; नाथू राम गोडसे को जेल की जगह कमरे में क्यों रखा गया?
नाथू राम गोडसे को जेल की जगह कमरे में क्यों रखा गया?

नाथू राम गोडसे ने महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को गोली मार कर हत्या कर दी थी। इसके बाद नाथू राम गोडसे को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन उनको गिरफ्तार करने के बाद रखा कहां गया था ये बात बहुत लोगों को नहीं पता है। तो चलिए हम आज आपको नाथू राम गोडसे से जुड़ी हर वो बात बताएंगे जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

नाथू राम को जेल नही बल्कि कमरे में छिपाया गया

दरअसल नाथू राम गोडसे को जनाक्रोश से बचाने के लिए मुंबई में छिपाकर रखा गया था। मुंबई में सीएसटी के पास स्पेशल ब्रांच की इमारत के एक कमरे में नाथू राम गोडसे को दो हफ्ते तक रखा गया था। क्राइम ब्रांच ने जानबूझकर नाथू राम गोडसे को सामान्य लॉकअप में नही रखा था।

मुंबई शहर के बीचों बीच बनी स्पेशल ब्रांच की इमारत में स्थित एक हजार वर्गफीट का यह कमरा कई वर्षों तक इतिहास के पन्नों से गुम था। दरअसल महात्मा गांधी की हत्या की जांच कर रही टीम यह नहीं चाहती थी कि किसी भी प्रकार का जनाक्रोश भड़के। इसलिए नाथूराम गोडसे को सजा मिलने के बाद भी इस कमरे को रहस्य ही रहने दिया गया।

कहां है वो कमरा?

गोडसे को मुंबई स्पेशल ब्रांच इमारत के जिस कमरे में रखा गया था, वह भूतल में स्थित है और ‘सी विंग’ के नाम से जाना जाता है। गांधीजी की हत्या‍ के तुरंत बाद गोडसे को दिल्ली से मुंबई लाया गया था और यहां रखा गया था। इतिहासकार दीपक राव के अनुसार जिस कमरे में गोडसे को रखा गया था, पहले वहां जमशेद दोराब नागरवाला का दफ्तर हुआ करता था, जो उन दिनों स्पेशल ब्रांच पुलिस के उपायुक्त थे। गांधीजी की हत्या के तुरंत बाद उन्हें दिल्ली पुलिस का अधीक्षक बनाकर जांच का जिम्मा सौंपा गया था।

स्‍पेशल ब्रांच का रिकॉर्ड रूम मुंबई में सीएसटी के नजदीक म्यूनिसिपल स्ट्रीट नंबर 12, बदरुद्दीन तयबजी मार्ग, जिसे जिम्नेसियम रोड भी कहते हैं, पर स्थित है। यहां एक बड़ा हॉल है, जिसमें स्पेशल ब्रांच द्वारा एकत्रि‍त दस्तावेजों को रखा जाता है।

अपने रिटायरमेंट के बाद नागरवाला ने दीपक राव को बताया था कि गोडसे को मुंबई लाने का फैसला उन्होंने ही लिया था। जांच पूरी होने और गोडसे की सजा मुकर्रर होने के बाद नागरवाला को मुंबई लाए जाने संबंधी सभी सबूतों को मिटा दिया गया था।

नेशनल आर्काइव से मिली जानकारी के अनुसार उनके पास सन 1880 से लेकर 1948 तक के गांधी जी से संबंधित 27500 दस्तावेज हैं। इसमें उनकी हत्या के ट्रायल से संबंधित कागजात भी शामिल हैं।

22 जून 1948 को लाल किले में बनाई गई विशेष अदालत में गोडसे और गांधी जी की हत्या की साजिश में शामिल बाकी लोगों के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई। ट्रायल आठ महीने चला और 10 फरवरी 1949 को जस्टिस आत्म चरण ने अपना फैसला सुनाया था। आठ लोगों को हत्या की साजिश का दोषी माना गया था। बाकियों को विस्फोटक सामग्रियां रखने का दोषी पाया गया था। गोडसे और आप्टे को मौत की सजा दी गई थी, जबकि बाकी छह को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।

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