; आज ही के दिन लगाया था इंदिरा गांधी ने आपातकाल का काला धब्बा
आज ही के दिन लगाया था इंदिरा गांधी ने आपातकाल का काला धब्बा

सन्तोषसिंह नेगी /चमोली ..25 जून 1975 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय लोकतंत्र की मान्यताओं का हनन करते हुए आपातकाल की घोषणा कर दी थी। यह दिन आज भी भारत के इतिहास में काले इतिहास के रूप में जाना जाता है भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों की धज्जियां उड़ती जा रही थी सरकार का विरोध करने वालों को सरकार के कहने पर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा रहा था ।

जय प्रकाश नारायण  ने बिहार के छात्र आंदोलन को एक संगठन, लक्ष्य, नेतृत्व और करिश्मा प्रदान किया था लगभग सभी राजनीतिक दल अपने मतभेद भुलाकर जेपी के साथ खड़े हो गए और जल्दी ही आंदोलन का लक्ष्य प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हटाना और भ्रष्टाचार तथा एकाधिकारवादी शासन का अंत हो गया।  जय प्रकाश नारायण ने 1975 के “संसद मार्च” में 4 लाख से भी अधिक लोग सम्मिलित हुए। 25 जून 1975 की रामलीला मैदान की महारैली में जेपी ने पुलिस और सैनिक बलों से असंवैधानिक और अनैतिक आदेशों को नहीं मानने का आग्रह किया। बाद में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने के लिए “आंतरिक अशांति” की आशंका को इसी भाषण के आधार पर तर्कसंगत ठहराया था।

भारतीय संविधान में आपातकाल का उल्लेख 352 से 360 के बीच किया गया है आपातकाल लगाना इंदिरा गांधी के जीवन  का सबसे बड़ा फैसला था। 25 जून 1975 की 12 बजे मंत्रिमंडल की अनुशंसा पर राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। यद्यपि हकीकत यह है कि आपातकाल की घोषणा रेडियो पर पहले कर दी गई तथा बाद में सुबह मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उस पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए। यद्यपि संवैधानिक प्रावधान यह है कि मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उसकी अनुशंसा पर जब राष्ट्रपति हस्ताक्षर कर देते हैं तब आपातकाल की घोषणा की जा सकती है।

आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए। अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया था। 25 जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया। जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नाडीस मोरारजी देसाई आदि बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया और जेलों में जगह नहीं बची। आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई। प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई। हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी।

ज्यादा प्रकाश नारायण  की सम्पूर्ण क्रांति में किसान, मजदूर, आम आदमी एक साथ खड़ा हो गया।इसके आन्दोलन का उद्देश्य अहिंसात्मक तरीके से अपनी मांगे सरकार के समाने रखना था लेकिन इंदिरा गांधी ने आम आदमी की आवाज दबाई थी।

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