; शिक्षक दिवस पर लें प्रत्येक बालक के चरित्र निर्माण का संकल्प-डा0 जगदीश गांधी
शिक्षक दिवस पर लें प्रत्येक बालक के चरित्र निर्माण का संकल्प-डा0 जगदीश गांधी

5 सितम्बर को प्रत्येक बालक के चरित्र निर्माण के संकल्प के साथ सारे देश में पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन का जन्म दिवस ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में बड़े ही उल्लासपूर्ण एवं शैक्षिक वातावरण में मनाया जाता है। वह एक महान शिक्षक, विद्वान दार्शनिक तथा भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ व्याख्याकार थे। एक आदर्श शिक्षक के रूप में उनकी उपलब्धियों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। एक शिक्षक के रूप में मैं अपने 61 वर्षों के शैक्षिक अनुभव को इस लेख के माध्यम से परम आदरणीय सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन जी को शत् शत् नमन करते हुए सभी देशवासियों से शिक्षक दिवस के महान अवसर पर साझा कर रहा हूँ।


हमारा मानना है कि शिक्षक ही एक सुन्दर, सुसभ्य एवं शांतिपूर्ण राष्ट्र व विश्व के निर्माता हैं। वे एक ओर जहां बच्चांे को विभिन्न विषयों का सर्वश्रेष्ठ ज्ञान देते हैं तो वहीं दूसरी ओर उनके चरित्र का निर्माण करके उनके भविष्य को सही आकार भी प्रदान करते हैं। हमारा मानना है कि शिक्षक एक वेतन भोगी कर्मचारी नहीं होता है। वह भावी पाढ़ी के उज्जवल भविष्य का निर्माता है। हमारी चैरिटेबल तथा शैक्षिक संस्था का उद्देश्य कभी भी व्यवसायिक नहीं रहा है। हमारा उद्देश्य विगत 61 वर्षों से समाज के विभिन्न वर्गों के छात्र-छात्राओं को उद्देश्यपूर्ण एवं गुणात्मक शिक्षा प्रदान करते हुए उन्हें समाज के लिए उत्तरदायी नागरिक बनाना है।


सिटी मोन्टेसरी स्कूल आज देश सहित विश्व भर में अपने ऐतिहासिक रिजल्ट के साथ ही अपने बच्चों को विश्व शांति की शिक्षा देकर उन्हें एक अच्छा इंसान बनाने का मुख्य केन्द्र माना जाता है। इस मुख्य केन्द्र बिन्दु बनने के आधार विद्यालय के सभी शाखाओं में कार्यरत परिश्रमी तथा बच्चों की शिक्षा को पूरी तरह समर्पित कुल 4000 शिक्षक और कर्मचारी, विद्यालय का साफ-सुथरा आध्यात्मिक वातावरण, शिक्षा विशेषज्ञों द्वारा निरन्तर किये जाने नये-नये शैक्षिक इनोवेशन तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की सभी आधुनिक सुविधाओं की उपलब्धता हैं।


मेरी पत्नी डा. भारती गांधी तथा मैंने स्वयं दो शिक्षक के रूप में अपने विद्यालय को 61 वर्ष पूर्व 1959 में अपने पड़ोसी से 300 रू0 उधार लेकर किराये के मकान में 5 बच्चों से शुरू किया था। सर्वप्रथम इन 5 बच्चों की स्लेट पर ‘जय जगत’ का ध्येय वाक्य लिखा गया था। देश की आजादी के लिए जय हिन्द का लक्ष्य जनता को दिया गया था। देश के 15 अगस्त 1947 में आजाद होने के साथ जय हिन्द का यह लक्ष्य पूरा हुआ। महात्मा गांधी तथा विनोबा भावे जी ने मिलकर देशवासियों के लिए आगे का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वसुधैव कुटुम्बकम् को सरल रूप में जय जगत का नारा दिया था। हमारे विद्यालय के बच्चे तथा टीचर्स विगत 61 वर्षों से जय जगत कहकर एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। जय जगत के मायने यह है कि किसी एक देश की नहीं वरन् सारे विश्व की जय हो।


वर्तमान में हमारे विद्यालय में 56,000 से अधिक बच्चे नर्सरी से इण्टरमीडिएट तक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। लखनऊ के अभिभावकों की पहली पसंद तथा विश्वास सिटी मोन्टेसरी स्कूल की वास्तविक प्रेरणा तथा ताकत है। हमने अपने शिक्षकों के साथ मिलकर विगत 61 वर्षों में सिटी मोन्टेसरी स्कूल को विश्व स्तर के शिक्षा के एक माॅडल के रूप में विकसित किया है। शिक्षा का क्षेत्र समुद्र की तरह अति व्यापक है। शिक्षक को एक कुशल गोताखोर की तरह समुद्र में से जीवन मूल्यों रूपी बहुमूल्य मोतियों को खोजकर उन्हें 21वीं सदी की आवश्यकता के अनुकूल लोक कल्याणकारी आकार देना होता है।


शिक्षा राष्ट्र निर्माण की सबसे बड़ी ताकत हैं, इस बात को स्वीकार करते हुए हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी जी देश के प्रत्येक बच्चे को देश की महान संस्कृति एवं सभ्यता के साथ ही विश्वस्तरीय ज्ञान देने के लिए देश में ‘नई शिक्षा नीति’ लागू करने जा रहे हैं। आने वाले समय में हम सभी देखेंगे कि शिक्षा की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार के साथ देश ने विश्वस्तरीय शिक्षा में नई ऊंचाइयाँ प्राप्त कर ली है।


हमारे द्वारा संचालित विद्यालय गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में एक ही शहर में सबसे अधिक बच्चों वाले विश्व के सबसे बड़े विद्यालय के रूप में दर्ज है। हमारे विद्यालय को संयुक्त राष्ट्र संघ की इकाई यूनेस्को द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति शिक्षा पुरस्कार-2002’ से सम्मानित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने सिटी मोन्टेसरी स्कूल को ‘आॅफिसियल एन0जी0ओ0’ घोषित किया है। इस अन्तर्राष्ट्रीय उपलब्धि को अर्जित करने वाला सी0एम0एस0 विश्व का पहला विद्यालय है। यह उपलब्धि सी.एम0एस0 के सामाजिक जागरूकता के प्रयासों का प्रमाण है। इन विश्व स्तरीय सम्मानों को हमने विश्व के बच्चों को सुरक्षित भविष्य दिलाने की जवाबदेही तथा दायित्व के रूप में स्वीकारा है।


हमारा मानना है कि ‘युद्ध के विचार सबसे पहले मनुष्य के मस्तिष्क में पैदा होते हैं अतः दुनियाँ से युद्धों को समाप्त करने के लिये मनुष्य के मस्तिष्क में ही शान्ति के विचार उत्पन्न करने होंगे।’ शान्ति के ऐसे विचार देने के लिए मनुष्य की सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन ही है। विश्व एकता, विश्व शान्ति एवं वसुधैव कुटुम्बकम् के विचारों को बचपन से ही घर के शिक्षक माता-पिता द्वारा तथा स्कूल के शिक्षक द्वारा प्रत्येक बालक-बालिका को ग्रहण कराने की आवश्यकता है ताकि आज के ये बच्चे कल बड़े होकर सभी की खुशहाली एवं उन्नति के लिए संलग्न रहते हुए ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ अर्थात ‘सारी वसुधा एक कुटुम्ब के समान है’ के संकल्प को साकार करेंगे।


वैसे तो तीनों स्कूलों पहला परिवार, दूसरा समाज तथा तीसरा विद्यालय के अच्छे-बुरे वातावरण का प्रभाव बालक के कोमल मन पर पड़ता है। लेकिन इन तीनों में से सबसे ज्यादा प्रभाव बालक के जीवन निर्माण में विद्यालय का पड़ता है। बालक बाल्यावस्था में सर्वाधिक सक्रिय समय स्कूल में देता है। दूसरे बालक विद्यालय में ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा लेकर ही आता है। यदि किसी स्कूल में भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों गुणों से ओतप्रोत एक भी टीचर आ जाता है तो वह स्कूल के वातावरण को बदल देता है और बालक के जीवन में प्रकाश भर देता है। वह टीचर बच्चों को इतना पवित्र, महान तथा चरित्रवान बना देता हैं कि ये बच्चे आगे चलकर सारे समाज, राष्ट्र व विश्व को एक नई दिशा देने की क्षमता से युक्त हो जाते हैं।


स्कूल चार दीवारों वाला एक ऐसा भवन है जिसमें कल का भविष्य छिपा है। मनुष्य तथा मानव जाति का भाग्य क्लास रूम में गढ़ा जाता है। प्रत्येक बालक को बचपन से ही परिवार, स्कूल तथा समाज में ऐसा वातावरण मिलना चाहिए जिसमें वह अपने हृदय में इस सर्वभौमिक सच्चाई को आत्मसात् कर सके कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानवता एक है। ईश्वर ने ही सारी सृष्टि को बनाया है। ईश्वर सारे जगत से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करता है। अतः हमारा धर्म (कर्तव्य) भी यही है कि हम बिना किसी भेदभाव के सारी मानव जाति से प्रेम कर सारे विश्व में आध्यात्मिक साम्राज्य की स्थापना करें।


महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं महापुरूषों के बनाये ठीक उसी रास्ते पर नहीं चलूँगा। अर्थात मैं महापुरूषों के विचारों से तो प्रेरणा लूंगा लेकिन जैसे कार्य उन्होंने किये उसी लकीर पर मैं नहीं चलूंगा। मैंने महात्मा गांधी तथा विश्व के अन्य महापुरूषों के विचारों से प्रेरणा लेकर विश्व एकता की अपनी राह स्वयं निर्मित की है। नेलसन मण्डेला ने कहा था कि शिक्षा विश्व का सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे विश्व में सामाजिक बदलाव लाया जा सकता है। महात्मा गांधी ने यह भी कहा था कि यदि हम वास्तव में विश्व को शान्ति की सीख देना चाहते हैं तथा यदि हम युद्ध के खिलाफ वास्तविक युद्ध करना चाहते हंै तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों की शिक्षा से करनी होगी। पाऊलो फेररी ने कहा था – शिक्षा लोगों को बदलती है और लोग दुनिया को बदलते हैं।


सिटी मोन्टेसरी स्कूल के छात्र भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों की संतुलित शिक्षा ग्रहण करके विगत 60 वर्षों में लाखों छात्र-छात्रायें विश्व एकता के दूत बनकर देश-विदेश में महत्वपूर्ण पदों तथा क्षेत्रों में कार्यरत होकर सारे विश्व की महत्वपूर्ण सेवा कर रहे हैं। हमारे विद्यालय द्वारा विश्व भर के बच्चों के लिए 28 अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक आयोजन करके उनके दृष्टिकोण को विश्वव्यापी बनाने के साथ ही इन अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में देश-विदेश से आने वाले बच्चों, टीचर्स तथा प्रधानाचार्यओं के माध्यम से विश्व एकता एवं विश्व शांति के विचारों को विश्व भर में फैला रहे हैं। हमारा मानना है कि मनुष्य द्वारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अर्पित की जाने वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान एवं पूर्ण सेवा है- (अ) बच्चों की शिक्षा (ब) उनके चरित्र का निर्माण तथा (स) उनके हृृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम उत्पन्न करना।


वर्ष 2001 से मेरे संयोजन में सिटी मोन्टेसरी स्कूल द्वारा विश्व के 2 अरब 50 करोड़ बच्चे (जो अब पैदा हो चुके हैं तथा जो आगे जन्म लेने वाले हैं) के सुरक्षित भविष्य के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 पर विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन प्रतिवर्ष लखनऊ में आयोजित किये जा रहे हंै। बच्चों को वल्र्ड जुडीशियरी के समक्ष विश्वव्यापी समस्याओं को रखने तथा उसके साथ मिलकर स्थायी समाधान खोजने के अवसर भी मिलते हैं। इससे बच्चों में बाल्यावस्था से ही कानून तथा न्याय के प्रति सम्मान पैदा होता है। आज के बच्चे आगे आने वाले समय में अपने-अपने क्षेत्र का न्यायपूर्ण तथा लोकतांत्रिक ढंग से नेतृत्व करके राह भटके विश्व को सही दिशा में ले जायेंगे।


अब केवल भारत के पास ही इस संसार को अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद तथा युद्धों से बचाने का विचार उपलब्ध है। इस युग की संसार की समस्त सैन्यशक्ति से भी अधिक शक्तिशाली ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ एवं इसी विचार से प्रेरित होकर भारतीय संविधान में शामिल किया गया ‘अनुच्छेद 51’ का विचार है। इसके अतिरिक्त इस संसार को बचाने का दूसरा कोई विचार आज संसार भर में उपलब्ध नहीं है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 इस प्रकार है:- (ए) भारत का गणराज्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि (संसार के सभी राष्ट्रों के सहयोग से) करने का प्रयास करेगा। (बी) भारत का गणराज्य संसार के सभी राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का (संसार के सभी राष्ट्रों के सहयोग से) प्रयत्न करेगा, (सी) भारत का गणराज्य अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करने अर्थात उसका पालन करने की भावना की अभिवृद्धि (संसार के सभी राष्ट्रों के सहयोग से) करेगा। (डी) भारत का गणराज्य अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का हल माध्यास्थम द्वारा कराने का प्रयास करेगा।


संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय ही वीटो पाॅवर के अन्तर्गत पांच शक्तिशाली देशों – अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन तथा फ्रान्स का पक्षपातपूर्ण ढंग से विशेष शक्ति प्रदान की गयी है। यदि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देश 4 वीटो पाॅवर सम्पन्न देश सहित मानव जाति के हित में कोई निर्णय करते हंै और यदि वीटो पाॅवर सम्पन्न एक देश उस पर वीटो कर देता है तो वह निर्णय रद्द हो जायेगा। हमारा मानना है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में पांच वीटो पावर सिस्टम होने के कारण मानव जाति के हित में कोई निष्पक्ष फैसला नहीं हो पाता है। इसलिए वीटो पावर सिस्टम समाप्त करके एक वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का गठन विश्व के सभी देशों को मिलकर करना चाहिए।

प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून होने से कोई देश किसी आतंकवादी को शरण नहीं दे सकेंगा। आज दुर्भाग्यवश वीटो पावर सिस्टम विश्व में आतंकवाद बढ़ावा दे रहा है। चीन ने वीटो पावर का उपयोग आतंकवाद को संरक्षण देने के लिए बार-बार किया था। यह वीटो पावर सिस्टम मानवता के हित में नहीं हैं, अतः इसे तुरंत समाप्त करना चाहिए। यह वीटो पावर सिस्टम विश्व को न्यायपूर्ण तथा लोकतांत्रिक ढंग से चलाने के विरूद्ध है।


हम विश्व के सबसे शक्तिशाली तथा सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश अमेरिकी के राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रम्प को विगत एक वर्ष से निरन्तर चिट्ठी लिख कर यह निवेदन कर रहे हैं कि वह शीघ्र-अति-शीघ्र विश्व के समस्त राष्ट्राध्यक्षों कि मीटिंग बुला कर प्रभावी वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) की स्थापना करने की पहल करें। इसके साथ ही भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात जय जगत को साकार होते मानव जाति अपनी आंखों से देख सकंेगी।


हम मात्र पिछले 100 वर्षों के इतिहास को देखे तो यह एक सच्चाई है कि प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक की समाप्ति बाद विश्व शान्ति के लिए लींग आॅफ नेशनस की स्थापना हुई थी। द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक लड़ा गया था। विश्व के लगभग 70 देशों की थल-जल-वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मिलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों मे बँटा हुआ था – मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। 6 अगस्त तथा 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के दो शहरों हिरोशिमा तथा नागाशाकी में दो परमाणु बम गिराकर बड़ा नरसंहार किया था। उसके बाद 24 अक्टूबर 1945 को इस विश्व युद्ध की विभीषका से घबरा कर संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई थी। अमेरिका द्वारा पहली बार दो परमाणु बमों का इस्तेमाल जापान के खिलाफ किया गया था। लाखों बेकसूर लोगों की हत्या तथा घूट-घूट कर मारने के इस जघन्य अपराध के लिए अमेरिका ने विश्व समुदाय से आज तक कभी माफी नहीं मांगी। विश्व के पास अपना कोई प्रभावशाली विश्व न्यायालय न होने के कारण अमेरिका जैसे सबसे बड़े अपराधी को कोई सजा भी नहीं दी जा सकी।


प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्धों को रोकने तथा विश्व में शान्ति की स्थापना के लिए अमेरिका के तत्कालीन दो राष्ट्रपतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। अब हमें यह इंतजार नहीं करना है कि तृतीय विश्व युद्ध होने के बाद हम विश्व सरकार गठन कर लेंगे। हमें यह जानना चाहिए कि संभावित तृतीय विश्व युद्ध की आये दिन परिस्थितियाँ निर्मित हो जाती हंै यदि तृतीय विश्व युद्ध घटित हुआ तो बड़े-बड़े परमाणु बमों तथा घातक मिसाइलों से लड़ा जायेगा। जिसमें सारी धरती और उसमें पलने वाले जीवन का पूरी तरह से विनाश हो जायेगा, इस विनाश के परिणामों की मानव जाति कल्पना भी नहीं कर सकती। लाखों वर्षों से संजोई यह सुन्दर धरती धूली कण बनकर अनन्त ब्रह्माण्ड में कहीं विलीन हो जायेगी।

परमाणु हथियारों व संहारक मिसाइलों के इस युग में युद्ध लड़े तो जा सकते हैं, किन्तु जीते नहीं जा सकते? मानव जाति के समक्ष बस वसुधैव कुटुम्बकम् को विश्व संस्कृति के रूप में अपनाकर ‘जय जगत’ के उद्घोष को साकार करने का विकल्प बचा है। न्याय के तराजू के एक पलड़े में विश्व शान्ति तथा दूसरे पलड़े में विश्व युद्ध के सुखद तथा दुखद दृश्य हमारे समक्ष हैं। मानव जाति को सही चुनाव करने में विश्वव्यापी दृष्टिकोण तथा विश्वव्यापी समझदारी का परिचय समय रहते देना है। आगे हमारा सुझाव है कि भारत को अपने विभिन्न देशांे में स्थित दूतावासों के माध्यम से अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान में निहित वसुधैव कुटुम्बकम् तथा विश्व एकता के विचारों का पूरी शक्ति के साथ प्रचार-प्रसार पूरे विश्व में करना चाहिए।


आज देशों को चलाने के लिए अपनी-अपनी चुनी हुई संसद तथा अपना संविधान है लेकिन विश्व को चलाने के लिए उसकी कोई चुनी हुई संसद तथा विश्व का संविधान नहीं है। विश्व की शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान कर विश्व संसद का स्वरूप दिया जाना चाहिए। आधुनिक तकनीक तथा उन्नत संचार माध्यमों ने अब विश्व को एक ‘ग्लोबल विलेज’ का स्वरूप प्रदान किया है। हम सभी इस ‘ग्लोबल विलेज’ के विश्व नागरिक हैं।

भारत को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे विश्व भर के मानव संसाधन को मानव जाति के कल्याण में अधिक से अधिक लगाया जा सके। विश्व के सभी देश के लोग अपने-अपने देश से तो प्यार करते हंै लेकिन वैसा ही प्यार अपनी सुन्दर धरती से नहीं करते हैं। यह सारा विश्व पराया नहीं है यह इसमें वास करने वाले प्रत्येक विश्ववासी का अपना ही है। विश्व सुरक्षित रहेगा तो इसमें स्थित सभी देश भी सुरक्षित रहेंगे। विश्व हमं् देता है सब कुछ – हम भी तो कुछ देना सीखें। आइये, शिक्षक दिवस के इस महान अवसर पर हम भारत सहित विश्व के 2.5 करोड़ बच्चों को सुरक्षित भविष्य प्रदान करने हेतु यथाशक्ति योगदान देने का संकल्प लें।

-डा0 जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

News Reporter
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