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जब आधी रात गुलजार को लेकर घूमते रहें पंचम

तेरे बिना जिया जाए ना ‘पंचम’

हिंदी फ़िल्म इंड्स्ट्री में म्यूजिक को लेकर कई जोड़ियां मशहूर रही हैं । मदन मोहन और राजेंद्र कृष्ण, साहिर लुधयानवी और राजेश रोशन, शैलेंद्र और शंकर जयकिशन, शकील बदायूनी और नौशाद। लेकिन इन सबमें अगर कोई सबसे सेंसीटिव, सबसे इमोशनल और सबसे अर्थपरक जोड़ी थी वो थी पंचम दा और गुलजार की। दोनो झगड़ते भी थे, लड़ते भी थे, रूठते भी थे। मनाते भी थे, लेकिन साथ-साथ थे। और उनके इसी साथ साथ होने ने इंड्स्ट्री को जो संगीत और गाने दिए, वो फ़िल्म संगीत की धरोहर बन गए।  

गानों में नया ग्रामर, और संगीत में नया पेंचों खम जब एक साथ दिखे तो सोचना नहीं पड़ता की तस्वीर के पीछे किसका चेहरा है । जेहन में पंचम दा और गुलजार की जोड़ी की रील अपने आप ही चलने लगती हैं। लेकिन आरडी से पहले थोड़ी सी बात गुलजार की। गुलजार जब इंड्स्ट्री में आए थे तो गीत और गजलों की प्रचलित परिपाटी से हटकर अनगिनत शब्द अपनी मुठ्ठी में भर कर लाए थे । गुलजार की मुठ्ठी से शब्दों का वो नया संसार निकलने को बेताब था ,मचल रहा था। लेकिन दरकार थी सुरों की एक ऐसी चाशनी की जो उतना ही नया हो जितने की गुलजार के वो गाने। गुलजार जुनूनी थे, और उस समय इंड्स्ट्री में कोई ऐसा नहीं था जो गुलजार की तरह ही जुनूनी हो, और जिसके हारोनियम में गुलजार के शब्द समा जाएं। तलाश खत्म हुई पंचम पर जाकर। पंचम और गुलजार  जब मिले तो इंडंस्ट्री को एक ऐसा दौर मिला जो ना पहले कभी मिला था और ना उसके बाद मिला। 

8 सालों बाद हुआ ‘परिचय’

गुलजार और पंचम का साथ वैसे काफ़ी पुराना है । गुलजार ने पंचम के पिता एसडी बर्मन के साथ ही अपना पहला गाना कंपोज कराया था। गुलजार से करीब तीन साल छोटे आरडी बर्मन उस समय चौबीस साल के थे जब गुलजार ने उन्हे पहली बार देखा था । पंचम दा, रिकॉर्डिंग के समय अक्सर अपने पिता के साथ ही रहते थे । वो साल था 1963 का । इस घटना को करीब आठ साल गुजर गए। इस बीच आरडी और गुलजार दोनों ने इंड्स्ट्री में खुद को स्टेबलिश कर लिया। दोनों एक दूसरे के हुनर से वाकिफ़ भी हो चुके थे, लेकिन एक दूसरे के साथ कभी काम नहीं किया । आठ सालों बाद यानि 1971 में जब गुलजार ने अपनी फ़िल्म परिचय के लिए आरडी बर्मन को साइन किया, तब इनकी कभी ना टूटने वाली और सुपर हिट जोड़ी बनी। इस फ़िल्म में आरडी और गुलजार दोनों एक दूसरे की कसौटी पर खरे उतरे।  गुलजार की चांद की बिंदी वाली वो रात, पंचम के सुरों में समा गई।

जब पंचम आधी रात को गुलजार को लेकर घूमते रहें

फ़िल्म परिचय के एक गीत और गुलजार-पंचम की दोस्ती की जुड़ी एक कहानी भी है । दर-असल गुलजार अपनी इस फ़िल्म में एक ऐसा गाना रखना चाहते थे, जो मस्ती के मूड का हो और सीरियस भी हो।  काम मुश्किल था।  लेकिन गुलजार को मालूम था उनके दोस्त पंचम दा के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं हैं ।  उन्होने म्यूजिक कंपोज करने का काम पंचम दा को दिया था, और अपने कमरे में निश्चिंत सो रहे थे ।  उस समय गुलजार एक होटल में रहते थे।  अचानक आधी रात को पंचम दा उनके होटल पहुंचे, उन्हे नींद से जगाया, उन्हे अपनी कार चलाने को दी और खुद उनके बगल में बैठ कर एक धुन सुनाने लगे। ये वहीं धुन थी जो उन्होने गुलजार के उस खास गाने के लिए कंपोज किया था।। वो गाना था- मुसाफ़िर हूं यारों ना घर है ना ठिकाना

उस रात गुलजार और पंचम दा पूरी रात यूंही कार में घूमते रहे। पंचम दा गाड़ी की डैशबोर्ड पीट पीट कर गुलजार को धुन सुनाते रहे और गुलजार इस पल को खामोशी से जीते रहे।  इस तरह वो रात गुजर गई।

गुलजार की शक्ल याद आ जाने पर धुन बना देते थे पंचम

पंचम और गुलजार में अक्सर हंसी मजाक का दौर भी चलता रहता था । कभी कभी ऐसा होता था कि पंचम अचानक से गुलजार के लिए कोई धुन बनाकर गुलजार को फोन करते थे । और जब गुलजार पूछते थे कि इतनी जल्दी धुन कैसे बना दी, तो पंचम का जवाब होता था कि तेरी शक्ल याद आ गई थी। गुलजार के लिए कोई धुन तैयार करते समय, पंचम में हमेशा एक छटपटाहट रहती थी । शायद, गुलजार के हर शब्द के साथ पूरा इंसाफ़ करना चाहते थे। फिल्म परिचय का गाना बोले मीठे बैन मितवा सुनकर कोई सोच भी नहीं सकता कि उन्ही आरडी बर्मन का म्यूजिक हैं जिन्हे हिन्दुस्तान में पॉप म्यूजिक का जनक माना जाता है ।लेकिन आरडी की यहीं खासियत थी । वो परंपरागत भी उतने ही थे जितने आधुनिक। उनके दिल में इंडियन क्लासिकल भी उतना ही बसता था जितना वेस्टर्न म्यूजिक। गुलजार की फ़िल्म परिचय में पहली बार गुलजार और आरडी की बेमिसाल जोड़ी सामने आई थी।  और इसके बाद से ही गुलजार के बेमिसाल और नए ग्रामर से सजे शब्द, और आरडी का जादू का मतलब हिट की गारंटी बन गया।

परिचय के बाद पंचम और गुलजार की जोड़ी की अगली फ़िल्म थी किनारा। 1977 में आई इस फ़िल्म में एक बार फ़िर से पंचम के सुरों का जादू दिखा। मीठे बोल, और नाम गुम जाएगा जैसे आरडी और गुलजार की छाप वाले गाने एक बार फ़िर से लोगों के घरों में गूंजने लगें।

अगले साल मतलब 1978 में गुलजार ने जब घर फ़िल्म बनाई तो एक बार फ़िर से म्यूजिक की जिम्मेदारी थी पंचम दा के कंधों पर । और पंचम ने एक बार फ़िर साबित किया कि इंड्स्ट्री में उनके और गुलजार की जोड़ी का ना तो कोई तोड़ है और नाही कोई जवाब। इस फ़िल्म को लेकर गुलजार की आंखों में जो ख्वाब थे वो आरडी की संगत में महक उठे। जरा याद कीजिए इस फिल्म के गाने- आपकी आंखो में कुछ महके हुए से ख्वाब हैं / फ़िर वहीं रात है / तेरे बिना जिया जाए ना

घर के रिलीज होने के बाद इंड्स्ट्री में ये बात आम हो गई कि आरडी और गुलजार अगर एक साथ आए तो म्यूजिक के हिट होने की गारंटी हैं । ये वो दौर था जब म्यूजिक हिट होने का मतलब फ़िल्म का हिट होना हुआ करता था। हांलांकि उस समय तक फ़िल्मों में एक्शन भारी पड़ने लगा था, इसके बावजूद गुलजार सिर्फ़ अर्थपरक फ़िल्में ही बना रहे थे। और पंचम दा उन फ़िल्मों को हिट करा रहे थे। ना कभी गुलजार ने कोई कॉमर्शियल फ़िल्म बनाई और ना ही कभी पंचम दा ने फ़िल्म के मूड को समझने में कोई गलती की। इस जोड़ी की अगली फ़िल्म थी 1980 में आई फ़िल्म खूबसूरत, जिसका गाना पिया बावरी आज भी घरों में सुना जाता है ।

1981 में एक बार फ़िर से पंचम की सुरों की विविधता देखने को मिली फ़िल्म नरम गरम में

गुलजार की एक खासियत थी । उनके गाने फ़िल्म की कहानी को रोकते नहीं थे। बल्कि कहानी का जो हिस्सा डायलॉग से पूरा नहीं हो पाता उसे गुलजार के शब्द और आरडी के सुर  पूरा कर देते थे।

4 जनवरी 1994 को पंचम दा जब ने जब इस दुनिया को छोड़ तो गुलजार जैसे अकेले रह गए। उस रोज गुलजार अपनी जिंदगी से नाराज तो नहीं हुए लेकिन परेशान जरूर हो गए।

News Reporter
आलोक रत्न उपाध्याय ‘नमामि भारत’ के सलाहकार संपादक हैं. मूल रूप से बलिया जिले के रहने वाले आलोक रत्न उपाध्याय का पत्रकारिता में करीब 18 साल का अनुभव है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर आलोक रत्न उपाध्याय ने हिंदुस्तान अखबार, कोबरापोस्ट, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, न्यूज 24 जैसे देश के नामी मीडिया संस्थानों में काम किया है. ये मूल रूप से फीचर लेखन और टीवी डॉक्यूमेंट्रीज के लिए जाने जाते हैं. इसके आलावा आलोक राजनीतिक विश्लेषक भी हैं. साहित्य लेखन में भी आलोक की रूचि है, इनकी आधा दर्जन से अधिक कहानियां प्रकाशित हो चुकी है.
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