; ग्रामीण युवकों के लिए व्यावसायिक बकरी पालन पर प्रशिक्षण का शुभारंभ
ग्रामीण युवकों के लिए व्यावसायिक बकरी पालन पर प्रशिक्षण का शुभारंभ

पवन पाण्डेय महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र चौक माफी पीपीगंज गोरखपुर द्वारा व्यवसायिक बकरी पालन पर ग्रामीण युवाओं के लिए तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया ।कार्यक्रम में युवाओं को संबोधित करते हुए वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ संदीप कुमार सिंह ने कहा कि बकरी पालन युवाओ के लिए रोजगार का अच्छा साधन हो सकता है जिससे इनके आजीविका में सुधार हो सकता है। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए पशुपालन वैज्ञानिक डॉ विवेक प्रताप सिंह ने बताया कि कृषि में विविधीकरण कर उसमें पशुपालन को शामिल कर अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है ।

कृषि में पशुपालन के शामिल होने से उन्हें वर्षभर लाभ के साथ रोजगार भी मिलेगा जिससे उन्हें पलायन की आवश्यकता नही पड़ेगी और साथ ही वो अन्य बेरोजगारों को भी रोजगार देने में भी सहायक हो सकते है। डॉ सिंह ने प्रशिक्षण में प्रशिक्षणार्थियो को बताया कि आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान के लिए बकरी पालन एक मुनाफे का व्यवसाय है तथा यह आत्मनिर्भर बनने का एक बहुत ही अच्छा साधन है ।

बकरी पालन एक बहुत ही अच्छा व्यवसाय है कम जगह कम लागत में अधिक फायदा बकरी पालन से प्राप्त किया जा सकता है उन्होंने बकरी पालन में आने वाली चुनौतियों और बकरी पालन हेतु आवश्यक जानकारियों के साथ अपने वातावरण अपने जलवायु के आधार पर बकरी के नस्लों का चुनाव मांस उत्पादन या दूध एवं मांस दोनों के लिए कैसे करें साथ ही बताया कि बकरी पालन में बकरियों से जुड़ी प्रत्येक जानकारी को बकरी पालक अलग-अलग तरह के अभिलेख बनाकर रखें जिससे बकरियों के बारे में पूर्ण जानकारी उनको मिलती रहेगी और सभी बकरियों पर नजर रखने में आसानी होगी ।

बकरी पालन व्यवसाय से किसानों की आय दोगुनी से तिगुनी की जा सकती है अगर किसान बकरी पालन को वैज्ञानिक तरीके से करें। बकरी पालन शुरू कर रहे तो उच्च नस्ल की बकरियों का चयन करें। स्टॉल फीडिंग के लिए बरबरी बकरी पालें और अगर चराई के लिए रखना है तो सिरोही बकरी का चयन करें। अगर किसान बकरी पालन शुरू कर रहे हैं तो प्रशिक्षण जरूर लें ताकि पशुपालकों को पूरी जानकारी रहे और घाटा न हो बकरी पालन व्यवसाय से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कैसे हो, इसके बारे में डॉ. सिंह ने आगे बताया, “अगर बकरियों को सही समय पर गर्भित कराते हैं तभी किसान को लाभ मिलेगा।

उत्तर भारत में बकरियों को 15 सिंतबर से लेकर नवंबर और 15 अप्रैल से लेकर जून तक गाभिन कराना चाहिए। सही समय पर बकरियों को गाभिन कराने से नवजात मेमनों की मृत्युदर कम होती है। ज्यादातर किसान बकरी के बाड़े की साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देते हैं जबकि साफ-सफाई बकरियों में होने वाली बीमारियों को कम कर देता है। इसलिए नियमित साफ-सफाई बहुत जरूरी है। जहां पर बकरी को बांधे वहां की एक या दो इंच परत मिट्टी की समय-समय पर पलट दें, जिससे उसमें जो परजीवी होते हैं, वो निकल जाते हैं। बाड़े की मिट्टी जितनी सूखी होती है उतनी ही बकरियों को बीमारियां कम होती है। इसके अलावा बकरियों को पानी से दूर रखा जाए। जब बकरी ग्याभिन हो तो उसे अत्यधिक मात्रा में हरा चारा और खनिज लवण देना चाहिए। पशुपालक जेर गिरने तक बच्चे को दूध नहीं पीने देते हैं, ऐसा न करें, जितना जल्दी बच्चे को मां का पहला दूध (खीस) पिलाएंगे उतना ही बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ती है।”

बकरियों के आहार प्रबंधन का रखें विशेष ध्यान

ज्यादातर किसान बकरियों के आहार प्रंबधन पर ध्यान नहीं देते हैं। वह उन्हें चरा कर बांध देते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। बकरियों को चराने के बाद उन्हें उचित चारा देना चाहिए, जिससे उनके मांस और दूध में वृद्धि हो सके।

सबसे पहले बकरी का बच्चा पैदा होने के बाद उसे खीस (पहला दूध) जरूर पिलाएं। नवजात बच्चे को खीस पिलाने से कई रोगों का निदान हो जाता है। बच्चे का इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होता है जिससे मृत्युदर में कमी आती है। वैज्ञानिक सस्य डॉ अवनीश सिन्ह ने बताया कि संगठित होकर या समूह बनाकर बकरी पालन का कार्य करें जिससे बकरी और उस से बनने वाले उत्पाद और उनके विपणन कोई समस्या नहीं आएगी। कार्यक्रम में डॉ संदीप प्रकाश उपाध्याय मृदा वैज्ञानिक, श्री जितेंद्र सिंह श्री आशीष सिंह के साथ-साथ चरगवां, जंगल कौड़िया और कैंपियरगंज के 25 ग्रामीण युवको ने प्रतिभाग किया ।

News Reporter
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