; पत्रकारिता के नटवरलाल अभिसार शर्मा की पूरी कहानी,जो नहीं जानते जान लें
पत्रकारिता के नटवरलाल अभिसार शर्मा की पूरी कहानी,जो नहीं जानते जान लें

अभिसार शर्मा भी उपेन्द राय की राह पर है। नोएडा के आयकर आयुक्त (अपील) का यही दावा है। अप्रैल 2018 मेंउन्होंने अभिसार शर्मा के खिलाफ केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में शिकायत की है। उसमें अभिसार शर्मा की हेराफेरी का कच्चा चिठ्ठा दर्ज है। वे कहते हैं कि अभिसार शर्मा जब एनडीटीवी से जुड़े थे, तब उनका वेतन महज सात हजार कुछरुपये था। लेकिन कुछ महीने बाद उनके वेतन में दस गुना वृद्धि हो गई, जो साल दर साल जारी रही। उन्हें कंपनी विदेश छुट्टी पर भेजने लगी। आयकर आयुक्त के मुताबिक यह सब बिना वजह नहीं हो रहा था। कंपनी की मदद अभिसार की पत्नी कर चोरी में कर रही थी। उसके एवज में कंपनी उन्हें रिश्वत दे रही थी।

अभिसार के जरिए वह रिश्वत सुमना सेन के पास पहुंच रही थी। सुमना सेन ने बतौर आयकर अधिकारी कंपनी के लिए इतना बड़ा काम जो किया था। उन्होंने एनडीटीवी की एसेसिंग अधिकारी रहते हुए, विदेशों में फैले उसके कारोबार पर आंखें मूंद रखी थी। उससे होने वाली आय पर जो कर बनता था, उस पर सुमना ने पर्दा डाल रखता था। वह कंपनी से कर लेने के बजाए उसे सरकार से ही पैसा दिलाने में लगी थी। चिदंबरम की कृपा से वह सफल भी रही। सरकारी खजाने सेतकरीबन ढेड़ करोड़ रुपया एनडीटीवी को दे दिया। तर्क दिया गया कि आयकर अधिकारी ने इतना पैसा बिना वजह वसूललिया था। इसका इनाम एनडीटीवी ने उन्हें दिया।

आयकर आयुक्त लिखते हैं, ‘आयकर अधिकारी सुमना सेन की वफादारी का इनाम उनके पति अभिसार शर्मा और परिवारका एनडीटीवी ने दिया।‘ सालों तक करोड़ों रुपये देकर कंपनी इन लोगों को सैर–सपाटे के लिए विदेश भेजती रही।

दिलचस्प बात यह है कि जब इस बाबत आयकर विभाग ने पति–पत्नी से पूछताछ की तो दोनों ने अलग–अलग जवाबदिया। अभिसार शर्मा से विभाग ने पूछा कि आप आए दिन जो विदेश छुट्टियां मनाने जाते हैं, उसका खर्च कौन देता है? उनका कहना था कि वह अपने पैसे से विदेश जाते हैं। यही सवाल जब सुमना सेन पूछा गया तो उन्होंने चौंकाने वालाजवाब दिया। वे बोली कि विदेश यात्रा का खर्च उनके पति यानी अभिसार शर्मा के सैलेरी पैकेज का हिस्सा है, यानी विदेशमें मौज–मस्ती करने के लिए पूरे परिवार को एनडीटीवी विदेश भेजती थी। दिलचस्प बात यह है कि इस तरह की सुविधाबतौर पत्रकार अभिसार शर्मा को ही दी गई।

शिकायत के मुताबिक उन्हें और भी कई तरह की सुविधा दी गई। आयकर आयुक्त की माने तो नोएडा सेक्टर 50 में स्थितअभिसार का मकान भी रिश्वत ही है। उसे एनडीटीवी ने खरीद कर दिया था। उनका दावा है कि यह मकान एनडीटीवी ने2005 में खरीद कर अभिसार शर्मा को दिया था। तब से अभिसार शर्मा और सुमना सेन वही रह रहे हैं। हालांकि इनलोगों का दावा है कि वह मकान किसी रिश्वत का हिस्सा नहीं, बल्कि पति–पत्नी के खून पसीने की कमाई से बना है। जो 2011 में तैयार हुआ। आयकर आयुक्त दंपति के इस दावे से इत्तफाक नहीं रखते। वे कहते है कि अगर मकान 2011 में खरीदा गया है तो बिजली, पानी और टेलीफोन का बिल अभिसार शर्मा के नाम 2011 से आना चाहिए था।  पर ऐसा हैनहीं। तीनों बिल 2005 से अभिसार शर्मा के नाम से ही आ रहा है। इससे जाहिर है कि मकान उनका है।

2011 में उसे खरीदने का नाटक रचा गया था। आयकर आयुक्त का दावा है कि 2010 में उनकी शिकायत के बादमकान के पंजीकरण का खेल शुरू हुआ। आनन–फानन में मकान का पंजीकरण अभिसार के नाम कराया गया। 33 लाखका मकान उन्हें 19 लाख में मिल गया। वे कहते हैं कि आखिर मकान मालिक ने उन पर इतनी दरियादिली क्यों दिखाई?  उनके मुताबिक यह कोई दरियादिली नहीं थी बल्कि आयकर विभाग ने 2010 में सुमना सेन और अभिसार शर्मा केखिलाफ रिश्वतखोरी की जो जांच शुरू की थी, उससे बचने का यह तरीका था। वे लोग विभाग को बताना चाहते थे किमकान एनडीटीवी ने तोहफे में नहीं दिया बल्कि उन्होंने खरीदा है। हालांकि इससे बात बनी नहीं। आयकर विभाग औरसीबीआई ने पति–पत्नी के आय की जांच की। लेकिन आयकर विभाग में बैठे इनके शुभचिन्तकों ने फाइल ही दबा ली।

पीएमओ के हस्तक्षेप के बाद सीबीआई ने एफआईआर दर्ज करने के लिए छानबीन शुरू की। पर वह भी ठीक से नहीं होपाई। आयकर विभाग के असहयोगात्मक रवैए की वजह से सीबीआई की जांच ठप पड़ी है। उसे दोबारा शुरू करने कीगुहार नोएडा के आयकर अधिकारी (अपील) ने की है। उसी बाबत सुमना सेन और अभिसार शर्मा से जुड़े दस्तावेज केसाथ शिकायत की है।

अभिसार का झूठ

अभिसार शर्मा खुद को पाक साफ बता रहे हैं। मगर जो दस्तावेज हैं, वे सवाल खड़ा करते हैं। उन्होंने नोएडा के आयकर आयुक्त (अपील) के आरटीआई का हवाला देते हुए कहा कि उनकी पत्नी सुमना सेन एनडीटीवी की कभी एसेंसिग अधिकारी नहीं थी। उनका दावा है कि एनडीटीवी को उस समय एसेस हेमंत सांरगी कर रहे थे न कि सुमना सेन। यह सरासर झूठ है। अभिसार शर्मा बतौर पत्रकार भ्रम फैला रहे हैं। वे सच को छुपा रहे हैं। सच वह नहीं है जो वे बता रहे हैं। वास्तव में जिन कागजों के हवाले से वे पाक साफ होने की डींग हांक रहे हैं, उन्हीं कागजों में पूरी कहानी लिखी है। उन्होंने आरटीआई के उन्हीं हिस्सों को पढ़ा जो उनकी करतूत पर पर्दा डालता है, बाकी के हिस्से को जानबूझ कर नहीं पढ़ा। उस आरटीआई के पहले जवाब को सबके सामने रखा। पर उसी आरटीआई के जवाब न. 6 और 7 के बारे में चुप्पी साध गए। जवाब न. 6 का सवाल था कि 2004-05 में एनडीटीवी की एसेसिंग अधिकारी कौन थी? उसका जवाब था- सुमना सेन। इसी तरह जवाब न. 7 का सवाल था कि 2004-05 में एनडीटीवी को आयकर विभाग ने 1.4682836 करोड़ रुपये किसके हस्ताक्षर पर वापस किए थे? तो बताया गया कि सुमना सेन। जहां तक बात पहले जवाब का प्रश्न है, तो उसमें पूछा गया था कि 2004-5 में कौन एसेसिंग अधिकारी एडीटीवी के आयकर रिटर्न को प्रोसेस कर रहा था? उसमें बताया गया कि सुमना सेन। उसमें यह कहीं कहा ही नहीं गया कि वह प्रोसेसिंग अधिकारी है। इससे साफ है कि अभिसार शर्मा सबको बरगला रहे हैं।

अभिसार शर्मा

इसी तरह वे मकान वाले मामले में भी झूठ बोल रहे हैं। उनका दावा है कि मकान 2001 में ही खरीद लिया था। उसकी कीमत भी वे बताते हैं। उनके मुताबिक वह फ्लैट महज 19 लाख में खरीदा। पहली बात जिस मकान को वे 2001 में खरीदते हैं, उसकी रजिस्टरी 2011 में कराते हैं। दूसरी बात जिस फ्लैट का बाजार मूल्य 32 लाख रुपये था, उसे बिल्डर अभिसार को महज 19 लाख में बेच देता है। यानी वह अभिसार को तकरीबन 40 फीसदी की छूट देता है। बिल्डर ने उन पर इतनी दरियादिली क्यों दिखाई? इसके बारे में अभिसार शर्मा ने नहीं बताया। उन्होंने इसका भी जिक्र नहीं किया कि जब जीटीवी उन्हें 13,500 रुपये दे रहा था, तो एनटीडीवी ने पांच गुना किस आधार पर बढ़ा दिया। सवाल यह भी है, क्या यह महज इत्तेफाक था कि जब सुमना सेन एनडीटीवी और उसके डायरेक्टर की एसेसिंग अधिकारी थी, तो उस दरमियान अभिसार शर्मा एनडीटीवी में जाते हैं? एनडीटीवी उन्हें सैर-सपाटे के लिए विदेश भेजता है। जबकि यह सुविधा उन्हें किसी और चैनल ने नहीं दी। अगर दे रहा है तो उन्हें इसका जवाब देना चाहिए था।

अभिसार शर्मा

उन्हें यह भी बताना चाहिए कि 2007 में ऐसी क्या परिस्थितियां बनी कि एनडीटीवी से जाना पड़ा? साथ यह बताना चाहिए कि एनडीटीवी से जब वे जीटीवी गए तो उन्हें कितना मेहनताना मिलता था?  ऐसे ही कई सवाल हैं जिनका जवाब अभिसार को देना चाहिए था। पर उस दिन फेसबुक लाइव में अभिसार शर्मा ने चुपी साध ली। उन्होंने यह नहीं बताया कि विदेश यात्रा के संदर्भ में उनका और उनकी पत्नी का बयान अलग-अलग क्यों था। उनकी पत्नी आयकर अधिकारी से कहती हैं कि विदेश यात्रा उनके पति यानी अभिसार शर्मा के सैलेरी पैकेज का हिस्सा है। वहीं अभिसार शर्मा ने अधिकारी को बताया कि वे निजी खर्चे पर विदेश घूमने गए थे। पति और पत्नी का एक सवाल पर अलग-अलग जवाब। संभव है सुमना को पति की काबिलियत पर ज्यादा भरोसा रहा हो। जो भी हो यह तो पति-पत्नी जाने।

अभिसार शर्मा

पर असल सवाल यह है कि फेसबुक लाइव में अभिसार शर्मा यह बताना भूल गए कि एनडीटीवी ने आयकर विभाग को बता दिया था कि वह किसी अधिकारी को विदेश टहलने के लिए नहीं भेजता। उन्होंने इस बात की भी चर्चा नहीं की कि उसी एनडीटीवी ने फिर सीबीआई के सामने झूठ क्यों बोला? एनडीटीवी ने सीबीआई को बताया कि वह 23 लोगों को सैर-सपाटे के लिए विदेश भेज चुका है। अभिसार शर्मा को बताना चाहिए था कि एनडीटीवी आयकर विभाग से सच बोल रहा है या सीबीआई से। उन्हें यह भी उजागर करना चाहिए कि आखिर एनडीटीवी पति-पत्नी को क्यों बचा रहा है? इसे तो उन्होंने अपने लाइव भाषण में बताया नहीं। उसी लाइव प्रवचन में उन्होंने एक और झूठ बोला। उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी यानी सुमना सेन ने आयकर विभाग को बताया था कि उनके पति यानी अभिसार एनडीटीवी में काम करते है इसलिए एनडीटीवी की जिम्मेदारी उन्हें न सौंपी जाए। बावजूद इसके आयकर विभाग ने उनकी पत्नी को एनडीटीवी का एसेसिंग अधिकारी बनाया। पर सवाल यह है कि अगर इसकी सूचना सुमना सेन ने आयकर विभाग को दी थी तो उसका रिकॉर्ड भी होगा।

अभिसार शर्मा

चौंकाने वाली बात है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड आयकर विभाग में नहीं। सुमना सेन के कंट्रोलिंग अधिकारी से पूछा गया कि क्या इस तरह का कोई रिकॉर्ड है जिसमें सुमना सेन ने अपने पति अभिसार शर्मा के बारे में बताया हो, तो जवाब था नहीं। कहा गया कि अभिसार शर्मा एनडीटीवी में काम करते हैं, इस बाबत कोई जानकारी सुमना सेन ने नहीं दी थी। यह स्थापित तथ्य है कि अगर कोई लिखित जानकारी विभाग को दी गई होती तो वह रिकॉर्ड में मौजूद होती है। पर उसका रिकॉर्ड में नहीं होना, अभिसार के दावों की पोल खोलता है। पर अभिसार हैं कि झूठ बोलेने से बाज नहीं आ रहे हैं। उन्होंने ठीक कहा था कि वे इस पत्रिका का नाम भी नहीं लेना चाहते। लेना भी नहीं चाहिए क्योंकि यह पत्रिका सत्य रिपोर्ट करती है और सत्य हमेशा कटु होता है।

-य़थावत से साभार (जितेन्द्र चतुर्वेदी की रिपोर्ट)

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