; वेदांता स्टरलाइट प्लांट पर तालेबंदी से जुड़े कुछ अहम सवाल
स्टरलाइट प्लांट पर तालेबंदी से जुड़े प्रश्न

चौदह लोगों की मौत के बाद तमिलनाडु की पलानीसामी सरकार ने वेदांता स्टरलाइट प्लांट को बन्द करने के आदेश जारी कर दिया है। सरकार ने इसके विस्तार के लिए अधिगृहीत 342.22 एकड़ जमीन का आवंटन भी रद्द कर दिया और जमीन की कीमत वापस की जा रही है।

इतने निर्दोष लोगों की मौत के बाद यदि सरकार जागी तो इसे जनता की जीत कहा जा सकता है। लेकिन यह आधी-अधूरी कार्रवाई है, क्योंकि लोगों पर सीधे गोलियां चलाने की जवाबदेही कौन तय करेगा? ऐसा क्या कारण था कि एक नायब तहसीलदार के कहने पर पुलिस फायरिंग कर देती है? इस प्रकार यह जानलेवा पुलिस कार्रवाई, अमानवीय कृत्य अनेक सवाल पैदा कर रहे हैं। कुछ सवाल लाशों के साथ सो गये। कुछ घायलों के साथ घायल हुए पड़े हैं। कुछ समय को मालूम है, जो भविष्य में उद्घाटित होंगे। इसके पीछे किसका दिमाग और किसका हाथ है, यह तो सामने है लेकिन आज करोड़ों देशवासियों के दिल और दिमाग में यह सवाल है कि उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई कब और कैसे होगी?

स्टरलाइट के तांबा संयंत्र के विरोध में लम्बे से चला आ रहा जन-आंदोलन और उसके ऊपर बर्बरतापूर्ण पुलिस की कार्रवाई ने ऐसे प्रश्नों को खड़ा किया है, जिनके उत्तर जब तक नहीं मिल जाते, सरकार की जबावदेही कायम है। क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था में हिंसा का कोई स्थान है? हिंसक भीड़ से निपटने के लिए पुलिस के पास क्या विकल्प बचते हैं? थुथुकुड़ी में जो कुछ हुआ वह अत्यंत खेदजनक और कष्टदायी है। यह घटना सरकार एवं वहां की खुफिया तंत्र की विफलता को भी दर्शाती है।

यह प्लांट राजनेताओं के व्यावसायिक हितों का भी खौफनाक दृश्य उपस्थित करता है। मजदूरों के शोषण, पर्यावरण को प्रदूषित करने और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप भी कम्पनी पर लगे लेकिन सत्ता में बैठे लोग इस कम्पनी पर मेहरबान बने रहे, आखिर क्या?

स्टरलाइट संयंत्र के विस्तार के खिलाफ लगभग तीन माह से चल रहा प्रदर्शन 22-23 मई को यकायक हिंसक हो गया। प्रशासनिक चेतावनी-दिशानिर्देशों की अवहेलना और भीड़ के हिंसक होने पर जवाबी कार्रवाई स्वरूप पुलिस की गोली से 14 लोग मारे गए, जबकि दर्जनों घायल हो गए।

इन मौतों ने नागरिकों के संविधान प्रदत्त जीने के अधिकार पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया। कुछ राजनीतिक दल पुलिस की कार्रवाई को राज्य प्रायोजित आतंकवाद तो कुछ उसकी तुलना जलियांवाला बाग में जनरल डायर के नरसंहार से कर रहे हैं। वेदांता पर आरोप है कि उसके संयंत्र के कारण क्षेत्र में भयंकर रासायनिक प्रदूषण फैल रहा था और भूमिगत जल भी विषाक्त होने लगा था। इससे स्थानीय लोग बीमार हो रहे हैं और मछली उद्योग भी प्रभावित हो रहा है। इससे क्षेत्र में कैंसर समेत अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ गया था। प्लांट में धातु गलाने के साथ कॉपर का काम होता था। जो प्लांट लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहा हो, जिसने प्रदूषण को रोकने के लिए ठोस उपाय भी नहीं किए गये हो, उसको बन्द किया जाना ही चाहिए था।

जनता ने मौत के इस प्लांट के विरुद्ध यदि आन्दोलन का रास्ता अख्तियार किया तो क्या आपराधिक कार्य किया? लोकतंत्र में जब शासन सीधे तरीके से जनता की मांगों की पूर्ति और समस्याओं के समाधान के लिए तत्पर नहीं होता तो जनता के सामने कौनसा रास्ता बचता है?

रास्ता कोई भी हो, लेकिन लोकतंत्र में हिंसा का रास्ता किसी भी स्थिति में उचित नहीं है। प्रदूषण नियंत्रण विभाग पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिए थुथुकुड़ी स्टरलाइट संयंत्र के विरुद्ध कार्रवाई कर रही है और मामला शीर्ष अदालत में लंबित है तब प्रदर्शनकारियों के यकायक हिंसक होने का औचित्य भी समझ से परे है। जब देश में सभी नागरिकों को अपनी बात रखने और अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन, धरना देने और हड़ताल के संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं तो उसके स्थान पर हिंसा को एकमात्र विकल्प बनाना, कानून अपने हाथों में लेना और दूसरों के जीवन को खतरे में डालना किस तरह से उचित माना जाएगा?

वेदांता के मालिक अनिल अग्रवाल, जो कबाड़ी से करोड़पति बने हैं, बड़ी मासूमियत से कम्पनी वेदांता और भारत को बदनाम करने का आरोप लगाकर स्वयं को निर्दोष साबित करते रहे हैं। पुलिस फायरिंग में लोगों की मौत के बाद उनका यह बयान उनकी संवेदनहीनता का ही परिचय देता है। यह बात गले नहीं उतर रही कि स्टरलाइट का विरोध भारत का विरोध कैसे है? अगर लोग इतने दिनों से प्रदर्शन कर रहे थे तो कम्पनी प्रबन्धन ने कोई कदम क्यों नहीं उठाए? वेदांता का इतिहास देखा जाए तो भारत में उसके सभी प्रोजैक्ट विवादों का शिकार रहे हैं। स्टरलाइट छत्तीसगढ़ के कोरबा में एल्युमीनियम कम्पनी चलाती है जिसमें 2009 में हुए एक चिमनी हादसे में 42 मजदूर जिन्दा जल गए थे।

तमिलनाडू के थुथुकुड़ी स्थित इस स्टरलाइट कम्पनी को बड़ी चिमनी लगाने को कहा गया था, फिर भी प्रदूषण बोर्ड ने छोटी चिमनी पर प्लांट चलाने की अनुमति दे दी, क्यों? प्रदूषण बोर्ड की इस जानलेवा स्वीकृति में भ्रष्टाचार के स्पष्ट संकेत मिलते हंै। इससे कम्पनी को लाभ हुआ होगा लेकिन पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा, अनेक लोगों कोे मौत का शिकार होना पड़ा। समस्या यह नहीं थी कि प्लांट के भीतर क्या चल रहा है, बल्कि समस्या यह थी कि भीतर जो भी हो रहा था उसकी वजह से बाहर काफी भयानक प्रभाव पड़ रहा था, जनजीवन मौत का शिकार होने के कगार पर पहुंच गयी।

वेदांता के त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण इतिहास के दंश और भी जगह व्याप्त रहे हैं। उसने लांजीगढ़ में 10 लाख टन क्षमता वाली एक रिफाइनरी का निर्माण किया था जिसकी क्षमता नियमागिरी में खनन के बलबूते 6 गुणा बढ़ा दी गई थी। हालांकि कम्पनी के पास इसकी कोई सरकारी मंजूरी नहीं थी। सब कुछ अवैध तरीके से किया गया था। शाह कमीशन ने 2012 में अवैध खनन के लिए जिन कम्पनियों को दोषी ठहराया था, उसमें सेसा गोवा भी शामिल थी। सेेसा गोवा वेदांता की लौह अयस्क कम्पनी है। एक अनुमान के मुताबिक अवैध खनन से राजकोष को 35 हजार करोड़ का नुकसान हुआ। देश में बड़े-बड़े उद्योगपति हैं, लेकिन उनमें से किसी ने भी इतने व्यवस्थित और निन्दनीय तरीके से अपनी मातृभूमि को नंगा नहीं किया जितना वेदांता ने किया है। यह भी सच है कि किसी कम्पनी का इतनी तेजी से विकास नहीं हुआ जितना वेदांता का हुआ।

स्टरलाइट प्लांट जैसे अनेक मौत को परोसने वाले कारखाने, खनन उपक्रम एवं व्यावसायिक ईकाइयां देश में धडल्ले से संचालित हैं, जो कार्पोरेट सेक्टर और सियासत की सांठगांठ का ही परिणाम है। जिनसे देश को अरबों रुपए का चूना लगता रहता है।

दरअसल, यह हमारे समय की एक खौफनाक एवं डरावनी सचाई है और हम ऐसे युग के गवाह बन रहे हैं जहां ठेेकेदारों, दलालों और खनन माफियाओं ने सत्ता पर अपना वर्चस्व जमाया हुआ है। देश में आर्थिक उदारवाद शुरू होने के साथ ही खान माफियाओं का उदय, आदिवासियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और नये-नये मौत के कल-कारखाने खुले। देश आज तक माओवाद की पीड़ा झेल रहा है।

थुथुकुड़ी में स्टरलाइट पर ताला लगाना उचित कदम है लेकिन इस ताले के पीछे छिपा हुआ है वेदांता का सच भी सामने आना चाहिए। उस सच से सभी सरकारों को सबक लेने की जरूरत है। निर्दोषों को मारना कोई मुश्किल नहीं। कोई वीरता नहीं। पर निर्दोष तब मरते हैं जब पूरा देश घायल होता है।

इसका मुकाबला हर स्तर पर हम एक होकर और सजग रहकर ही कर सकते हैं। यह भी तय है कि बिना किसी की गद्दारी के ऐसा संभव नहीं होता है। यह घटना चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है सत्ता-कुर्सी के चारों तरफ चक्कर लगाने वालों से, हमारी खोजी एजेन्सियों से, हमारी सुरक्षा व्यवस्था से कि वक्त आ गया है अब जिम्मेदारी से और ईमानदारी से राष्ट्र को संभालें। यह हम सबकी माँ है। इसके पल्लू को कोई दागदार न कर पाये।

 

-ललित गर्ग

News Reporter
Vikas is an avid reader who has chosen writing as a passion back then in 2015. His mastery is supplemented with the knowledge of the entire SEO strategy and community management. Skilled with Writing, Marketing, PR, management, he has played a pivotal in brand upliftment. Being a content strategist cum specialist, he devotes his maximum time to research & development. He precisely understands current content demand and delivers awe-inspiring content with the intent to bring favorable results. In his free time, he loves to watch web series and travel to hill stations.
error: Content is protected !!