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पुराने तालिबान से ज्य़ादा खतरनाक है ये नया तालिबान

अभिषेक उपाध्याय। दुनिया इन दिनों एक नए तालिबान की गिरफ्त में है। यह नया तालिबान पुराने तालिबान से कहीं ज्यादा कट्टर और खतरनाक है। यह खतरा इसलिए भी है क्योंकि इसे कई देशों का समर्थन हासिल हो रहा है। मजहबी कट्टरता की ये विचारधारा विवेक और लोकतंत्र पर भारी पड़ती दिखाई दे रही है। पाकिस्तान और टर्की आईएसआईएस के सबसे बड़े पनाहगार बनकर उभरे हैं। आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच की लड़ाई में भी आईएसआईएस का खुला रोल सामने आया। आईएसआईएस के आतंकी यहां भी टर्की और अजरबैजान की शह पर लड़ते हुए पाए गए। अब फ्रांस में इसी विचारधारा से प्रभावित आतंकियों ने बेहद खतरनाक हमले शुरू कर दिए हैं जिसका पाकिस्तान और टर्की जैसे मुल्क खुला समर्थन कर रहे हैं।

इस्लामिक कट्टरपंथ की इस असहिष्णु विचारधारा ने तालिबान के शुरूआती दिनों की यादें ताजा कर दी हैं। यह भी साफ होता जा रहा है कि ये सारा कुछ एक पैटर्न का हिस्सा है। इसी तरह से तालिबान ने बामियान की प्रतिमा उड़ा दी थी। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद इस घृणित वारदात को अंजाम दिया गया। मई 1999 में महीनों तक चले युद्ध के बाद तालिबान ने बामियान पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लिया। ज़्यादातर स्थानीय निवासी या तो भाग गए या गिरफ़्तार कर लिए गए। बलुआ पत्थर की प्राचीन प्रतिमा कभी विश्व भर में बुद्ध की सबसे ऊंची मूर्ति हुआ करती थी। इस प्रतिमा के चारों ओर विस्फोटक लगाए गए और फिर अल्लाह अकबर की आवाज़ों के बीच विस्फोट कर दिया गया। पिछले २० सालों में कट्टरता की इस विचारधारा को अलग अलग संगठनों के जरिए खाद पानी मिलता आया है।

फ्रांस के खिलाफ कट्टरता के इन प्रदर्शनों में शामिल देशों की तादाद बढ़ती जा रही है इस तरह के प्रदर्शन बांग्लादेश, ईरान, तुर्की, फिलस्तीन, सऊदी अरब, जार्डन जैसे मुस्लिम देशों में हो रहे हैं। इन सभी मुस्लिम देशों ने फ्रांस के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है। टर्की इस कट्टरता भरी विचारधारा की केंद्रीय धुरी बनकर उभरा है। टर्की के राष्ट्रपति आर्दगान ने यहां तक कह दिया कि फ्रांस के राष्ट्रपति को अपनी मानसिक हालत की जांच करा लेनी चाहिए। फिलिस्तीन, तुर्की, जॉर्डन, कतर, सऊदी अरब, बंग्लादेश, पाकिस्तान समेत कई मुल्कों में फ्रांस के खिलाफ भावनाएं भड़काई जा रही हैं। उत्पादों का बहिष्कार किया जा रहा है।

पाकिस्तान कट्टरता का नया केंद्र साबित हुआ है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों पर इस्लाम पर हमला करने का आरोप लगाया है। वहां फ्रांस के बायकाट के नए नए कसीदे पढ़े जा रहे हैं। पूरे मुल्क में फ्रांस के सफीर को मुल्कबदर करो यानि फ्रांस के राजदूत को बाहर निकालों की आवाजें गूंज रही हैं। फ्रांस मुर्दाबाद के नारे लग रहे हैं। फ्रांस का झंडा जलाया जा रहा है। बात किसी एक मुल्क से नफरत की नही है। बात कट्टरता की आड़ में इंसानियत पर हमले की है। बात अभिव्यक्ति को खत्म करने के पाशविक तरीकों की है। जो चेहरा फ्रांस में दिखाई दिया है वह अब पूरी दुनिया में फैल जाने को आमादा है।

फ्रांस में एक 47 वर्षीय शिक्षक सैमुअल पैटी ने अपनी कक्षा में छात्रों को पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाए थे। ये कार्टून व्यंग्यात्मक साप्ताहिक पत्रिका शार्ली हेब्दो में छपे कार्टून की कॉपी थे। इसके कुछ दिन बाद ही पैटी की गला काटकर हत्या कर दी थी। फ्रांस ने इसे ‘इस्लामिक आतंकवादी’ हमला कहा और उनकी सरकार ने ‘इस्लामिक आतंकवाद’ के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी। कट्टरपंथियों ने फ्रांस के साथ यह सुलूक तब किया है जबकि फ्रांस मुस्लिमों के प्रति यूरोप में सबसे अधिक उदार है। पश्चिम यूरोप की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी फ्रांस में ही रहती है जो देश की कुल आबादी का 9-10 प्रतिशत है। ये लोग ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, मोरक्को और माली से आकर फ्रांस में बसे हैं।

कट्टरता के इस चेहरे के पीछे आईएसआईएस जैसी ताकतें सक्रिय हैं। खतरनाक बात यह है कि ये सब मजहब की आड़ में हो रहा है। सीरिया और इराक में सक्रिय ये आतंकवादी संगठन पूरी दुनिया के लिए बड़े खतरे का सबब बन चुका है। इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया को इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड दी लीवेंट भी कहते हैं। यह एक जिहादी संगठन है, जो कि इराक और सीरिया में इस्लाम के नाम पर हिंसा फैलाता है। अल कायदा से अलग हुए इस संगठन की स्थापना अप्रैल 2013 में हुई थी। तब से अब तक इस संगठन ने पूरी दुनिया में आतंकवाद की फसल बोई है। इसके आतंक की फैक्ट्री जगह जगह फैल रही है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक आतंकवादी समूह आईएसआईएस को मात देने के दो साल बाद भी उसके करीब 10,000 से अधिक आतंकी इराक और सीरिया में अब भी सक्रिय हैं और इस साल उनके हमले भी बढ़े हैं। ये बात इसलिए भी गंभीर है क्योंकि अब इनके पीछे स्टेट पावर खुलकर खड़े हो गए हैं।

इसकी तह में जाने पर पता चलता है कि किस तरह से इस खतरनाक काम को अंजाम दिया जा रहा है। इसके मूल में शामिल घटना कट्टरता और असहिष्णुता की सबसे खतरनाक बानगी की ओर इशारा करती है।
अब इसे देखते हुए फ्रांस इस्लाम का नया वर्जन लागू करने जा रहा है। इस ऐलान ने एक नई बहस छेड़ दी है। बहस इस बात की कि क्या कट्टरपंथियों पर अब लगाम लगाने का सही वक्त आ गया है। भारत ने भी इस सिलसिले में अपनी राय दे दी है। भारत ने फ्रांस का खुला समर्थन किया है। दुनिया के कई लोकतांत्रिक मुल्क इस मुद्दे पर फ्रांस के साथ खड़े हो गए हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों एक सख्त कानून लाने की भी बात कह रहे हैं, जो राज्य को चर्च से अलग यानी धर्म को सरकार से अलग करने के लिए लाया जाएगा। उन्होंने साफ कहा है कि ‘इस्लामी अलगाववाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष मूल्यों’ के बचाव के लिए यह जरूरी है।

अगर यह कानून पारित हो जाता है तो फ्रांस में छोटे बच्चों को घरों में इस्लामी शिक्षा नहीं दी जा सकेगी और विदेशी के इमाम देश की मस्जिदों में इमामत नहीं कर पाएंगे। सवाल यह है कि इस तरह के कानून की जरूरत क्यों आन पड़ी। सवाल यह भी है कि क्या फ्रांस के बाद दूसरे मुल्क भी इस तरह के कानून को अपने देश में लागू करेंगे। यह सवाल इसलिए भी कायम है क्योंकि फ्रांस के साथ ही स्वीडन और नार्वे में भी इस्लामिक कट्टरपंथ की यही तस्वीर दिखाई दी है। इसी के देखते हुए पूरी दुनिया में इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ माहौल तैयार होता जा रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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