; महाराजा बलरामपुर का आकस्मिक निधन शोक मे डूबा जनपद अंतिम दर्शन आज
महाराजा बलरामपुर का आकस्मिक निधन शोक मे डूबा जनपद अंतिम दर्शन आज

कन्हैया लाल यादव  /बलरामपुर। बलरामपुर स्टेट के महाराजा धर्मेंद्र प्रताप सिंह का रविवार देर शाम दिल का दौरा पड़ने से आकस्मिक निधन हो गया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार महाराजा अपने पारिवारिक कार्यक्रम भाग लेने लखनऊ गए हुए थे रास्ते में अचानक दिल का दौरा पड़ने पर चिकित्सालय ले जाया गया जहां पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया महाराजा के निधन की खबर से जनपद में शोक की लहर फैल गई । करीबियों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार महाराजा का पार्थिव शरीर सोमवार को मुख्यालय स्थिति राजमहल में अंतिम दर्शन लाया रखा जाएगा

महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह संक्षिप्त जीवन परिचय

  बलरामपुर के गौरवशाली राजवंश के वर्तमान महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह का जन्म 25 अगस्त 1958 को जनवार वंश के ही गंगवल राजकुल में  हुआ। गंगवल रियासत में आपका नाम रघुवंश भूषण सिंह था। बलरामपुर आने पर आपका नया नाम धर्मेंन्द्र प्रसाद सिंह रखा गया। आपके पिता कुवंर भरत सिंह गंगवल रियासत के राजा बजरंग बहादुर सिंह के कनिष्ठ पुत्र हैं।   महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह की माता जी मझगवाँ (गोण्डा) के भैया रामपाल सिंह की ज्येष्ठ पुत्री कुंवरानी माण्डवी देवी थी।

बालक धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह की ओर बलरामपुर नरेश की दृष्टि गयी। बड़े धूमधाम और समारोह के बीच महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह और उनकी धर्म परायण महारानी ने 28 फरवरी 1963 ई0 को इन्हें गोद लिया। महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह का शुभ विवाह नेपाल के सुप्रतिष्ठित राज्य परिवार में कर्नल ईना शमशेर जंग बहादुर राणा की सुपुत्री महाराजकुमारी वन्दना सिंह के साथ 6 मार्च 1980 को सम्पन्न हुआ। जिनसे 29 दिसम्बर 1980 को शुभ मुहूर्त में महारानी के पुत्र-रत्न महाराज कुमार जयेन्द्र प्रताप सिंह का जन्म हुआ। और 21 अप्रैल 1984 को महारानी से एक कन्या-रत्न महाराजकुमारी विजयश्री ने जन्म पाया। महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह जी ने मेयो कालेज, अजमेर से सीनियर कैम्ब्रिज की शिक्षा प्राप्त की। 26 अगस्त 1976 को वयस्कता प्राप्ति के साथ आपने विशाल राजवंश का गुरूतर भार ग्रहण किया। रियासत उस समय अव्यवस्था से गुजर रही थी। महाराजा साहब ने अपनी पूरी दिनचर्या इसे व्यवस्थित करने में लगा दी। रियासत के सभी मुकदमों को भी निपटाया। कई महीनों के अथक परिश्रम के बाद रियासत को व्यवस्थित करके अब अपना अधिकांश समय अध्य्यन में व्यतीत करते थे। अल्पावस्था में ही आपने जिस सूझबूझ और विवेक का परिचय दिया  यथार्थ पूर्ण स्वयं अपनी समस्या सामने रखने का प्रोत्साहन देते थे। जिसे बड़े धैर्य से पूरी बात सुनते तथा सहानुभूति पूर्वक विचार कर समुचित समाधान करते थे। महाराजा साहब चाटुकारों दलालों से और दुव्र्यसनों से दूरी बनाए रखते थे। विवेक, आत्मविश्वास, धैर्य, सहानुभूति उदारता और न्यायप्रियता के सदगुणों से उन्होंने लोगों का हृदय जीता था। महाराजा साहित्यिक और आध्यात्मिक अभिरूचि रखते थे और उनके उत्थान के लिए रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए दिग्विजय पुस्तकालय का पुनर्गठन पाण्डुलिपियों का संरक्षण, संकलन    प्राचीन ग्रन्थों का संचयन अवध के तालुकदार हिन्दी के प्रथम ग्रन्थ को संकलित करवाना।

बलरामपुर जनपद के इतिहास को दर्शाने वाली पहली पुस्तक ‘सार संकलन बलरामपुर’ को संकलित करवाना।  जैसा महत्वपूर्ण कार्य किया

महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह ने ऐतिहासिक महत्व की ऐसी पुस्तकों को प्रकाशित करने का विचार करते हुए (जिनपर अभी तक कार्य न हुआ हो) के लिए श्री पाटेश्वरी प्रकाशन एवं शोध संस्थान की स्थापना किया । इस संस्थान में ऐतिहासिक महत्व के अन्तर्गत राष्ट्रभाषा हिन्दी में कार्य करने वालों को सम्मानित एवं पुरस्कृत किए जाने का भी प्रावधान है।

महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह द्वारा लगभग करोड़ रुपए मूल्य की भूमि भवन दान से इस पिछड़े तराई क्षेत्र में उच्च शिक्षा के प्रसार हेतु स्थापित किये गये ‘‘महारानी लाल कुवंरि स्नातकोत्तर महाविद्यालय’’ के आप आजीवन संस्थापक अध्यक्ष हैं। स्वाध्याय विशेषतः ऐतिहासिक ग्रन्थों का अध्ययन, पुरातात्विक वस्तुओं, कलाकृतियों, ग्रन्थों का संकलन, सांस्कृतिक सम्पदा का संरक्षण फोटो ग्राफी और शिकार जैसे राजसी परंपराओं के साथ  तैराकी, बिलियर्ड और बैडमिन्टन उनके प्रिय खेल थे। बलरामपुर राज परिवार से जुड़े लोगों के लिए वे पोषण और संरक्षण के बहुविधि कार्यों सेआज भी सच्चे अर्थों में महाराजा हैं। यही कारण है कि तालुकेदारी समाप्त होने के बाद भी बलरामपुर राजवंश की प्रतिष्ठा के प्रति समूचे जन-मानस में पूर्ववत् आस्था और श्रद्धा आज भी विद्यमान है।

आम जनमानस के लिए समर्पित बलरामपुर स्टेट स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान रहा है जिसके तहत लखनऊ का बलरामपुर अस्पताल जो कि स्वास्थ्य सेवाओं का मानक रहा है इसी राजवंश का उपहार है। इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह ने बलरामपुर में अत्याधुनिक उपकरणों एवं सुविधाओं से युक्त एक सौ बिस्तरों के अस्पताल जो कालान्तर में पाँच सौ बिस्तरों वाला अस्पताल होगा, इसका शिलान्यास 7 अक्तूबर 2005 को अपने सिरसिया फार्म पर कर दिया है। इसके लिए 25 एकड़ भूमि का दान करके महाराजा साहब ने अपने विशाल हृदय का परिचय दिया है। दिल्ली की एक नामी परामर्शदात्री संस्थ, मैन्टक हेल्थ केयर सर्विसेज प्रा0 लि0 कम्पनी ने इस प्रकल्प की पूरी रूपरेखा, नक्शा एवं प्रारूप तैयार किया है। इस अस्पताल में हैलीपैड, धर्मशाला, तरणताल, स्वास्थ्य केन्द्र एवं टेलीमेडिसिन जैसे अत्याधुनिक सुविधा से सुसज्जित होंगे जो भारत में अन्यत्र कहीं भी दुर्लभ हैं। हृदय एवं मस्तिष्क की बीमारियों के उपचार एवं शल्य हेतु जिसके लिए मरीजों को दिल्ली, मुम्बई जाना पड़ता था वह सभी सुविधाएं अत्यन्त कम मूल्य पर यहाँ उपलब्ध होगीं।

महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह के इकलौते पुत्र महाराज कुमार जयेन्द्र प्रताप सिंह मेयो कालेज अजमेर से शिक्षा ग्रहण करने के बाद इन्होंने होटल प्रबन्धन की डिग्री प्राप्त की। इस विषय में विशेष दक्षता प्राप्त करने के उद्देश्य से इन्होंने स्विट्जरलेण्ड से एक वर्षीय कोर्स करके विशेष दक्षता प्राप्त की। वर्तमान समय में लखनऊ स्थित बलरामपुर गार्डन, धर्मकार्य निधि सहित रियासत के अन्य कार्यों में अपने पिताश्री के कार्यों में सहयोग कर रहे है। अपने पिताश्री द्वारा खोले गए होटलों – बलरामपुर हाउस नैनीताल, महामाया होटल बलरामपुर का कार्यभार मुक्त रूप से देख रहे हैं। भविष्य में बनकटवा कोठी को भी ‘ईको टूरिज्म’ के लिए विकसित करने की योजना है। इन्होंने पुरानी तहसील तथा माया होटल जो अब महामाया होटल के नाम से जाना जाता है का जीर्णोंद्धार कराया। परिवार के सदस्य इन्हें प्यार से ‘बाबा राजा’ कह कर पुकारते है।

 

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