नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव की सदन होगी परीक्षा !

पंकज चतुर्वेदी, लखनऊ,। उत्तर प्रदेश विधानमंडल सत्र का बजट सत्र 23 मई से बुलाया गया है. यानी कि अब से ठीक 12 दिनों बाद समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव को विधानसभा के भीतर नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपनी सियासी योग्यता का परिचय देना होगा. अखिलेश को साबित करना होगा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में ही सियासत करने का जो निर्णय लिया है, वह सही है. और वह नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में प्रदेश सरकार की बातों का माकूल जवाब देने में हुए उसे घेरने में सक्षम हैं. अब तक मुलायम सिंह यादव की विरासत को संभालने में असफल रहे अखिलेश यादव अगले पांच वर्षों तक नेता प्रतिपक्ष के रूप में यह सब कर पाएंगे? इसे लेकर पार्टी के सीनियर नेताओं में संशय (संदेह) है.  

क्या सदन में सरकार की बातों का माकूल जवाब दे पाएंगे अखिलेश?

सपा नेताओं को ही अखिलेश यादव की सियासी क्षमताओं पर संशय मुलायम ने अखिलेश को सीएम बनाया पर नेता नहीं बन पाए अखिलेश

पार्टी के सीनियर नेताओं का कहना है कि सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन अखिलेश यादव नेता नहीं बन पाए. नेता वह होता है जो हर परिस्थिति में पार्टी का नेतृत्व करे, सीनियर नेताओं की राय लेकर फैसले ले और सबको साथ लेकर चलते. परन्तु अखिलेश यादव सत्ता पर काबिज होने और सत्ता से बाहर आने के बाद भी ऐसा करते हुए नहीं दिखे. उन्होंने तुकमिजाजी में ना सिर्फ उल्टे सीधे फैसले लिए बल्कि जनाधार वाले सीनियर नेताओं की अनदेखी की. मुलायम सिंह, आजम खान, प्रो. रामगोपाल, शिवपाल, रेवती रमन जैसे पार्टी के वरिष्ठ लोगों के चर्चा किये बिना ही अखिलेश ने पहले कांग्रेस और फिर बसपा से गठबंधन किया. जिसका खामियाजा पार्टी और परिवार झेलना पड़ा. बसपा से गठबंधन करने के बाद भी अखिलेश अपनी पत्नी को चुनाव नहीं जिता सके. बीते विधानसभा चुनावों में भी छोटे दलों से गठबंधन कर अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ा लेकिन वह भाजपा को सत्ता में आने से रोक नहीं सके, क्योंकि पूरे चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने ‘वन मैन आर्मी’ की तरह काम किया.

अखिलेश ने पार्टी और गठबंधन के सीनियर नेताओं के साथ विधानसभा चुनाव में प्रचार करना पसंद नहीं किया. इस कारण पिछड़ों का नेता बनने का उनका सपना 10 मार्च को टूट गया. इसके बाद भी अखिलेश यादव ने अपनी सोच नहीं बदली. अब भी वह अपनी “टीम अखिलेश” के नेताओं के साथ पार्टी के संगठन को मजबूत करने पर चर्चा करते हैं. जबकि टीम अखिलेश में एक भी नेता ऐसा नहीं है जो जनाधार वाला हो. जनाधार वाले नेता रेवतीरमन, अवधेश प्रसाद, बलराम यादव, अरविंद सिंह गोप, राम प्रसाद चौधरी, अंबिका प्रसाद, ओम प्रकाश, शाहिद मंजूर आदि को अखिलेश यादव से मिलने के लिए इन्तजार करना पड़ता है जबकि राजेंद्र चौधरी हर दम अखिलेश के साथ साए की तरह रहते हैं. अखिलेश यादव के ऐसी ही वर्किंग से शिवपाल सिंह यादव जिन्होंने अखिलेश यादव को पढ़ाई का इंतजाम वर्षों तक देखा था को अब अपनी अलग राह लेनी पड़ी है.

सपा के भीतर के ऐसे माहौल को देखते हुए ही अब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की उनकी भूमिका को लेकर सवाल खड़े किया जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव को अपने पिता की तरह सबको जोड़ने की राजनीति नहीं आती. मुलायम सिंह ने तो काशीराम, कल्याण सिंह को अपने साथ जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया था. उनकी मदद से सरकार चलाई थी लेकिन अखिलेश यादव तो ना आजम खान को मना पा रहे हैं और ना ही पार्टी ने अन्य नाराज नेताओं से बात कर रहे हैं. अब तो वह शादी के समारोह में भी अपने चाचा से नमस्कार नहीं करते. राजनीति में ऐसा व्यवहार उचित नहीं माना जाता है.

इसलिए अब यह कहा जा रहा है कि अब अखिलेश यादव को पांच साल नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहना है. वर्ष 2027 तक जब भी विधानसभा बैठेगी योगी आदित्यनाथ व अखिलेश यादव आमने-सामने होंगे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अखिलेश अब तक सड़क पर जनसभाओं में और मीडिया के जरिए एक दूसरे पर हमला करते रहे हैं. अब बात आमने-सामने होगी. सदन में एक ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ होंगे जो अपने धारदार भाषण के जरिए विपक्ष दलों की धज्जियां उड़ाते रहे हैं तो दूसरी ओर अखिलेश यादव के लिए नेता सदन की बातों का माकूल जवाब देने का पूरा मौका होगा. लेकिन अखिलेश के पास उन्हें सलाह देने वाले नेताओं की कमी है क्योंकि पार्टी के सीनियर नेताओं को उन्होंने अपनी तुकमिजाजी के चलते दूर कर रखा है. ऐसे में 23 मई से शुरू होने वाले बजट सत्र में वह कोई छाप छोड़ पाएंगे? इसकी उम्मीद उनकी पार्टी के नेताओं को भी नहीं है. पार्टी नेताओं का कहना है, विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से अब तक अखिलेश यादव ने एक भी ऐसा बयान नहीं दिया जिसका संज्ञान जनता ने लिए हो. ऐसे में विधानसभा सत्र के दौरान अखिलेश कोई सियासी चमत्कार करेंगे, ऐसी उम्मीद करना ठीक नहीं है.

News Reporter
पंकज चतुर्वेदी 'नमामि भारत' वेब न्यूज़ सर्विस में समाचार संपादक हैं। मूल रूप से गोंडा जिले के निवासी पंकज ने अपना करियर अमर उजाला से शुरू किया। माखनलाल लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में परास्नातक पंकज ने काफी समय तक राष्ट्रीय राजधानी में पत्रकारिता की और पंजाब केसरी के साथ काम करते हुए राष्ट्रीय राजनीति को कवर किया है। लेकिन मिट्टी की खुशबू लखनऊ खींच लाई और लोकमत अखबार से जुड़कर सूबे की सियासत कवर करने लगे। 2017 में पंकज ने प्रिंट मीडिया से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरफ रुख किया। उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित चैनल न्यूज वन इंडिया से जुड़कर पंकज ने प्रदेश की राजनीतिक हलचलों को करीब से देखा समझा। 2018 से मार्च 2021 तक जनतंत्र टीवी से जुड़े रहें। पंकज की राजनीतिक ख़बरों में विशेष रुचि है इसीलिए पत्रकारिता की शुरुआत से ही पॉलिटिकल रिपोर्टिंग की तरफ झुकाव रहा है। वह उत्तर प्रदेश की राजनीति की बारीक समझ रखते हैं।
error: Content is protected !!