; अमेरिका में इतिहास के सबसे बड़े बदलाव की चुनौती - Namami Bharat
अमेरिका में इतिहास के सबसे बड़े बदलाव की चुनौती

अभिषेक उपाध्याय।अमेरिका ने नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन इतिहास के दोहारे पर खड़े हैं। लगभग साढ़े सात करोड़ वोट लेकर अमेरिकी लोकतंत्र के इतिहास में एक विशिष्ट अध्याय जोड़ चुके बाइडेन को सौगात में कठिन चुनौतियों की भरी पूरी फसल मिली है। उनका साथ देने के लिए कमला हैरिस हैं मगर वे खुद कई सवालों के घेरे में हैं। कमला हैरिस इस पद पर पहुंचनेवाली पहली महिला होने के साथ पहली गैर-श्वेत महिला भी होंगी। सबसे बड़ा सवाल अमेरिका के दूसरे देशों के साथ रिश्तों को लेकर पूछा जा रहा है। ट्रंप के कार्यकाल में इन रिश्तों में खासा तनाव रहा। अमेरिका के दुश्मनों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। अब उम्मीद की जा रही है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विदेश नीति में भी बदलाव आयेगा, किंतु यह बहुत जल्दी नहीं होगा। अमेरिका को कई बड़े बदलाव करने होंगे। नाटो और यूरोप के सहयोगियों के साथ संबंधों को सुधारने के साथ अफगानिस्तान में अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध से निकालना शीर्ष प्राथमिकताएं होंगी। लेकिन यह कहना जितना आसान है, उतना करना नहीं।

वाकई अमेरिका ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन के सामने चुनौतियों की भरमार है। कोरोना से लेकर चीन तक उनके सामने ये समय बेहद कठिन इम्तिहान का है मगर सबसे बड़ी चुनौती डोनाल्ड ट्रंप के दौर को झुठलाने की है। हालांकि जो बाइडेन ने संकेत दिए हैं कि वे देश की खराब हो चुकी छवि को सुधारने के लिए तेजी से काम करेंगे। उनकी प्राथमिकताओं की लिस्ट तैयार है। अमेरिका के डिप्लोमैट, इंटेलीजेंस और मिलिट्री सर्विस से जुड़े लोगों को सम्मान दिलाना उनकी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर है। हालांकि बाइडेन की राह आसान नहीं है। हडसन नदी में खासा पानी बह चुका है। बाइडेन के सामने चुनौतियों की भरमार है। ईरान अपने आप में बड़ी चुनौती है। उत्तर कोरिया के मसले को सुलझाने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने और चीन की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए भी तेजी से काम करने की जरूरत है।

हालांकि बाइडेन भारत को लेकर अच्छे संकेत दे रहे हैं। दीवाली के मौके पर उन्होंने इसकी शुरूआत की। एक संयुक्त बयान में बाइडेन और हैरिस ने अमेरिका, भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रकाश पर्व मना रहे लोगों को दिवाली की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि अंधकार पर प्रकाश, अज्ञानता पर ज्ञान और उदासीनता पर सहानुभूति का त्यौहार दिवाली इस साल गहरे अर्थों के साथ आया है। हमारी संवेदनाएं उन सभी लोगों के साथ हैं जिन्होंने हाल में अपने प्रियजनों को खोया है या वे अपने आपको को मुश्किल समय में पाते हैं। महामारी से लड़ने में हमारी प्रार्थनाएं सभी के साथ हैं। इस बार दिवाली वीडियो कॉल और एक दूसरे से दूरी बनाकर मनाई गई है। हम आशा कर रहे हैं कि अगले साल व्हाइट हाउस में आप सबके साथ मिलकर दिवाली मनाएंगे। यह संकेत बहुत कुछ कहता है।

उनके राष्ट्रपति बनने पर भारत के साथ संबंधों को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि एक सच यह भी है कि बाइडन भारत के साथ मजबूत संबंधों के पक्षधर रहे हैं। अमेरिका की विदेश मामलों की कमेटी का चेयरमैन रहते हुए उन्होंने भारत के साथ संबंधों को लेकर एक विशेष रणनीति भी बनाई थी। वर्ष 2006 में उन्होंने यहां तक कहा था कि उनका सपना है कि वर्ष 2020 तक भारत और अमेरिका सबसे गहरे मित्र बन जाएं। इसके बावजूद उनकी डिप्टी कमला हैरिस को लेकर बहुत सारे सवाल हैं। सवाल विशेषकर कमला हैरिस की कश्मीर को लेकर नीतियों के। कमला ने कश्मीर को लेकर हमेशा से पाकिस्तान के ही रूख का समर्थन किया है। इसलिए आशंकाएं भी है।

रुस अपने आप में एक कठिन चुनौती है। बाइडेन को पुतिन को डील करना है जो अपने आप में बेहद कठिन है। पुतिन की अमेरिकी चुनावों मे खासी दिलचस्पी रही है। बाइडेन को तमाम पाबंदियों को बनाए रखते हुए रूस के साथ परमाणु हथियारों में कमी लाने पर बातचीत करनी है। अपने कट्टर दुश्मन ईरान के साथ समझौते को फिर पटरी पर लाना है। डोनाल्ड ट्रंप ने इन समझौतों की धज्जियां उड़ा दी थीं। ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद हालात बेहद बिगड़ गए थे। अमेरिका और ईरान दोनो ही युद्ध की कगार पर पहुंच गए थे। ऐसे में बाइडेन की असली चुनौती ट्रंप को झुठलाने की होगी। यानि ट्रंप के हर किए को दुरुस्त करने की। यह लिस्ट खासी लंबी है।

हालांकि बाइडेन का अमेरिकी राजनीति का तर्जुबा बेहद ही समृद्ध है। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि उन्हें इन हालातों को हैंडल करने में अधिक तकलीफ नही होगी। उनका अनुभव और ओबामा एडमिनिस्ट्रेशन के स्तंभों का मार्गदर्शन उनकी खासी मदद करेगा। करीब पांच दशकों से अमेरिकी राजनीति में सक्रिय रहे बाइडन का सफर खासा संघर्षों भरा रहा है। वह पिछले 33 वर्षों से अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की कोशिश कर रहे थे। वर्ष 1987 में पहली दावेदारी की थी मगर फिर वापिस हटना पड़ गया। वर्ष 2007 में वह फिर से इस रेस का हिस्सा बने और फिर पीछे हट गए। इसके बाद उन पर बराक ओबामा की नजर पड़ी। ओबामा ने साल 2007 में बाइडन को अपना डिप्टी बना लिया। वह अमेरिका के 47वें उपराष्ट्रपति बने। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि वह बतौर राष्ट्रपति ओबामा एडमिनिस्ट्रेशन की प्राथमिकताओं को ही आगे ले जाएंगे।

बाइडेन के सामने एक बड़ी चुनौती अमेरिका में कोरोना की भयावहता की भी है। यह उनके चुनावों का एक बड़ा एजेंडा भी रहा है। अमेरिका में भी कोरोना की नई लहर दिखी है। अमेरिका में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या 11,538,057 हो गई है, जबकि वहां 252,651 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके हालांकि कई कारण सामने आए हैं। जैसे कि ठंड की वजह से लोगों का घरों में रहना, कोरोना सावधानियों में ढ़ील देना और स्कूलों और कॉलेजों में छात्रों का लौटना वायरस के प्रसार को बढ़ावा देने का बड़ा कारण हो सकता है। मगर अमेरिकी प्रशासन की शिथिलता सबसे बड़ा कारण बताई जा रही है। अमेरिकी प्रशासन का रुख पहले से ही काफी आलोचना का विषय रहा है। अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स अजार इसके लिए आम लोगों को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। उन्होंने उल्टा यह कह दिया कि लोग लापरवाह हो गए हैं और घरों में एक साथ एकत्र होने लगे हैं, जिससे नए केस बढ़ रहे हैं।

बाइडेन इन भयावह होते हालातों से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। उन्होंने चेतावनी भी दे दी है। बाइडेन ने कहा है कि अगर वह और मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस से निपटने के लिए तालमेल नहीं बिठाते हैं तो संक्रमण से ज्यादा अमेरिकी लोगों के मरने का खतरा है। अभी टीके को लेकर भी अमेरिका में अनिश्चितता का माहौल है। अमेरिका को टीका कैसे मिलेगा और कैसे 30 करोड़ अमेरिकी लोगों को टीका लगाया जाएगा, इसके लिए क्या योजना है, यह बहुत बड़ा सवाल है। अमेरिका की युद्ध नीति को लेकर भी बाइडेन को ट्रंप के दौर की दिक्कतों से दो चार होना पड़ेगा।

बाइडेन का बड़ा इम्तिहान विदेश में चल रहे युद्धों पर अमेरिकी रुख को लेकर होगा। ईरान, उत्तर कोरिया और चीन के सिलसिले में वे किस तरह का रुख अख्तियार करते हैं, निगाहें इस पर भी होंगी। व्यापार के मसले पर भी उन्हें ट्रंप की खींची लकीर को मिटाना ही होगा। वे ट्रंप के कारोबारी फैसलों के खुले विरोधी रहे हैं। ट्रम्प ने कारोबारी शुल्क लगाते समय दोस्त और प्रतिद्वंद्वियों का भेद खत्म कर दिया था। यही वजह है कि अधिकतर नाटो सहयोगी और यूरोपीय संघ के सदस्य ट्रम्प के सत्ता से बाहर होने की स्थिति में बेहद प्रसन्न दिखाई देंगे। कुल मिलाकर बाइडेन के सामने सबसे बड़ी चुनौती ट्रंप के दिखाए रास्ते से उलट राह चलने की होगी।

News Reporter
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