; प्रवासी परिवारों और मलिन बस्तियों के बच्चों के कल्याण के लिए सेसमी वर्कशॉप इंडिया का शिखर सम्मेलन
प्रवासी परिवारों और मलिन बस्तियों के बच्चों के कल्याण के लिए सेसमी वर्कशॉप इंडिया का शिखर सम्मेलन

नई दिल्ली, 26 अप्रैल: सेसमी वर्कशॉप इंडिया, जो कि एक शैक्षिक गैर-लाभकारी संगठन है, और जो बच्चों की विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए काम करती है ने आज राजधानी में शहर के बच्चों और परिवारों के मानसिक कल्याण को लेकर एक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। जिसमे सरकारी अधिकारियों, गैर-लाभकारी संगठनों, शिक्षाविदों तथा परोपकारी(फिलांथ्रोपिस्ट) लोगों ने भाग लिया, इस शिखर सम्मेलन ने समुदायों में मानसिक कल्याण के हस्तक्षेप के साथ साथ खेल-आधारित तकनीकों को एकीकृत करने की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। इसके अतिरिक्त, संगठन ने अपने प्ले लर्न कनेक्ट और ब्राइटस्टार्ट परियोजनाओं के अंतिम मूल्यांकन से निष्कर्ष भी जारी किए, जो कि दिल्ली-एनसीआर की शहरी मलिन बस्तियों में बच्चों की सामाजिक-भावनात्मक आवश्यकताओं को संबोधित करने पर आधारित थे।
मिस प्रीति सूदन, आईएएस (सेवानिवृत्त), सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, जो कि इस शिखर सम्मेलन में मुख्य वक्ता थी ने परिवारों के लिए एक व्यवस्थित प्रतिक्रिया के रूप में सामाजिक-भावनात्मक भलाई और सीखने के बारे में बात की। “हम सभी निरंतर सीखने की कला से ही विकसित होते हैं। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कई ऐसी विडंबनाएं हैं जिन्हे हमें अत्यंत संवेदनशीलता के साथ संबोधित करने की आवश्यकता है। यह पहली बार है कि जब केंद्रीय बजट में हमारे वित्त मंत्री ने नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात की – जिनमे बच्चे, माता-पिता, परिवार के साथ साथ शिक्षकों की एक इकाई को स्वास्थ्य और कल्याण राजदूत के रूप में शामिल किया गया है। इसके अलावा यह न केवल बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित है, बल्कि उनकी देखभाल करने वालों को भी सही तरीके से संबोधित किया जाना एक तरह से समान रूप से अति महत्वपूर्ण है”मिस सूदन ने कहा
ऐसे सीमित संसाधन वाले समुदायों जिनमे माता-पिता/देखभाल करने वालों को उनके बच्चों के समग्र विकास के साथ और उन्हें सार्थक रूप से सीखने में सक्षम बनाने के उद्देश्य को लेकर,एसडब्ल्यूआई ने अपने सहयोग के आधार पर अस्थायी प्रवासी परिवारों को लेकर उनकी खेल-आधारित शिक्षा, भावनाओं की व्याख्या करने में लिंग- पूर्वाग्रह, पालन-पोषण की रणनीतियाँ, अनुशासन शैली और व्यवहार तंत्र की समझ के स्तर का पता लगाने के लिए एक आधारभूत अध्ययन तैयार किया है।
इस सहयोग का उद्देश्य उन सभी 2600 परिवारों के देखभाल करने वालों को शामिल कर, बच्चों में कौशल का सही सेट विकसित करने में मदद करने के लिए खेल-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना है। इस कोर्स के कार्यान्वयन के दौरान, देखभाल करने वालों तक मोबाइल फोन, ऑडियो एपिसोड, सुविधाकर्ताओं के साथ वीकली सेशन के साथ संपर्क किया जा सकता है, जहां पर उन्हें अपने बच्चों की भावनाओं को प्रबंधित करने में मदद, बच्चों के बीच आपसी संबंध बनाने के लिए खेल के महत्व को पहचानने में मदद करने के लिए समर्थन दिया गया। इसके अलावा कोर्स कार्यान्वयन

के दौरान, यह भी देखा गया कि देखभाल करने वाले जो कि पहले से ही महामारी के बाद के प्रभावों से जूझ रहे थे, उन्होंने पोषण, स्वास्थ्य, सुरक्षा, भावनात्मक कल्याण के ऊपर अच्छी शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी। हालांकि, यह सब कंटेंट डिजाइन की संवेदनशीलता, सुविधा और सहानुभूतिपूर्ण जमीनी भागीदारों के कारण ही संभव हो पाया है जिसकी वजह से संगठन ने देखभाल करने वालों और परिवारों के दृष्टिकोण में एक उत्साहजनक सुधार किया है।
• बेसलाइन की तुलना में, 20.32% पेरेंट्स अब महसूस करते हैं कि बच्चे अपनी भावनाओं को वयस्कों के समर्थन से बेहतर तरीके से मैनेज करना सीखते हैं
• पेरेंट्स ने 15.44% की सकारात्मक बदलाव के विश्वास के साथ इस सम्बन्ध में प्रदर्शन किया है कि बच्चों को अपनी भावनाओं को छिपाना सीखना आना चाहिए।
• जबकि अभी भी स्पष्ट है कि, लिंग पूर्वाग्रह और रूढ़िवादिता के सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण सुधार हुआ है, जिसमें 26.4% से कम पेरेंट्स यह महसूस करते हैं कि लड़कियों को अपने क्रोध और अन्य भावनाओं को बेसलाइन की तुलना में दबाना सीखना आना चाहिए।
•यह सहयोग लड़कों के रोने को सामान्य करने की कोशिश करता है और तनावग्रस्त होने पर रोने के संबंध में देखभाल करने वालों की धारणा में 18.7% तक सुधार करके उनकी भावनात्मक अभिव्यक्ति का समर्थन करता है।
• जबकि मर्दानगी की जहरीली रूढ़िवादिता अभी भी प्रचलित हैं, इसको लेकर भी इस सहयोग ने महत्वपूर्ण सुधार देखा है, जिसमें 20.8% से कम देखभाल करने वालों का मानना है कि जो लड़के अपने सारी भावनाओं को ज्यादा व्यक्त करते है उन्हें बड़े होने पर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
• बच्चों के साथ खेलने की गतिविधियों में पिता की भागीदारी में भी एक महत्वपूर्ण सुधार पाया गया है। बेसलाइन की तुलना में अपने पिता को प्ले पार्टनर के रूप में रिपोर्ट करने वाले बच्चों में 27.2% की वृद्धि देखने को मिली है ।
हालांकि, कुछ ऐसे संबंधित निष्कर्ष भी हैं जिन्हें बच्चों और परिवारों के साथ भविष्य के हस्तक्षेपों के मार्गदर्शन के इरादे को लेकर उजागर किया गया था:
• पेरेंट्स के यह विश्वास करने में 14% की कमी देखी गई कि लड़कों और लड़कियों को एक समान खेल खेलना चाहिए।
• पोषण संबंधी आचरण को लेकर माता-पिता के भरोसे के संदर्भ में बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा जैसे कि बच्चे दिन में तीन बार भोजन करते हैं (0.73% सुधार), प्रति दिन 2-3 लीटर पानी पीना (2.7%) और बच्चे के दैनिक दिनचर्या में घी का होना (1.65% की कमी) बेसलाइन और एंडलाइन दोनों ही चरणों के रूटीन में एक लगभग समान रिपोर्टिंग देखी गयी।
• जबकि माता-पिता ने बच्चों के साथ समय बिताने और खेल-आधारित शिक्षा के संबंध में बेहतर दृष्टिकोण का प्रदर्शन किया है, इन सब के बावजूद भी माता-पिता की बच्चों की भावनाओं को समझने में मदद करने की धारणा में 14.05% की गिरावट आई है।

इन सभी परिणामों के निष्कर्षों पर टिप्पणी करते हुए, सोनाली खान, मैनेजिंग डायरेक्टर, सेसमी वर्कशॉप इंडिया ने कहा: “बच्चों एवं परिवारों की मानसिक भलाई की जरूरतों को अपनाना, सीखना और प्रतिक्रिया देना सेसमी का दिली सहयोगो में से एक है। हमारा कंटेंट डिजाइन, कैंपेन एप्रोच,आउटरीच पहल पूरी तरह से रिसर्च और मूल्यांकन द्वारा निर्देशित होती है जिसका उद्देश्य सामाजिक-भावनात्मक सीखने पर मुख्य ध्यान देने के साथ साथ पूरे बाल पाठ्यक्रम को संबोधित करना है। अगले 3 वर्षों में, हमारा लक्ष्य है कि हम अपने समुदाय आउटरीच के माध्यम से 1 मिलियन बच्चों तक पहुंचें और साथ ही अपने मीडिया आउटरीच के माध्यम से साल-दर-साल 20 मिलियन बच्चों तक पहुंचें। हम कार्यान्वयन के अपने वर्तमान चरण से लगातार गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक चाइल्डहुड केयर और शिक्षा प्रदान करने के अपने मकसद को लेकर प्रतिबद्ध हैं साथ ही हमारा मकसद अधिक प्रभावी तथा स्केलेबल सहयोग के साथ देखभाल करने वालों के ज्ञान और अभ्यास में अंतर को पाटना है ।”
स्वास्थ्य मंत्री और एनसीटी के शहरी विकास सरकार के सचिव शालीन मित्रा ने कहा कि ” आज के समय में मानसिक स्वास्थ्य से सम्बंधित शिकायतें काफी हद तक महिलाओं में ज्यादा दिखाई देता है। हमें इस क्षेत्र में और अधिक लिंग समावेशी होने की आवश्यकता है, जिसमे मदद मांगना और परामर्श प्रदान करना दोनों ही शामिल हैं। अभी हाल ही में, दिल्ली सरकार ने एक प्रोजेक्ट के माध्यम से एक इनोवेटिव उपाय किया है जहां उन्होंने स्वास्थ्य पहल के हिस्से के रूप में स्कूलों में बाल मनोवैज्ञानिकों को लागू किया है। एक व्यवस्थित प्रतिक्रिया के रूप में, हमें बच्चों और परिवारों के साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पर पड़ने वाले प्रभाव और कार्यों को समझने के लिए हमें पर्याप्त संवेदनशील होने की आवश्यकता है।”
शिखर सम्मेलन का समापन इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए हुआ कि चाइल्ड सर्वाइवल इंडिया और मोबाइल क्रेच जैसे ऑन-ग्राउंड पार्टनर जो समुदायों में बच्चों और देखभाल करने वालों के साथ काम कर रहे हैं, उनमे भी समान रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है तथा बच्चों और देखभाल करने वालों की आवाज के साथ साथ उनकी आवाज का प्रतिनिधित्व करने की भी जरूरत है। समुदायों की मानसिक भलाई में निवेश आज की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि इसके बिना समुदायों का समग्र विकास चुनौती भरा रहेगा।

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