; प्रभु का स्मरण करने का रास्ता भी एक है तथा मंजिल भी एक है - Namami Bharat
प्रभु का स्मरण करने का रास्ता भी एक है तथा मंजिल भी एक है

(1) प्रभु का स्मरण करने का रास्ता भी एक है तथा मंजिल भी एक है :-

विश्व भर में जो धर्म के नाम पर लड़ाई-झगड़ा हो रहा है, उसके पीछे एकमात्र कारण हमारा अज्ञान है।प्रायः लोग कहते हैं कि प्रभु का स्मरण करने के अलग-अलग धर्म के अलग-अलग रास्ते हैं किन्तु मंजिल एक है।सभी धर्मों के पवित्र ग्रन्थों के अध्ययन के आधार पर हमारा मानना है कि प्रभु को स्मरण करने का रास्ता भी एक है तथा मंजिल भी एक है। प्रभु की इच्छा व आज्ञा को जानना तथा उस पर दृढ़तापूर्वक चलते हुए प्रभु का कार्य करना ही प्रभु को स्मरण करने का एकमात्र रास्ता है। सिटी मोन्टेसरी स्कूल की स्कूल प्रेयर बहुत गहरी है – हे ईश्वर, तुने मुझे इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तुझे जाँनू तथा तेरी पूजा करूँ। हमारा जीवन केवल दो कामों के

लिए (पहला) प्रभु की शिक्षाओं को भली प्रकार जानने तथा (दूसरा) उसकी पूजा (अर्थात प्रभु का कार्य ) करने के लिए हुआ है। सभी पवित्र ग्रन्थों गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरूग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस की शिक्षायें एक ही परमात्मा की ओर से आयी हैं तथा हमें उसी एक परमात्मा का कार्य करने की प्रेरणा भी देती हैं। हम मंदिर, मस्जिद, गिरजा तथा गुरूद्वारा कहीं भी बैठकर पूजा, इबादत, प्रेयर, पाठ करें, उसको सुनने वाला परमात्मा एक ही है। इस प्रकार हम सब एक है, ईश्वर एक है तथा धर्म एक है।

(2) हे परमात्मा, मेरी सहायता कर कि मैं तेरी सेवा के योग्य बनूँ :-

परमात्मा का अंश होने के कारण आत्मा अजर और अमर है जबकि हमारा शरीर अस्थायी है और मृत्यु के बाद में मिट्टी में मिल जायेगा। आत्मा के लिए तो यह संसार एक सराय मात्र है। आत्मा इस शरीर की मालिक है और आत्मा जहाँ से हमारे शरीर में आयी है शरीर की मृत्यु होने के बाद आत्मा वही वापिस लौट जाती है। परमात्मा का दिव्य लोक आत्मा की मंजिल है। शरीर की यात्रा तो लगभग 100 वर्षो की है। इस यात्रा में सफल होंगे या असफल इसके लिए मनुष्य को परमात्मा से स्वतंत्र इच्छा शक्ति मिली है। यह मनुष्य के विवेक पर निर्भर है कि अच्छे कार्य करके वह सफल बने या बुरे कार्य करके वह अपनी आत्मा का विनाष कर ले। भगवान की नौकरी करने जायेंगे तो वह पूछेंंगे कि तुम्हारे अंदर क्या-क्या गुण हैं? भगवान की नौकरी सबसे अच्छी है। यदि वह मिल जायें तो सब कुछ मिल गया। इसलिए हमारी प्रभु से प्रार्थना है कि हे प्रभु हमारा कोई मनत्व ऐसा न हो जो आपकी की इच्छा तथा आज्ञा के विरूद्ध हो। हमारी इन्द्रियाँ तथा मन हमारे वश में हो। हमारे प्रत्येक कार्य के पीछे छिपा हुआ उद्देश्य पवित्र हो और कोई भी स्वार्थ का विचार हमें प्रभु का कार्य तथा मानव जाति की सेवा से विचलित न कर सके। हे परमात्मा, मेरी सहायता कर कि मैं तेरी सेवा के योग्य बन सकूँ।

(3) केवल हमारा मन हमें अच्छे कार्य करने से रोकता है :-

मनुष्य जीवन की यात्रा में हमें प्रभु का कार्य करने के लिए शरीर रूपी यंत्र मिला हुआ है। परमात्मा ने विशेष कृपा करके शरीर रूपी मशीन फ्री ऑफ चार्ज प्रभु का कार्य करने के लिए हमें दी है। इसके साथ ही पशु तथा मनुष्य दोनों को स्वतंत्र इच्छा शक्ति मिली है लेकिन मनुष्य को अच्छे-बुरे का विचार करने की शक्ति विशेष अनुदान के रूप में मिली है। पशु को अच्छे-बुरे का विचार करने की शक्ति नहीं मिली है। यदि हम अपने मन में अच्छे विचार लायेंगे तो हमें जीवन में अच्छे कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। महापुरूषों के जीवन में देखे तो वे साधारण से असाधारण व्यक्ति अच्छे विचारों तथा अच्छे कार्यो के कारण ही बने। इसलिए वही आइये, हम प्रभु का कार्य करके अपने मन, बुद्धि, आत्मा तथा हृदय को पवित्र बनायें। हमें अच्छा कार्य करने से कौन रोकता है? केवल हमारा मन हमें अच्छे कार्य करने से रोकता है। इसके अलावा धरती तथा आकाश की कोई भी ताकत हमें अच्छे कार्य करने से रोक नहीं सकती। यदि हम मन के अंदर महान बनने के विचार लायेंगे तो हम महान बन जायेंगे।

समझदार लोग समय तथा शक्ति के रहते अपनी आत्मा को अच्छे कार्यां के द्वारा विकसित करते हैं। यह मानव जीवन हमें अपनी आत्मा के विकास के साथ ही प्रभु का कार्य करने के लिए मिला है। विकसित आत्मा ही परमात्मा की निकटता का सौभाग्य प्राप्त करती है।

(4) स्वार्थ का एक विचार हमारे सारे गुणों को नष्ट कर देता है :-

हृदय के अंदर ईश्वरीय गुण भरे हैं। कहीं हमारे स्वार्थ से भरे गंदे हाथ इस खजाने को लूट न लें। बड़े-बड़े आदमी बहुत ऊँचाई तक पहुँचने के बाद अपने स्वार्थ के कारण बहुत नीचे तक गिरते चले जाते हैं। स्वार्थ का जहर जिसके मन में आ गया उसका सब कुछ लुट जाता है। स्वार्थ रहित हृदय पवित्र होता है। किसी के प्रति भी मन में बदले की भावना न हो। यदि परमात्मा से प्रेम करना है तो अपने से अर्थात अपने स्वार्थ से ऊपर उठना होगा क्योंकि प्रेम गलि अति साकरी जा में दो न समाय अर्थात् हमारे हृदय में एक ही के लिए रहने का स्थान है इसलिए इसमें या

तो हम परमात्मा के गुणों को रख लें या फिर अपने स्वार्थ को। प्रभु की राह में निरन्तर आगे बढ़ने के लिए हमें धैर्यपूर्वक सहन करना चाहिए। ऐसा करने से अधिक से अधिक प्रभु प्रेम की प्राप्ति होती है। यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि बालक कैसे परिवार, समाज तथा विश्व में एकता तथा शान्ति स्थापित कर सकते हैं? बच्चे पवित्र मन के होते हैं उनमें बहुत ज्यादा आत्मा का बल होता है। प्रत्येक परिवार, समाज तथा देश के लिए बच्चों का हित सर्वोपरि होता है। शिक्षा के द्वारा बालक की कलम में इतनी शक्ति भरी जा सकती है ताकि वह विश्व के सबसे ऊँचे पद पर

बैठकर अपने एक हस्ताक्षर से सामाजिक परिवर्तन ला सके।

(5) सभी अवतारों के अवतरण का एकमात्र स्त्रोत एक ही परमात्मा है :-

जब सभी अवतारों का परमात्मा एक है तो हमारा परमात्मा अलग-अलग कैसे हो सकता है? यह बात हम सबको भली-भांति समझनी है कि परमात्मा की ओर से युग-युग में अवतरित अवतारों की शिक्षा सारी मानव जाति के लिए होती है। राम की शिक्षा मर्यादा की है। सभी संसारवासियों को मर्यादित जीवन जीना चाहिए। कृष्ण की शिक्षा न्याय की है। सभी संसारवासियों को न्यायप्रिय होना चाहिए। बुद्ध की शिक्षा सम्यक ज्ञान (समता) की है।परमात्मा की दृष्टि में संसार के सभी मनुष्य एक बराबर है। जाति-पाति की प्रथा भगवान की शिक्षा नहीं है। यह बहुत पुराने जमाने में बनायी गयी प्रथा है। लेकिन अब हम एक विकसित तथा शिक्षित समाज में रह रहे हैं। अब जाति-पाति तथा ऊँच-नीच के भेदभाव की जरूरत नहीं है। ईशु की सारी शिक्षा करूणा पर आधारित है। सभी विश्ववासियों में एक-दूसरे के प्रति करूणा हो। मोहम्मद साहेब की शिक्षा भाईचारे की है। सभी विश्ववासियों में आपस में भाईचारा हो। नानक की शिक्षा त्याग की है। सभी को एक-दूसरे के लिए त्याग करना चाहिए। बहाउल्लाह

की शिक्षा हृदय की एकता है। एकता के विचार अपने मन में लाना होगा। पहले स्वयं को एकता के विचार से संतुष्ट होना चाहिए, तभी हम सारी दुनियाँ को एकता के विचार दे सकते हैं। सभी विश्ववासियों के हृदय मिलकर एक हो जायें तो सारे विश्व में एकता तथा शान्ति स्थापित हो जायें।

(6) हमारा जीवन केवल प्रभु इच्छा को जानने तथा पूजा के लिए है :-

अर्जुन ने पहले भगवानोवाच गीता के ज्ञान द्वारा प्रभु इच्छा को जानने की कोशिश की तथा फिर प्रभु का कार्य करने के लिए युद्ध किया। अर्जुन ने गीता के सन्देश द्वारा जाना कि न्याय की स्थापना के लिए युद्ध करना ही प्रभु का कार्य अर्थात पूजा है। उस समय राजा ही जनता के दुःख-दर्द को सुनकर न्याय करते थे। कोई कोर्ट या कचहरी उस समय नहीं थी। जब राजा स्वयं ही अन्याय करने लगे तब न्याय कौन करेगा? न्याय की स्थापना के लिए युद्ध के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं बचा था। पवित्र गीता के ज्ञान से अर्जुन को शिक्षा मिली कि न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना चाहिए। जिस परिवार, संस्था तथा समाज में न्याय नहीं होगा वहाँ अव्यवस्था फैल जायेगी। अर्जुन ने प्रभु की शिक्षा को पहले जाना फिर महाभारत का युद्ध करके धरती पर न्याय के साम्राज्य की स्थापना की। अर्जुन ने परमात्मा के आदेश का पालन करने के लिए अपने ही कुटुम्ब के दुष्टों का विनाश किया। सभी पवित्र ग्रन्थों में प्रभु की इच्छा को जानने का ज्ञान भरा हुआ है इसलिए मेरे प्रत्येक कार्य रोजाना प्रभु की सुन्दर प्रार्थना बने।

(7) जीवन की सफलता भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान के संतुलन पर निर्भर होती है :-

प्रत्येक व्यक्ति को अपने अंदर ईश्वरीय गुणों को विकसित करके असाधारण बनने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा प्रयास करने से हम महापुरुषों की तरह असाधारण बन जायेंगे। सिटी मोन्टेसरी स्कूल बच्चों को बाल्यावस्था से ही साधारण से असाधारण बनने की उद्देश्यपूर्ण शिक्षा दे रहा है। प्रत्येक मनुष्य के लिए अजीविका कमाने के लिए योग्यता जरूरी है। बच्चों को बाल्यावस्था से ही अपने सभी विषयों का उत्कृष्ट ज्ञान अर्जित करना चाहिए। जीवन में जिस प्रकार भौतिक ज्ञान की वृद्धि बहुत आवश्यक है। उसी प्रकार सामाजिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान भी विकसित करना आवश्यक है। भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों शिक्षाओं के संतुलन पर जीवन की सफलता निर्भर करती है। साथ ही बच्चों को बाल्यावस्था से कानून, व्यवस्था तथा न्याय के बुनियादी सिद्धान्तों को भी जीवन में भली प्रकार सीखना चाहिए। हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि हे ईश्वर, हमें इतनी शक्ति दें कि हम सारे विश्व में एकता तथा शान्ति का वातावरण निर्मित कर सकें।

(8) आज विश्व को टोटल क्वालिटी पर्सन की आवश्यकता है :-

हम सभी परमात्मा की आत्मा के पुत्र-पुत्री हैं। इस नाते से सारी मानव जाति हमारा कुटुम्ब है। विश्व के लोग अज्ञानतावश आपस में लड़ रहे हैं हमें उन्हें एकता की डोर से बाँधकर एक करना है। हमें बच्चों को बाल्यावस्था से ही यह संकल्प कराना चाहिए कि एक दिन दुनियाँ एक करूँगा, धरती स्वर्ग बनाऊँगा। विश्व शान्ति का सपना एक दिन सच करके दिखलाऊँगा। एक परमात्मा की पवित्र पुस्तकों का ज्ञान सारी मानव जाति के लिए हैं। पवित्र मन से की गयी सेवा फलित होती है। यदि बच्चे बाल्यावस्था से ही सारे अवतारों की मुख्य शिक्षाओं मर्यादा, न्याय, सम्यक ज्ञान (समता), करूणा, भाईचारा, त्याग तथा हृदय की एकता को ग्रहण कर लें तो वे टोटल क्वालिटी पर्सन बन जायेंगे। इस नयी सदी में विश्व में एकता तथा शान्ति लाने के लिए टोटल क्वालिटी पर्सन (पूर्णतया गुणात्मक व्यक्ति) की आवश्यकता है। सिटी मोन्टेसरी स्कूल प्रतिवर्ष विभिन्न विषयों पर आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के द्वारा विश्व के प्रत्येक बालक में टोटल क्वालिटी पर्सन बनने की क्षमता विकसित करने के लिए संकल्पित है। इस प्रकार सी.एम.एस. सारे विश्व में एकता, शान्ति तथा ’सारी वसुधा कुटुम्ब के समान है’के विचारों को व्यापक रूप से फैला रहा है।

-डा0 जगदीश गांधी (लेखक शिक्षाविद् तथा सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के संस्थापक-प्रबन्धक हैं।)

News Reporter
Vikas is an avid reader who has chosen writing as a passion back then in 2015. His mastery is supplemented with the knowledge of the entire SEO strategy and community management. Skilled with Writing, Marketing, PR, management, he has played a pivotal in brand upliftment. Being a content strategist cum specialist, he devotes his maximum time to research & development. He precisely understands current content demand and delivers awe-inspiring content with the intent to bring favorable results. In his free time, he loves to watch web series and travel to hill stations.
error: Content is protected !!