूसरा प्रांत भी कैसे अपेक्षा कर सकता है कि शेष प्रान्त उसकी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहें। पानी की कमी नहीं है, विवेक की कमी है। राष्ट्रीय भावना की कमी है। क्या हमें अभी भी देश के मानचित्र को पढ़ना होगा? राष्ट्रीय एकता को समझना होगा?

कश्मीर में रमजान के दौरान सीजफायर की भारत सरकार की घोषणा के बावजूद हिंसा और पत्थरबाजी का क्रम बढ़ रहा है। लेकिन भारत अपनी अहिंसक भावना, भाईचारे एवं सद्भावना के चलते ऐसे खतरे मौल लेता रहता है। हर बार उसे निराशा ही झेलनी पड़ती है, लेकिन कब तक? पाकिस्तानी सेना का छल-छद्म से भरा रवैया नया नहीं है। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की सरकार द्वारा पत्थरबाजों की माफी देने का परिणाम भी क्या निकला? विश्वशांति एवं भाईचारे के सिद्धांत में जिसका विश्वास होता है, वह किसी को धोखा नहीं देता, किसी के प्रति आक्रामक नहीं होता। फिर भी पाकिस्तान अपनी अमानवीय एवं हिंसक धारणाओं से प्रतिबद्ध होकर जिस तरह की धोखेबाजी करता है, उससे शांति की कामना कैसे संभव है? बात चले युद्ध विराम की, शांति की, भाईचारे की और कार्य हो अशांति के, द्वेष के, नफरत के तो शांति कैसे संभव होगी? इन राष्ट्रीय एकता को ध्वस्त करने की घटनाओं में भी हमारे राजनेताओं द्वारा राजनीति किया जाना, आश्चर्यजनक है। कब तक सत्ता स्वार्थो के कंचन मृग और कठिनाइयों के रावण रूप बदल-बदलकर आते रहेंगे और नेतृत्व वर्ग कब तक शाखाओं पर कागज के फूल चिपकाकर भंवरों को भरमाते रहेंगे। राजनैतिक दल नित नए नारों की रचना करते रहते हैं।

जो मुद्दे आज देश के सामने हैं वे साफ दिखाई दे रहे हैं। वह मन्दिर, किसान, पानी है। देश को जरूरत है एक साफ-सुथरी शासन प्रणाली एवं आवश्यक बुनियादी सुविधाओं तथा भयमुक्त व्यवस्था की। लोकतंत्र लोगों का तंत्र क्यों नहीं बन रहा है? व्याप्त अनगिनत समस्याएं राष्ट्रीय भय का रूप ले चुकी हैं। आज व्यक्ति बौना हो रहा है, परछाइयां बड़ी हो रही हैं। अन्धेरों से तो हम अवश्य निकल जाएंगे क्योंकि अंधेरों के बाद प्रकाश आता है। पर व्यवस्थाओं का और राष्ट्र संचालन में जो अन्धापन है वह निश्चित ही गढ्ढे मंे गिराने की ओर अग्रसर है। यह स्वीकृत सत्य है कि एक भी राजनैतिक पार्टी ऐसी नहीं जो देश की समस्याओं पर सच बोलती हो। भारतीय जनता ने बार-बार अपने जनादेश में स्पष्ट कर दिया कि जो हाथ पालकी उठा सकते हैं वे हाथ अर्थी भी उठा सकते हैं।

 

– ललित गर्ग

 

News Reporter
Vikas is an avid reader who has chosen writing as a passion back then in 2015. His mastery is supplemented with the knowledge of the entire SEO strategy and community management. Skilled with Writing, Marketing, PR, management, he has played a pivotal in brand upliftment. Being a content strategist cum specialist, he devotes his maximum time to research & development. He precisely understands current content demand and delivers awe-inspiring content with the intent to bring favorable results. In his free time, he loves to watch web series and travel to hill stations.
error: Content is protected !!