बीते शुक्रवार को नेटफ्लिक्स पर रीलीज़ हुई फिल्म धमाका। धमाका साउथ कोरियाई फिल्म दी टेरर लाइव का हिंदी रीमेक हैं। इसे लिखा हैं पुनीत शर्मा और डायरेक्टर राम माधवानी ने। कुछ चीज़ो को छोड़ कर धमाका ने धमाका तो नहीं लेकिन बम ज़रूर फोड़ दिया हैं। बात ये हैं की इस फिल्म में सब कुछ नार्मल हैं। टेक्निकल चीज़ो को छोड़ कर काफी कुछ रिलेटेबल हैं। और सबसे ख़ास बात कि भारत में मीडिया के पतन के दौर में मीडिया पर बनी ये फिल्म काफी हद्द तक भारत के मीडिया की अंतर आत्मा को दर्शता हैं।
किसी भी फिल्म की जान होती हैं उसकी कहानी। इस फिल्म की कहानी शुरू होती हैं अर्जुन पाठक नाम के एक न्यूज़ एंकर से जिसकी ज़िन्दगी में बुरा वक़्त चल रहा हैं। अच्छी खासी प्राइम टाइम न्यूज़ एंकर से एक रेडियो होस्ट बना दिए गए हैं। ऊपर से उनका उनकी पत्नी से तलाक भी हो रहा होता हैं। तभी रेडियो शो में एक कॉल आता हैं जो कहता हैं – वो मुंबई की सी लिंक को बम से उड़ाने जा रहा हैं। रेडियो होस्ट प्रैंक कॉल समझ के बोलता हैं – हाँ तो उड़ा दे अब चल कॉल काट। लेकिन उसी वक़्त ज़ोर से आवाज़ आती हैं और बाहर देखने पर पता चलता हैं सच में सी लिंक के एक हिस्से को बम से उड़ा दिया गया हैं।
अब ये रेडियो होस्ट करे तो करे क्या बोले तो बोले क्या ? तभी इसके दिमाग़ में आता हैं कि इस ख़बर को पुलिस में इत्तला करने के बजाय टीवी पर सबसे पहले लाइव यही इस खबर को ब्रेक करेगा। इसी से अपनी प्राइम टाइम की सीट पक्की करेगा और अपनी नइया पार लगाएगा। धमाके के बाद उस व्यक्ति का दोबारा कॉल आता जिसमे वो मांग करता हैं कि, मिनिस्टर साहब को अपने लाइव शो में 10 मिनिट में बुलाओ नहीं तो पूरी सी लिंक को बम से उड़ा देगा। अब इसके बाद क्या होता होता हैं एंकर क्या करता हैं मीडिया टीआरपी के लिए क्या क्या करती हैं उस कॉल करने वाले इंसान का क्या होता हैं ये सब जान ने के लिए आपको ये 1:40 मिनट की फिल्म देखनी पड़ेगी।
फिल्म की जान फिल्म के संवाद हैं। कुछ बेहद उम्दा संवाद हैं जिसे बहुत ख़ूबसूरती से फिल्माया गया हैं। उसी में से एक संवाद हैं जिसे एंकर और उसके संपादक के बीच फिल्माया गया हैं –
संपादक – ” एंकर्स क्या होते हैं?”
एंकर – “एंकर्स एक्टर्स होते हैं।”
संपादक – “एक्टर्स को क्या चाहिए?”
एंकर – “एक्टर्स को ऑडियंस चाहिए।”
संपादक – “ऑडियंस को क्या चाहिए?”
एंकर – “ऑडियंस को ड्रामा चाहिए।”
संपादक – “गुड तो हम ड्रामा पेश करेंगे।”
किसी और के लिए ज़रूरी न सही लेकिन आज के न्यूज़ एंकर्स के लिए यह फिल्म देखना बेहद ज़रूरी हैं। लाखो करोड़ो की मासिक तनख़ाह लेने वाले न्यूज़ एंकर्स नहीं समझते कि, वे सरकार के सिर्फ कठपुतली हैं खुद सरकार नहीं। और कभी ख़ुद सरकार बन भी नहीं सकते। जितना भी गुमान में जी लें आख़िर रहेंगे तो सरकार के प्यादे ही। कभी न कभी तो आपका टाइम आएगा फिर प्राइम टाइम क्या छोटी सी ज़मीन का टुकड़ा भी नहीं मिलेगा मुँह छुपाने को।
फिल्म में लीड रोले निभाया हैं कार्तिक आर्यन ने, जो अर्जुन पाठक नाम के न्यूज़ एंकर के रूप में नज़र आते हैं। मजेदार बात है कि अर्जुन पाठक बहुत हद्द तक न्यूज़ एंकर्स राहुल कंबल, अर्नब काऊस्वामि जैसे असल दुनिया के प्यादे जैसे ही हैं। फिल्म में अर्जुन पाठक हीरो से कब विलन बन जाते हैं उन्हें खुद पता नहीं चलता। जब तक पता चलता है तब तक उनकी दुनिया लूट चुकी होती हैं।
फिल्म में कुछ बेहतरीन संवाद हैं। उसी में से एक प्यारा संवाद हैं जो अर्जुन और उसकी पत्नी सौम्य के बीच फिल्माया गया हैं। संवाद कुछ इस प्रकार हैं –
सौम्या अर्जुन से बोलती हैं – “पाठक जी ये तुम्हारा पहला प्राइमटाइम शो है। नर्वस?”
अर्जुन सौम्या से बोलता हैं : “हां नर्वस”
सौम्या: ” मैं भी “
अर्जुन: “तुम्हें नहीं लगता है कि मैं ये प्राइमटाइम का शो कर पाउंगा?”
सौम्या: “नहीं। उसमें तो 1 परसेंट का भी डाउट नहीं है। तुम जब भी बोलोगे न, ‘जो भी कहूंगा, सच कहूंगा’, लोग तुमपर आंख बंद करके भरोसा करने वाले हैं।”
अर्जुन: “सच?”
सौम्या: “हम्म.”
अर्जुन: “तो तुम क्यूं नर्वस हो?”
सौम्या: “मे बी, इसीलिए।”
इस देश दुनिया का कोई अनजान इंसान जिसे न्यूज़ मीडिया के बारे में ज़रा सा भी इल्म नहीं हैं। बरसों से दिल्ली बम्बई जैसे बड़े शहरो से दूर या बड़े शहरो में रह रहा और अपनी दुनिया में मस्त मौला बना ज़िन्दगी जी रहा। वो इंसान का धमाका के साथ आमना सामना होगा तब थोड़ा सा तो ज़रूर उसे ज्ञान प्राप्त होगा इस मीडिया के माया जाल का- की कैसे मीडिया आपको ही हाँ आपको ही मोहरा बना कर आपकी ही दुनिया को बर्बाद करता हैं। सिर्फ और सिर्फ पैसो के लिए।
फ़िल्म एकदम खुले तौर से बताती है कि दुनिया में सिर्फ़ और सिर्फ़ जंगलराज है। चाहे सरकार ले ले या मीडिया या और कोई संसथान यहां हर कोई एक-दूसरे को खाने दबाने के लिये ही बैठा हुआ है। सभी सिर्फ और सिर्फ खुद के लिए सब कुछ करते हैं। आपको कोई कितना भी यकीन दिला दे कि वो आपके लिए कर रहा तो इससे बेईमान और कुछ भी नहीं। यहाँ हम सब किसी न किसी को पीछे धकलने उखाड़ फेकने और खाने के लिए ही हैं। हम सब किसी न किसी का मोहरा ही हैं जो एक दिन साइड कर दिए जायेंगे। जो अभी किसी को साइड कर रहे थोड़ी देर में वो खुद किसी के द्वारा साइड कर दिया जायेगा। यही दस्तूर बना दिया गया हैं हमारे हुक्मरानो ने। इसी वजह से पूरी दुनिया का 99 फ़ीसदी पैसा सिर्फ 1 फीसदी के हांथो में हैं। आपको लगता हैं रात को 9 बजे प्राइम टाइम कर रहा एंकर सच बोलता हैं लेकिन आपको पता नहीं कि उसका सिर्फ शरीर ही उसका हैं बाकि बोल किसी और के हैं जो पूरे देश दुनिया को चला रहे हैं।
अब बात करते हैं फिल्म के खामियों की
फिल्म ने शुरुआत काफी अच्छी की लगभग 40 मिनट तक फिल्म आपको बांधे रखेगी। लेकिन उसके बाद फिल्म ने बहुत छूट ली। टेक्निकल चीज़ो में कुछ कुछ सीन्स हज़म नहीं होती। जैसे 10 मिनट के अंदर एक रेडियो ऑफिस को न्यूज़ रूम बना दिया जाना, स्टूडियो में लाइव एंकर के माइक में विस्पोट होना। एक चैनल से दूसरे चैनल पर लाइव बातें करना। इन्ही सब छोटी छोटी चीज़ो से फिल्म धमाका करते करते रह गयी। कोरियन फिल्म को जैसे का तैसा उठा कर पटक दिया गया हैं। बिना इम्प्रोवाईजन के। यही हैं इस फिल्म की खामियां।
इन सब चीज़ो के बावजूद फिल्म देखने लायक है फिल्म के संवाद के साथ एक्टिंग और गाने काफी अच्छी हैं। सभी कलाकारों ने अच्छा काम किया हैं। चाहे वो कैमरे के आगे हो या पीछे। काम से काम इस वजह से तो देखना बनता हैं कि बॉलीवुड हिंदी फिल्म्स में कुछ अलग हट के आया हैं। कुछ नया प्रयोग हुआ हैं। और इतना बुरा भी नहीं। जब सलमान ख़ान की फिल्म्स में लॉजिक नहीं ढूंढते तो इस फिल्म की सराहना करनी ही चाहिए। हिंदी फिल्म की बेहतरी के लिए।